
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) के अध्यक्ष जस्टिस अरुण मिश्रा ने शुक्रवार को कहा कि वे नहीं बता सकते कि आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पावर्स एक्ट (AFSPA) के कारण देश में किसी तरह मानवाधिकारों का हनन हो रहा है. अफस्पा को लेकर पूछे गए सवाल पर जस्टिस मिश्रा ने कहा कि हम ऐसे मुद्दों का सामान्यीकरण नहीं कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि अगर इस तरह का कोई मामला आता है तो हम उस केस को देखते हैं. इसी महीने नागालैंड के मोन जिले में सुरक्षा बलों की गोलीबारी में 14 लोगों की मौत के बाद अफस्पा को हटाने की मांग तेज हो गई.
गुवाहाटी में NHRC द्वारा आयोजित “ओपन हियरिंग एंड कैंप सेटिंग” के आखिरी दिन रिपोर्टर्स से बातचीत में जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा, “हम किसी कानून की संवैधानिकता पर चर्चा नहीं कर सकते हैं. यह सुप्रीम कोर्ट को तय करना है. इस तरह के कानूनों (अफस्पा) पर सरकार समीक्षा कर सकती है कि किस जिले में और किस समय इसे लागू किया जाना चाहिए.”
उन्होंने कहा कि भारत जैसे एक सभ्य समाज में फर्जी एनकाउंटर की कोई जगह नहीं है. उन्होंने कहा, “देश में त्वरित न्याय के लिए कोई जगह नहीं है और कानून को अपने तरीके से काम करना चाहिए. किसी दोषी व्यक्ति पर कोर्ट में विचार होना चाहिए और उसे कानून के हिसाब से सजा मिलनी चाहिए.”
गुवाहाटी में आयोग की तरफ से 16 और 17 दिसंबर को आयोजित इस कार्यक्रम में NHRC ने खुली सुनवाई के दौरान कुल 40 मामलों को लिया. इसमें असम के 23 केस, मणिपुर के 13 केस, अरुणाचल प्रदेश का एक केस और नागालैंड के 3 मामलों पर सुनवाई की गई. आयोग के बयान के मुताबिक, रिपोर्ट्स पर विचार करते हुए और दोनों पक्षों को सुनते हुए आयोग ने पांच मामलों को बंद किया.
नागालैंड फायरिंग पर NHRC ने 6 हफ्तों के भीतर मांगा जवाब
अफस्पा कानून सेना को ‘अशांत क्षेत्रों’ में किसी भी नागरिक के बिना वारंट गिरफ्तारी और नजरबंदी की शक्तियां देता है. इसके अलावा जरूरत पड़ने पर गोली चलाने के लिए भी किसी की अनुमति नहीं लेनी पड़ती है. केंद्र सरकार ने नागालैंड के तहत आने वाले सभी इलाकों को अशांत और खतरनाक स्थिति में बताया है. सरकार ने पूरे नागालैंड को 30 जून से 6 महीने तक ‘अशांत क्षेत्र’ घोषित किया था. यह कानून राज्य में कई दशकों से लागू है.
मोन फायरिंग के बाद नागालैंड के मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो, मेघालय के सीएम कोनराड संगमा और कई विपक्षी दलों ने भी अफस्पा को हटाने की मांग की थी. नागालैंड में आम नागरिकों की मौत पर मानवाधिकार आयोग ने रक्षा सचिव, केंद्रीय गृह सचिव, नगालैंड के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक को नोटिस जारी कर 6 सप्ताह के भीतर इस मामले में विस्तृत रिपोर्ट मांगी थी.
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