मध्यप्रदेश के सागर जिले की रहली तहसील में पहाड़ों और जंगलों के बीच बसे छोटे से ग्राम रानगिर में प्रसिद्ध हरसिद्धि माता का मंदिर है। यह क्षेत्र शक्ति साधना के लिए जाना जाता है। यहां चैत्र एवं शारदेय नवरात्र पर भव्य मेला लगता है। पहले आवागमन के साधनों के अभाव एवं पहुंच मार्गों की दशा ठीक नहीं होने के कारण मेला सिर्फ तीन दिन लगता था परन्तु विगत वर्षों में इस क्षेत्र में हुए विकास कार्यों के कारण माता के दरबार तक आना-जाना सुगम हो गया है मेला स्थल पर भी सुविधाएं होने के कारण यहां लगभग साल भर ही मेले जैसा माहौल रहता है।
माता दिन में तीन रूप धारण करने प्रसिद्ध
नवरात्रि के दिनों में माता के दर्शन कर आराधना करने का विशेष महत्व होने के कारण भारी भीड़ होती है। प्राचीन काल से ऐसी मान्यता है कि माता से जो भी मन्नत मांगी जाती है वह पूर्ण होती है। इसी कारण माता को हरसिद्धि माता पुकारा जाता है। सिद्धिदात्री माता दिन में तीन रूप धारण करने को भी प्रसिद्ध हैं। मान्यता है कि प्रात: काल मे कन्या, दोपहर में युवा और सायंकाल प्रौढ़ रुप में माता के दर्शन होते है। जो सूर्य, चंद्र और अग्नि इन तीन शक्तियों के प्रकाशमय, तेजोमय तथा अमृतमय करने का संकेत है।
मन्नत होती है पूरी
मान्यता है कि माता से जो भी मन्नत मांगते हैं वह पूर्ण होती है। इसी कारण माता को हरसिद्धि माता के नाम से पुकारा जाता है। सिद्धिदात्री माता दिन में कई रूप धारण करने के लिए भी प्रसिद्ध हैं।
ये है इतिहास
मंदिर का निर्माण कब और कैसे हुआ इसका कोई प्रमाण नहीं है परन्तु यह मंदिर अतिप्राचीन और ऐतिहासिक है। इतिहासकारों के मुताबिक कुछ लोग इसे महाराज छत्रसाल द्वारा बनवाए जाने की संभावना व्यक्त करते हैं क्योंकि सन् 1726 में सागर जिले में महाराज छत्रसाल द्वारा कई बार आक्रमणों का उल्लेख इतिहास में वर्णित है। सिंधिया राज घराने का संबंध भी रानगिर से होना बताया जाता है।
यह महराजा छत्रसाल और धामोनी के मुगल फौजदार खालिक के बीच हुए एक युद्ध का साक्षी था। मराठा सूबेदार गोविंदराव पंडित ने रानगिर को अपना मुख्यालय बनाया था।
कन्या देती थी चांदी का सिक्का
एक किवदंति प्रचलित है कि यह मंदिर पहले रानगिर में नहीं था नदी के उस पार देवी जी रहती थीं। माता, कन्याओं के साथ खेलने के लिए आया करती थीं। एक दिन गांव के लोगों ने देखा कि यह कन्या सुबह खेलने आती है और शाम को कन्याओं को एक चांदी का सिक्का देकर बूढ़ी रानगिर को चली जाती हैं। उसी दिन हरसिद्धि माता ने सपना दिया कि मैं हरसिद्धि माता हूं, बूढ़ी रानगिर में रहती हूं। यदि बूढ़ी रानगिर से रानगिर में ले जाया जाए तो रानगिर हमारा नया स्थान होगा। रानगिर में बेल वृक्ष के नीचे हरसिद्धि मां की प्रतिमा मिली। लोग बेल की सिंहासन पर बैठाकर उन्हें सायंकाल रानगिर लाए। दूसरे दिन लोगों ने उठाने का प्रयास किया कि आगे की ओर ले जाया जाए, लेकिन देवी जी की मूर्ति को हिला नहीं सके। ऐसी मान्यता है कि माता के सुबह दर्शन करो तो कन्या रूप में दर्शन होते हैं। दोपहर में युवा अवस्था तथा शाम को वृद्धावस्था में दर्शन देती हैं।
रानगिर का रहस्य
दूसरी किवदन्ती के अनुसार भगवान शंकर जी ने एक बार सति के शव को हाथों में लेकर क्रोध में तांडव नृत्य किया था। नृत्य के दौरान सती माता के अंग पृथ्वी पर गिरे थे। सती माता के अंग जिन जिन स्थानों पर गिरे वह सभी शक्ति पीठों के रूप में प्रसिद्ध हैं। ऐसी मान्यता है कि रानगिर में सती माता की राने (जांघें) गिरी थीं और इसीलिए इस क्षेत्र का नाम रानगिर पड़ा। रानगिर के पास ही गौरीदांत नामक क्षेत्र है यहां सती माता के दांत गिरना माना जाता है। एक अन्य किंवदन्ती के अनुसार भगवान राम ने वनवास के दौरान रानगिर के पर्वतों पर विश्राम किया था और इस कारण इस क्षेत्र का नाम रामगिरी था जो बाद में रानगिर हो गया।
कैसे पहुंचें
यह सागर-रहली मार्ग पर रहली से करीब 20 किमी दूर देहार नदी के पूर्व तट पर घने जंगलों एवं सुरम्य वादियों के बीच स्थित हरसिद्धि माता के दरबार में पहुंचने के लिए जिला मुख्यालय सागर से दो तरफा मार्ग है। सागर, नरसिंहपुर नेशनल हाइवे पर सुरखी के आगे मार्ग से बायीं दिशा में आठ किलोमीटर अंदर तथा दूसरा मार्ग सागर-रहली मार्ग पर पांच मील नामक स्थान से दस किलोमीटर दाहिनी दिशा में रानगिर स्थित है। मेले के दिनों में सागर, रहली, गौरझामर, देवरी से कई स्पेशल बस दिन-रात चलती हैं। दोनों ओर से आने-जाने के लिए पक्की सड़कें हैं। निजी वाहनों से भी लोग पहुंचते हैं।