नगालैंड (Nagaland) के मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो (Neiphiu Rio) ने कहा है कि केंद्र सरकार नगालैंड से अफ्सपा (AFSPA) हटाने की राज्य सरकार की मांग पर विचार कर रही है. उन्होंने कहा कि बहुत जल्द सकारात्मक निर्णय होने की उम्मीद जताई. सचिवालय में गणतंत्र दिवस समारोह को संबोधित करते हुए रियो ने कहा कि मोन में सुरक्षा बलों द्वारा 14 नागरिकों की हत्या की जांच के लिए गठित विशेष जांच दल (SIT) के काम में प्रगति हुई है. उन्होंने कहा, हम उन लोगों के परिवार के लोगों के दर्द को कम करने के लिए हर उपाय कर रहे हैं जिन्होंने अपने प्रियजनों को खोया है और जो लोग जख्मी हुए हैं. उन्होंने कहा कि हमें विश्वास है कि परिजनों से न्याय होगा.
रियो ने कहा कि मोन में हत्या के बाद राज्य कैबिनेट ने केंद्र के समक्ष सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (अफ्सपा), 1958 को तुरंत हटाने की मांग की थी और 20 दिसंबर को इस सिलसिले में विधानसभा में प्रस्ताव पारित किया गया था. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने नगालैंड से अफ्सपा को हटाने का मामला केंद्र के समक्ष उठाया है. रियो ने कहा, केंद्र सरकार मामले पर विचार कर रही है और हमें जल्द सकारात्मक निर्णय की उम्मीद है.
उन्होंने कहा कि नगा राजनीतिक समूहों और केंद्र के बीच राजनीतिक मुद्दे पर समझौता सौहार्दपूर्ण माहौल में हो रहा है ताकि कोई समाधान निकल सके. मुख्यमंत्री ने कहा कि सभी विधायक एकजुट हैं और विपक्ष रहित सरकार बनाई है ताकि समझौता कर रहे पक्षों को बताया जा सके कि राज्य सरकार सम्मानजक, समग्र एवं स्वीकार्य समाधान की उम्मीद करती है.
क्या है AFSPA कानून?
AFSPA कानून के तहत केंद्र सरकार राज्यपाल की रिपोर्ट के आधार पर किसी राज्य या क्षेत्र को अशांत घोषित कर वहां केंद्रीय सुरक्षा बलों को तैनात करती है. अफस्पा, पूर्वोत्तर के विवादित इलाकों में सुरक्षाबलों को विशेष अधिकार देता है. इसके तहत सुरक्षाकर्मियों को तलाशी अभियान चलाने और किसी को भी बिना किसी वारंट के गिरफ्तार करने की अनुमति दी गई है. संदेह की स्थिति में सुरक्षाकर्मियों को किसी भी गाड़ी को रोकने, तलाशी लेने और उसे जब्त करने का अधिकार होता है. गिरफ्तारी के दौरान वे किसी भी तरह की शक्ति का इस्तेमाल कर सकते हैं. AFSPA के प्रावधान पूर्वोत्तर के देश के सात राज्यों में लागू हैं. शुरुआत में इस कानून को अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड और त्रिपुरा में लागू किया गया था. बढ़ती उग्रवादी गतिविधियों के चलते साल 1990 में जम्मू-कश्मीर में भी इस कानून को लागू किया गया था.
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