
मैरिटल रेप (Marital Rape) को अपराध मानने संबंधी याचिकाओं पर दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) में सुनवाई के बीच कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Congress Leader Rahul Gandhi) ने रविवार को कहा कि सहमति समाज में कमतर आंकी गई अवधारणाओं में से एक है और महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए इसे सर्वोपरि रखना चाहिए. गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) आरआईटी फाउंडेशन और ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक वीमेंस एसोसिएशन की ओर से दायर जनहित याचिकाओं पर दिल्ली हाई कोर्ट में सुनवाई के बीच कांग्रेस नेता ने ये टिप्पणी की है. याचिकाओं में रेप संबंधी कानून के तहत पतियों को माने गए अपवाद को खत्म करने का अनुरोध किया गया है.
कुछ पुरुष अधिकार संगठनों ने भी याचिका दायर की है, जो अपवाद को रद्द करने की मांग करने वाली याचिकाओं का ये कहते हुए विरोध कर रहे हैं कि भेदभाव का सवाल ही नहीं है और संसद ने भारतीय समाज के समग्र दृष्टिकोण को देखते हुए प्रावधान को बरकरार रखा है. राहुल गांधी ने हैशटैग ‘मैरिटल रेप’ का इस्तेमाल करते हुए ट्वीट कर कहा कि सहमति हमारे समाज में कमतर आंकी गई अवधारणाओं में से एक है. महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए इसे सर्वोपरि रखना चाहिए.
Consent is amongst the most underrated concepts in our society.
It has to be foregrounded to ensure safety for women. #MaritalRape
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) January 16, 2022
अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है मैरिटल रेप- केंद्र सरकार
केंद्र सरकार ने मामले में पूर्व में दाखिल अपने हलफनामे में कहा था कि मैरिटल रेप को अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता, क्योंकि इससे ऐसी स्थिति बन सकती है जो विवाह की संस्था को अस्थिर कर सकती है और पतियों को परेशान करने का एक आसान साधन बन सकती है. दिल्ली सरकार ने अदालत को बताया है कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत मैरिटल रेप को पहले से ही ‘क्रूरता के अपराध’ के रूप में शामिल किया गया है.
महिला के अस्तित्व पर मौलिक हमला?
याचिकाकर्ता एनजीओ ने आईपीसी की धारा 375 के तहत मैरिटल को अपवाद माने जाने की संवैधानिकता को इस आधार पर चुनौती दी है कि ये उन विवाहित महिलाओं के साथ भेदभाव करती है, जिनका उनके पति यौन उत्पीड़न करते हैं. भारतीय दंड संहिता की धारा 375 (बलात्कार) के तहत प्रावधान किसी व्यक्ति द्वारा उसकी पत्नी के साथ शारीरिक संबंधों को बलात्कार के अपराध से छूट देता है, बशर्ते पत्नी की उम्र 15 साल से अधिक हो. न्यायमूर्ति राजीव शकधर और न्यायमूर्ति सी हरिशंकर की पीठ के समक्ष उन्होंने दलील दी कि अगर प्रावधान यही संदेश देता है तो क्या यह किसी पत्नी या महिला के अस्तित्व पर मौलिक हमला नहीं है?
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(इनपुट- भाषा के साथ)