
अब दिल्ली-एनसीआर (Delhi-NCR) के सबसे बड़े दुश्मन यानी जहरीली हवा की फिक्र की ओर बढ़ते हैं. दिल्ली-एनसीआर के पॉल्यूशन का सॉल्यूशन क्या है, ये कोई नहीं बता पा रहा. तमाम एजेंसियां फेल हैं. एक्सपर्ट फेल हैं और सरकारें फेल हैं. आज हम इसकी एक-एक परत से आपको वाकिफ कराएंगे. सबसे पहले आज सुप्रीम कोर्ट में दिखी एक विडंबना को समझिए. पिछली सुनवाई में केंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल ने बताया था कि दिल्ली-एनसीआर में पॉल्यूशन का जिम्मेदार 25-30 फीसदी तक पराली ही है.
आज जब सुप्रीम कोर्ट सख्त हुई तो कोर्ट रूम में बताया कि प्रदूषण में पराली का योगदान 10 फीसदी है, यानी 15 से 20 परसेंट कम. लेकिन आप ये जानकर चौंक जाएंगे कि लिखित हलफनामे में ये आंकड़ा भी बदल गया. लिखित हलफनामे में पराली का प्रदूषण में योगदान मात्र 4 फीसदी ही बताया गया है. ये देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्रदूषण से मर रहे लोगों की फिक्र और समाधान निकालने को लेकर कौन कितना गंभीर है. सुप्रीम कोर्ट लगातार सरकार से पूरा प्लान मांग रही है. आज भी सुनवाई के दौरान कोर्ट ने केंद्र और राज्य दोनों ही सरकारों से कहा कि जल्द से जल्द प्रदूषण को रोकने के लिए सख्त कदम उठाएं.
कोर्ट ने सरकार से मंगलवार शाम तक प्रदूषण रोकने पर पुख्ता जवाब मांगा
कोर्ट ने सरकार से मंगलवार शाम तक प्रदूषण रोकने पर पुख्ता जवाब मांगा है. केंद्र सरकार से सुप्रीम कोर्ट ने खास तौर पर कहा है कि आपात बैठक बुलाएं. दिल्ली, पंजाब और हरियाणा सरकारों को एक साथ बैठाकर प्रदूषण की समस्या का हल निकालें. लॉकडाउन की सुप्रीम सलाह के बाद आज दिल्ली दिल्ली सरकार ने भी कोर्ट में एक हलफनामा दाखिल किया. दिल्ली सरकार ने कहा कि प्रदूषण को रोकने के लिए संपूर्ण लॉकडाउन जैसे कदम उठाने को पूरी तरह तैयार हैं, लेकिन दिल्ली के साथ NCR क्षेत्र में भी लॉकडाउन लगाने की जरूरत है, तभी ऐसे कदमों का असर पड़ेगा.
सुप्रीम कोर्ट को हर हाल में समाधान चाहिए और दिल्ली-एनसीआर को भी समाधान चाहिए, ना कि पराली की तरह कोई बहाना. एक रिसर्च बताती है कि दिल्ली में प्रदूषण के लिए कौन सबसे ज्यादा जिम्मेदार है. रिसर्च के मुताबिक डस्ट यानी धूल कणों की हिस्सेदारी 37.8 फीसदी हैं. इसमें सबसे बड़ा हिस्सा निर्माण कार्यों का है. वहीं दिल्ली के प्रदूषण में गाड़ियों की हिस्सेदारी 39.2 फीसदी तक है जबकि पराली से सिर्फ 2 फीसदी प्रदूषण फैलता है. ये आंकड़े मोटे तौर पर दिल्ली के प्रदूषण की तस्वीर बयान करते हैं. वैसे दिल्ली में प्रदूषण की कई छोटी छोटी दूसरी वजहें भी हैं, लेकिन सबसे बड़ी फिक्र ये है कि सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद जब दिल्ली के स्कूल-कॉलेज-कोचिंग संस्थान पर प्रदूषण की मार पड़ी है.
20 नवंबर तक सभी स्कूल-कॉलेज-कोचिंग बंद
20 नवंबर तक सरकार ने सभी स्कूल-कॉलेज-कोचिंग को बंद करने का फैसला किया है. 17 नवंबर तक सभी निर्माण कार्य पर रोक है. सरकारी कर्मचारी वर्क फ्रॉम होम कर रहे हैं. क्या दिल्ली की जहरीली हवा पर इसका असर पड़ा है या फिर क्या दिल्ली को जीवन तभी मिलेगा जब अदालत का हंटर चलेगा. इन्हीं सवालों के साथ हमने दिल्ली के अलग अलग इलाके की पड़ताल की. ये तस्वीरें दिल्ली-एनसीआर की हैं, जहां राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से लेकर करोड़ों लोग रहते हैं, लेकिन यहां की हवा में जहर घुल चुका है. पॉल्यूशन मीटर खतरनाक जोन में बना हुआ है, लेकिन क्या सुप्रीम फटकार के बावजूद पहले से ही खराब चल रही हवा और भी दमघोंटू हो गई है. क्या अभी भी सरकार के तमाम दावे, आदेशों पर धुंध की मोटी चादर छाई हुई है या फिर सांस पर संकट कम हुआ है और सरकार के कई फैसलों का असर हुआ है.
जब दिल्ली-एनसीआर की ये जहरीली हवा सुप्रीम कोर्ट की फिक्र बन चुकी है तब टीवी9 भारतवर्ष के रिपोर्ट्स ने दिल्ली-एनसीआर के अलग-अलग इलाकों का पॉल्यूशन लेवल रिकॉर्ड करने का फैसला किया. लोगों से बात की, ये समझने की कोशिश की कि क्या हालात 48 घंटे पहले जैसे ही हैं या फिर बदले हैं. सबसे पहले हम धौला कुआं पहुंचे. धौला कुआं जैसे प्रदूषित इलाके में भी कुछ लोगों को लगता है कि सरकारी ऑफिस, स्कूल और कंस्ट्रक्शन बंद करने का असर हुआ है तो कई सिर्फ इतने भर से खुश नहीं है. उन्हें लग रहा है कि अभी बहुत कुछ करने की जरूरत है. धौला कुंआ में जो लोग ये मान रहे हैं कि हालात सुधरे हैं, उन्हें इस बात का अंदाजा तक नहीं है कि दिल्ली की हवा में जहर अभी भी बरकरार है. आनंद विहार में एयर क्वालिटी इंडेक्स शाम 5 बजे 409 था, जो SEVERE की कैटेगरी में आता है. यहां पीएम 2.5 सबसे ज्यादा 408 रिकॉर्ड किया गया.
आईटीओ पर भी एयर क्वालिटी इंडेक्स 344 रिकॉर्ड किया गया और पीएम 2.5 384 था. प्रदूषण का ये स्तर कितना खतरनाक ये आप एक रिसर्च के जरिए भी समझ सकते हैं. लंग केयर फाउंडेशन की एक रिसर्च के मुताबिक पीएम 2.5 का स्तर 22 रहने पर ये एक सिगरेट पीने के बराबर है. ऐसे में अगर आनंद विहार में पीएम 2.5 का स्तर 409 है तो ये 24 घंटे में 18 सिगरेट पीने के बराबर है और अगर आईटीओ पर पीएम 2.5 का स्तर 384 है तो 24 घंटे में 17 सिगरेट पीने के बराबर है. आनंद विहार और आईटीओ की तरह ही जंतर-मंतर, कनॉट प्लेस, जनपथ और अक्षरधाम इलाके की हवा अभी भी काफी ज्यादा प्रदूषित है और सीवियर केटेगरी में है. लिहाजा हमारी टीम धौला कुआं से अक्षरधाम पहुंची.
48 घंटे पहले तक दिल्ली के अक्षरधाम पर पॉल्यूशन की चादर चढ़ी हुई थी. धुंध के आगे कुछ भी नजर नहीं आ रहा था. लेकिन फिलहाल यहां की तस्वीर थोड़ी बदली हुई है. विजिबिलिटी बढ़ी है, लेकिन दो ढाई सौ मीटर के बाद अभी भी धुंध की चादर दिख जाती है और जहरीली हवा का स्तर खतरनाक बना हुआ है. सुप्रीम फटकार के बाद दिल्ली सरकार ने प्रदूषण घटाने के ताबड़तोड़ फैसले लिए और इनका असर क्या हुआ, ये देखने के लिए टीवी9 भारतवर्ष की टीम विजय चौक भी पहुंची. यहां प्रदूषण के हालात को विजय चौक की दो तस्वीर से भी समझ सकते हैं. 48 घंटे पहले तक विजय चौक से चंद कदमों की दूरी पर नॉर्थ और साउथ ब्लॉक विशाल और भव्य राष्ट्रपति भवन के साथ ही संसद भवन तक साफ साफ नजर नहीं आ रहे थे. विजिबिलिटी महज 25 से 50 मीटर तक सिमट गई थी. अब हालात कुछ बेहतर हुए हैं, हालांकि हवा की गुणवत्ता अभी चिंता बढ़ा रही है.
नोएडा में भी पॉल्यूशन का लेवल खतरनाक स्तर तक पहुंचा
प्रदूषण सीमाओं को नहीं देखता. जिस जानलेवा हवा ने दिल्ली का दम घोंट रखा है, उसने एनसीआर को भी बेहाल कर रखा है. फरीदाबाद, गाजियाबाद, गुरुग्राम और नोएडा में भी पॉल्यूशन का लेवल खतरनाक स्तर तक पहुंच चुका है, लेकिन हमारी टीम जब नोएडा के सेक्टर 72 में पहुंची तो यहां जहरीली हवा में और भी जहर घोलती नजर आई कंसट्रक्शन की मशीनरी. यहां पर वायु प्रदूषण को बढ़ाने वाला कॉन्सट्रक्शन का काम लगातार चल रहा है. प्रदूषण पर सुप्रीम एक्शन के बाद दिल्ली की हवा थोड़ी बेहतर हुई है. लोग राहत की सांस ले रहे हैं, लेकिन हकीकत ये है कि ये हवा अभी भी जीने लायक नहीं है. ये सांसों के जरिए शरीर में जा रही है और धीमी जहर की तरह असर कर रही है.
सांसों के इसी संकट से दिल्ली-NCR के करोड़ों लोग जूझ रहे हैं. ये तस्वीरें गाजियाबाद के जिला अस्पताल की हैं, जहां मरीजों की भीड़ इतनी बढ़ गई कि पुलिसवालों को आना पड़ा. इस भीड़ में बड़े भी दिखे और छोटे-छोटे बच्चे भी..किसी को सांस लेने में तकलीफ थी तो किसी को आंखों में जलन हो रही थी, तो किसी के गले में खराश थी. सबको अलग-अलग दिक्कत थी, लेकिन वजह एक थी और वो है दिल्ली-एनसीआर की हवा में घुला जहर. वायु प्रदूषण से दिल्ली और आसपास के इलाकों की हवा इस कदर जहरीली हो चुकी है कि लोगों की जान पर बन आई है. दिल्ली, नोएडा, गाजियाबाद और गुरुग्राम के अस्पतालों में सांस की बीमारियों से जुड़े मरीज तेजी से बढ़ते जा रहे हैं और ये इस जहरीली हवा में सांस ले रहे बाकी लोगों की फिक्र भी बढ़ा रहे हैं.
हालात ये हैं कि दिल्ली के LNJP अस्पताल में प्रदूषण की वजह से सांस की बीमारी से जूझ रहे मरीजों की संख्या में अचानक ही 10 फीसदी बढ़ोत्तरी हो गई है. ICMR की रिपोर्ट कहती है कि फेफड़ों से जुड़ी बीमारियों के 40 फीसदी मामलों के लिए सिर्फ और सिर्फ वायु प्रदूषण जिम्मेदार है. हार्ट डिजीज, स्ट्रोक, डायबिटीज और नवजात बच्चों की मौत के लिए तो वायु प्रदूषण 60 फीसदी तक जिम्मेदार है. कोरोना काल में ये वायु प्रदूषण और भी घातक साबित हो रहा है. दिल्ली की ओबाहवा में घुले जहर की वजह से वल्लभभाई पटेल चेस्ट इंस्टीट्यूट में सांस के रोगियों की संख्या 20 प्रतिशत तक बढ़ गई है.
नोएडा के अस्पतालों में भी सांस के मरीजों के आने का सिलसिला बढ़ा
नोएडा के अस्पतालों में भी सांस के मरीजों के आने का सिलसिला बढ़ रहा है. हमारी ये पड़ताल बता रही है कि दिल्ली और एनसीआर में हालात कितने भयावह हो चुके हैं. करोड़ों लोग जहरीली हवा में सांस लेने को मजबूर हैं. हर साल की तरह इस बार भी सांसों पर इमरजेंसी लग चुकी है और इसकी सबसे बड़ी वजह है सरकारों की संवेदनहीनता, जो प्रदूषण को लेकर सीजन के हिसाब से जागती हैं. वाय प्रदूषण का ये जहर लोगों को कई जानलेवा बीमारियों का शिकार बना रहा है और जिसका नतीजा ये हो रहा है कि दिल्ली और आसपास के अस्पतालों में मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है.
उम्मीद करते हैं कि सरकारें और प्रशासन प्रदूषण की इस समस्या को सिर्फ दिवाली, पराली और सीजन के आइने से देखने की बजाए ये मानना शुरू कर दें कि ये समस्या हर दिन की है और हर किसी की है. अब वायु प्रदूषण से निपटने की सरकारी कोशिशें कब कारगर होंगी और कितनी कारगर होंगी इस बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता, लेकिन वायु प्रदूषण से बचने के लिए कुछ बातों का ध्यान रखकर आप खुद को गंभीर खतरों से बचा सकते हैं. जरूरी हो, तभी घर से बाहर जाएं, मास्क लगाकर बाहर निकलें. मॉर्निंग वॉक से परहेज करें. पानी ज्यादा से ज्यादा पीएं. स्मोकिंग न करें, स्मोकर्स से दूर रहें. मौसमी फल, हरी सब्जियां खाएं.
एहतियात बरतना इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि भले ही आपको प्रदूषण की वजह से आपकी सेहत पर होने वाला बुरा असर फौरन न दिखे, लेकिन इसका असर जरूर होगा और जानलेवा भी साबित हो सकता है. शिकागो यूनिवर्सिटी के एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के मुताबिक भारत की एक चौथाई आबादी खतरनाक प्रदूषण का सामना कर रही है और औसत उम्र कम हो रही है. दिल्ली में प्रदूषण लोगों की औसत उम्र 9.7 साल, उत्तर प्रदेश में 9.5 साल कम कर रहा है. प्रदूषण की वजह से बिहार में लोगों की औसत उम्र 8.8 साल, हरियाणा में 8.4 साल घटी है. झारखंड में ये आंकड़ा 7.3 साल और पश्चिम बंगाल में 6.7 साल कम हो गई है.
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