
पांच राज्यों मे चुनाव से पहले पेट्रोल-डीज़ल के दाम में कमी के बाद सरकार ने कृषि कानून की वापसी (Farm Law Repeal) का ऐलान कर विपक्ष के हाथ से एक और बड़ा मुद्दा छीन लिया है. इसीलिए अब विपक्ष कह रहा है पांच राज्यों में चुनाव के डर से सरकार ने कृषि कानून की वापसी का फैसला लिया है. तो चलिए अब हम कृषि कानूनों के पीछे तलाशी जा रही राजनीतिक वजहों का संपूर्ण विश्लेषण करते हैं.
अगले साल यूपी, उत्तराखंड, पंजाब समेत पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं और नए कृषि कानून को लेकर सबसे ज्यादा नाराजगी पंजाब में थी. बीजेपी को सबसे ज्यादा नुकसान के आसार पश्चिमी यूपी से थे. इसलिए सबसे पहले बात यूपी की कर लेते हैं.
पश्चिम उत्तर प्रदेश में कुल 110 सीटें हैं. 2012 में बीजेपी को इनमें से 38 सीटें मिली थी जबकि 2017 में 88 सीटें जीती थी. लेकिन बताया जा रहा है कि कृषि कानून को लेकर पश्चिमी यूपी में खासकर जाट समुदाय में सरकार के खिलाफ नाराजगी थी. जो चुनाव में महंगी पड़ सकती थी.
2024 के लिए 2022 में बीजेपी की जीत जरूरी
इसीलिए देर से ही सही लेकिन सरकार ने कृषि कानून वापसी का फैसला लेकर पश्चिमी यूपी का मन रख लिया है. क्योंकि 2024 के लिए 2022 में यूपी में कमल का खिलना जरूरी है. अब बात पंजाब की कर लेते हैं क्योंकि कृषि कानून को लेकर पंजाब में बीजेपी अकाली दल की ढाई दशक की दोस्ती टूट गई. अब कानूनों को वापस लेने के बाद बीजेपी के सामने पंजाब में अपने लिए पुख्ता जमीन तैयार करने का मौका है.
पंजाब की राजनीति में गेमचेंजर होगा केंद्र का फैसला
आपको बता दें कि पंजाब में कुल कुल 117 विधानसभा सीटें हैं. इनमें से 10 सीटें शहरी इलाकों की हैं. 51 सीटें अर्ध शहरी इलाकों की हैं और 26 सीटें ग्रामीण इलाकों की हैं. ग्रामीण और अर्ध शहरी इलाकों की सीटों पर किसानों का वोट सबसे अहम है. यानी पंजाब की करीब 77 सीटों पर हार जीत का फैसला किसान करता है.
ऐसे में कृषि कानून की वापसी का फैसला पंजाब की राजनीति में गेमचेंजर होगा ये तय माना जा रहा है. इसके अलावा उत्तराखंड के किसान भी कृषि कानून का विरोध कर रहे थे. अब उनकी भी मांग पूरी हो गई है लेकिन विपक्ष की तरकश से तीर निकलने अभी बाकी हैं.
करीब एक साल बीत गया.दिल्ली के तीनों बॉर्डर पर आंदोलनकारियों ने डेरा डाल रखा है. सिंघु बॉर्डर पर तो पूरा शहर बसा हुआ है.जिस दिल्ली-सोनीपत हाईवे पर रोजाना लाखों गाड़ियां चलती थीं. उस पर किसानों ने टेंट और मंच गाड़ रखे हैं. इसके कारण पिछले साल 26 नवंबर से ही दिल्ली से हरियाणा जाने-आने वालों का रास्ता बंद है और कुछ किलोमीटर तय करने में घंटो लग रहे हैं. हाईवे की बजाय गांव के रास्तों से गाड़ियां गुजर रही हैं. इसीलिए आज कृषि कानूनों की वापसी के ऐलान के बाद हमने सिंघु बॉर्डर पर आंदोलन कर रहे किसानों से पूछा कि क्या अब किसान दिल्ली बॉर्डर को खाली करेंगे?
खेती कानून रद्द करवाने के लिए जहां दिल्ली के बॉर्डर में किसान बैठे हुए हैं और लंबा संघर्ष हो गया है वही आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से खेती कानून वापस लेने के ऐलान किया उसके बाद पंजाब के जिला फिरोजपुर के बस्ती रामलाल आदि और गांव में किसानों ने जशन मनाया.
वहीं किसानों ने प्रधानमंत्री का धन्यवाद किया और कई किसानों ने कहा कि लंबा संघर्ष हो गया है अब नोटिफिकेशन भी जल्द जारी कर देना चाहिए और एम एस पी की गरंटी दी जाए जिससे किसान वापिस अपने घर आ जाएं.
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