
बाजना, अलीगढ़ और मथुरा के बीच में स्थित एक ऐसा कस्बा जिसकी मिट्टी ने ऐसे सेनानी दिए जिन्होंने देश को आजाद कराने में कोई कसर नहीं छोड़ी, वैसे तो ये क्षेत्र मथुरा जिले में आता है, लेकिन यदि दूरी की बात करें तो ये अलीगढ़ से ज्यादा नजदीक है. इसी बाजना के धरती पुत्रों ने अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया था. यहां के क्रांतिवीरों को कई बार पकड़ा गया, जेल भेजा गया, तरह-तरह की यातनाएं दी गईं, लेकिन इन्होंने गुलामी नहीं स्वीकारी और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ संघर्ष जारी रखा, Tv9 की इस खास सीरीज में आज जानते हैं आजादी के कुछ ऐसे ही मतवालों के बारे में…
स्वतंत्रता सेनानी स्व. करन सिंह
बाजना क्षेत्र के झरैलिया गांव में जन्म करन सिंह ने असहयोग आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन समेत भारत की आजादी के लिए समय-समय पर किए गए कई आंदोलनों में भाग लिया, साल 1942 में अंग्रेजों ने इन्हें गिरफ्तार कर लिया. ये तकरीबन 9 माह तक जेल में रहे और इन पर 500 रुपये का जुर्माना लगाया गया. उस वक्त 500 रुपये बहुत बड़ी रकम हुआ करती थी. करन सिंह पेशे से किसान थे, उनके नाती ललित प्रमुख के मुताबिक स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका की वजह से इलाके में लोग इन्हें मुंशी जी के नाम से जानते थे.
स्वतंत्रता सेनानी चिरंजी लाल शर्मा
बाजना क्षेत्र के गांव चांदपुर कलां में जन्म चिरंजी लाल शर्मा कांग्रेस से जुड़े थे, स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भागीदारी की वजह से अंग्रेजों ने इन्हें गिरफ्तार किया और तीन माह तक मथुरा जेल में रखा. चिरंजीलाल शर्मा के भतीजे सियाराम के मुताबिक एक बार चिरंजी लाल दिल्ली में भी जेल में रहे. वह पेशे से किसान थे और भजन गायिकी भी करते थे, इस वजह से इन्हें क्षेत्र में रसिक नाम से जाना जाता था.
स्वतंत्रता सेनानी स्व. जुगल किशोर
जुगल किशोर ने सत्याग्रह आंदोलन में हिस्सा लिया था, उनका जन्म बाजरा जिले के चांदपुर कलां गांव में हुआ था. सत्याग्रह आंदोलन में हिस्सा लेने की वजह से अंग्रेजों ने उन्हें छह माह मथुरा जेल में बंद रखा. वह पेशे से किसान थे, उनके पुत्र उदय सिंह ने बताया कि आजादी के बाद जुगल किशोर ने सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर मांट विधानसभा से चुनाव लड़ा, हालांकि जीत हासिल नहीं हो सकी.
स्वतंत्रता सेनानी नानक चंद्र शर्मा
बाजना के इस लाल ने जेल भरो आंदोलन में हिस्सा लिया था. महज 16 साल की उम्र में ही अंग्रेजों ने इन्हें दो बार जेल भेजा, दोनों बार कम उम्र होने की वजह से इन्हें आगरा जेल से लौटा दिया गया. नानक चंद्र पेशे से किसान थे, लेकिन इन्हें हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू का भी ज्ञान था, नानक चंद्र के नाती अरविंद शर्मा के मुताबिक इन्होंने झांसी से आंखों के उपचार से जुड़ा एक डिप्लोमा भी लिया था.
स्वतंत्रता सेनानी स्व. डालचंद
बाजना के मरहैला में जन्में स्व. डालचंद ने असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया था. मथुरा में उन्होंने छह महीने की जेल काटी, इस दौरान उनका 23 पाउंड वजन बढ़ा, इसकी सजा के स्वरूप उन पर 200 रुपये जुर्माना लगाया गया. वह क्षेत्र के अच्छे पहलवानों में रहे हैं. खास बात ये है कि वह लगातार 10 साल निर्विरोध प्रधान भी रहे, उनके बेटे किशन सिंह के मुताबिक डालचंद्र लोकमणि शर्मा के पक्के दोस्त थे.
स्वतंत्रता सेनानी राम सिंह महाशय
बाजना क्षेत्र के संकरगढ़ी गांव में जन्में राम सिंह महाशय ने जेल भरो आंदोलन में हिस्सा लिया था, उनके नाती प्रेमवीर सिंह ने बताया कि आंदोलन में हिस्सा लेने की वजह से उन्हें 6 माह जेल में सजा बितानी पड़ी, किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले राम सिंह महाशय ने इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई की थी. आजादी के बाद वह एक समाजसेवक के तौर पर सक्रिय रहे.
स्वतंत्रता सेनानी स्व. पं. लोक मणि शर्मा
बाजरा क्षेत्र के गांव पचहरा निवासी लोकमणि शर्मा सबसे पहले 1941-42 में जेल गए थे, स्वाधीनता आंदोलन में भाग लेने की वजह से जेल भेजे गए पं. शर्मा को उस समय एक साल तक जेल में रहना पड़ा था. 250 रुपये जुर्माना भी लगा था. उनके पुत्र श्याम सुंदर शर्मा के मुताबिक आजादी के बाद वह मांट विधानसभा क्षेत्र से विधायक रहे, उन्होंने देशभक्ति पर कविताएं भी लिखीं, 23 जनवरी 1998 को उनका निधन हो गया.