
आज प्रकाश पर्व है. देश भर में देव दीपावली मनाई जा रही है. लेकिन आज देश के 62 करोड़ अन्नदाता खास दिवाली मना रहे हैं. और उन्हें ये सौगात देश के प्रधानमंत्री ने दी है. आज प्रधानमंत्री मोदी ने तीन कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान कर दिया है. माना जा रहा है कि पीएम मोदी का ये मास्टर स्ट्रोक है. क्योंकि एक साल से आंदोलन कर रहे किसानों की यही मांग थी कि तीनों कानूनों को वापस लिया जाए. अब उनकी मांग पूरी करके सरकार ने ना सिर्फ किसान आंदोलन खत्म करने की स्क्रिप्ट लिख दी है. बल्कि चुनावी मौसम में पूरे विपक्ष को भी निहत्था कर दिया है.
14 महीने पुराना कृषि कानून, 16 सेकेंड के संबोधन से वापस हो गया है. गुरु पर्व के पवित्र मौके पर सुबह 9 बजे देश के प्रधानमंत्री ने बड़ा दिल दिखाया. राजधर्म निभाया, अन्नदाताओं से माफी मांगी. तीन कृषि कानूनों की वापसी का ऐलान किया और किसानों से आंदोलन खत्म करने का आग्रह किया. प्रधानमंत्री मोदी के तीन कृषि कानूनों की वापसी का ऐलान करते ही, देश भर के किसान खुशी से झूम उठे.
सिंघु बॉर्डर पर जश्न का माहौल
दिल्ली के जिस सिंघु बॉर्डर पर आंदोलनकारियों ने एक शहर बसा रखा है..वहां कृषि कानून की वापसी की घोषणा के साथ डांस शुरू हो गया. गाजीपुर बॉर्डर पर जहां किसानों ने सड़कों पर डेरा डाल रखा है. वहां पटाखे फूटने लगे, जलेबियां बंटने लगीं. अब सवाल उठता है कि आखिर केंद्र सरकार ने तीन कृषि कानूनों को वापस लेने का फैसला क्यों किया? क्या किसानों के आंदोलन के आगे सरकार झुक गई? या फिर वोट की खातिर कृषि कानूनों की वापसी का फैसला लिया गया?
ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि मोदी सरकार को अपने फैसले से पीछे नहीं हटने के लिए जाना जाता रहा है. और यहां तो मुद्दा किसानों के हित में बनाए गए कानून का था. लिहाजा अपनी ही सरकार के बनाए कानून को वापस लेने का फैसला आसान नहीं था. इसीलिए कृषि कानून की वापसी के ऐलान करते वक्त प्रधानमंत्री को अन्नदाताओं को नहीं समझा पाने का अफसोस था और शायद इसीलिए पीएम मोदी ने 18 मिनट के अपने संबोधन में 41 बार किसान, 8 बार कानून और 14 बार देश शब्द का जिक्र किया. इतना ही नहीं कृषि कानून की वापसी के दौरान पीएम ने क्षमा, तपस्या, पवित्र हृदय, प्रकाश, सत्य जैसे शब्दों का भी प्रयोग किया.
किसानों ने किया फैसले का स्वागत
वाकई प्रधानमंत्री ने तीन कृषि कानूनों की वापसी की घोषणा और आंदोलन खत्म करने का आग्रह कर बड़प्पन दिखाया. राजधर्म का परिचय दिया. किसान आंदोलन पर राजनीति करने वालों को एक मास्टरस्ट्रोक से चित कर दिया. इसीलिए यहां सवाल ये भी उठ रहा है कि आखिर तीन कृषि कानूनों को काला कानून बताने वाले आंदोलनकारी अब आगे क्या करेंगे? क्योंकि प्रधानमंत्री ने तो ये साफ कर दिया कि इस महीने के अंत में संसद सत्र शुरू होने जा रहा है उसमें इन कानूनों को वापस लिया जाएगा. लेकिन आंदोलनकारी कह रहे हैं कि अब वो MSP पर गारंटी कानून को लेकर आंदोलन को आगे बढ़ाएंगे.
जबकि देश के किसान, कृषि कानूनों की वापसी की घोषणा का स्वागत कर रहे हैं. प्रधानमंत्री के इस ऐलान की तारीफ कर रहे हैं. आपको ये भी बता दें कि आज ही पीएम मोदी ने MSP को प्रभावी बनाने के लिए एक कमेटी के गठन करने का फैसला भी लिया है. बावजूद इसके किसान आंदोलन के नाम पर राजनीति चमकाने वाले पीछे हटने को तैयार नहीं हैं. क्योंकि उन्हें यकीन नहीं था कि सरकार कृषि कानूनों को वापस कर, अन्नदाताओं को ऐसा सरप्राइज गिफ्ट देंगे और देश के सामने एक नजीर पेश करेंगे.
आखिर 14 महीने में क्यों हुई कानूनों की वापसी
अब यहां कृषि कानूनों को वापस लेने के ऐलान की टाइमिंग का विश्लेषण भी जरूरी है. ये जानना भी जरूरी है कि आखिर कृषि कानून की वापसी की घोषणा 14 महीने बाद ही क्यों हुई? दरअसल, इसके पीछे दो बड़ी वजहें बताई जा रही हैं. पहला- राष्ट्रीय सुरक्षा और दूसरा- राजनीतिक कारण.
बेशक कृषि कानूनों की वापसी को किसानों की नाराजगी से जोड़कर देखा जा रहा है. इसका राजनीतिक नफा-नुकसान निकाला जा रहा है. लेकिन कृषि कानूनों की वापसी के पीछे राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा मुद्दा भी अहम है. हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि, किसान आंदोलन का जन्मदाता पंजाब बॉर्डर स्टेट है. किसान आंदोलन के बहाने पंजाब में अशांति की साजिश रचने की खुफिया जानकारी सामने आ रही थी. इनपुट था कि कुछ देशद्रोही ताकतें इस आंदोलन के जरिए साजिशें रच रही हैं. गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात के दौरान राष्ट्रीय सुरक्षा के खतरे को लेकर कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी इस तरह का इनपुट सौंपा था.
इसके अलावा किसान आंदोलन के दौरान कई बार हिंसक गतिविधियां भी देखने को मिलीं. 26 जनवरी को दिल्ली में किसानों के टैक्टर मार्च के दौरान हिंसा हुई. हरियाणा पंजाब में भी जगह-जगह आंदोलनकारी किसानों और स्थानीय लोगों की झड़प हुई. यूपी के लखीमपुर खीरी हिंसा में चार किसान समेत 8 लोगों की मौत हुई और सिंघु बार्डर पर किसान आंदोलन में दो व्यक्तियों की हत्या हो चुकी है.
इसीलिए किसान आंदोलन से जुड़ी हिंसा और पंजाब में शांति के खातिर सरकार ने कृषि कानूनों को वापस करने में भलाई समझी. लेकिन, भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत की जिद है कि संसद से कानून वापस लेने की प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही किसान आंदोलन खत्म होगा. टीवी9 भारतवर्ष से EXCLUSIVE बातचीत में भी राकेश टिकैत ने यही बात दोहराई.
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