सेना या सशस्त्र बलों में तैनात जवानों को अब किसी हादसे में घायल होने पर युद्ध क्षति पेंशन का लाभ नहीं मिल पाएगा. इस पेंशन का लाभ उन्हें तभी मिलेगा, जब वे किसी जंग में तैनाती के दौरान घायल होंगे. यह बात आर्म्ड फोर्सेज ट्रिब्यूनल ने जारी किए अपने एक आदेश में कहीं. उसका कहना है कि हादसे में लगी चोट को युद्ध में लगी चोट की तरह मानकर वॉर इंजरी पेंशन नहीं जारी की जाएगी. आर्म्ड फोर्सेज ट्रिब्यूनल ने ऐसे ही एक मामले में लगाई गई याचिका को भी खारिज कर दिया है.
आर्म्ड फोर्सेज ट्रिब्यूनल में यह याचिका पूर्व हवलदार अशोक कुमार ने लगाई थी. उन्होंने इसमें कहा था कि 1993 में सियाचिन में तैनाती के दौरान जनरेटर का काम करने के दौरान उनके हाथ की छोटी अंगुली कट गई थी. ऐसे में उन्हें युद्ध क्षति पेंशन का लाभ मिले. हालांकि उन्हें दिव्यांगता पेंशन मिल रही है.
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एक्शन शब्द पर भी दिया स्पष्टीकरण
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार आर्म्ड फोर्सेज ट्रिब्यूनल की लखनऊ बेंच ने अपने आदेश में ‘एक्शन’ शब्द को भी परिभाषित किया है, जिसके बिनाह पर युद्ध क्षति पेंशन का लाभ लिया जा सकता है. उसने इसमें स्पष्ट किया है कि युद्ध क्षति पेंशन का लाभ लेने के लिए ऑपरेशनल एरिया में घायल होने के अतिरिक्त एक्शन के दौरान घायल होना जरूरी है. एक्शन का मतलब युद्ध में शामिल होने के दौरान घायल होने से है. उसके अनुसार केवल ऑपरेशनल एरिया में मौजूद रहना ही एक्शन की श्रेणी में नहीं आएगा.
सियाचिन में तैनात थे याचिकाकर्ता पूर्व हवलदार
जस्टिस उमेश चंद्र श्रीवास्तव और वाइस एडमिरल अभय रघुनाथ कार्वे की बेंच ने साफ किया है कि हादसे या मौत के कारण और ड्यूटी के बीच सीधा और सामयिक कनेक्शन होना चाहिए. यह याचिका दायर करने वाले अशोक कुमार की ज्वाइनिंग जून 1985 में हुई थी. वह पाकिस्तान सीमा पर सियाचिन में सिग्नल रेजीमेंट में तैनात थे, जब सेना ने अक्टूबर 1993 में ऑपरेशन रक्षक-2 शुरू किया था. वह कुछ अन्य लोगों के साथ तब गंभीर रूप से घायल हो गए थे, जब इलेक्ट्रिक जनरेटर को लगाया जा रहा था.
हादसे के बाद उनके हाथ की एक अंगुली काट दी गई थी. मेडिकल बोर्ड और कोर्ट ऑफ इंक्वायरी में सेना में उनकी सेवाएं ना लेने का फैसला लिया था. अप्रैल 2004 में रिटायर होने के बाद उन्हें निम्न मेडिकल श्रेणी में दिव्यांगता पेंशन शुरू की गई थी. लेकिन उन्होंने कहा था कि वह युद्ध क्षति पेंशन के हकदार हैं.
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