अत्याचार और शोषण के खिलाफ बिगुल बजाकर आजादी के आंदोलन में कूदने वाले न जाने कितने ही क्रांतिवीरों ने देश पर अपने प्राण न्योछावर कर दिए. ऐसे ही गौरवशाली योद्धा थे कोमाराम भीम (कोमुरम भीम), वो आदिवासी वीर योद्धा, जिन्होंने जल, जंगल और जमीन का नारा देकर अपने दम पर हैदराबाद के निजाम और ब्रिटिश राज के खिलाफ संघर्ष का बिगुल फूंक दिया था. इनकी अपनी गोरिल्ला आर्मी थी जिसने अंग्रेजों और हैदराबाद के निजाम की नाक में दम कर दिया था. कई बार इन्होंने युद्ध में हैदराबाद की सेना को हराया, लेकिन अंत में वीरगति को प्राप्त हुए. अभी कुछ माह पहले रिलीज फिल्म RRR में जूनियर NTR का किरदार इन्हीं कोमाराम भीम से प्रेरित था.
बचपन से करना पड़ा संघर्ष
कोमाराम भीम का जन्म 1901 में आसिफाबाद जिले के संकपल्ली गांव में हुआ था. (उस वक्त यह जिला हैदराबाद में था लेकिन अब तेलंगाना में है). इनके पिता का नाम कोमाराम चिन्नू था. गोंड आदिवासी जनजाति में जन्म लेने वाले कोमाराम की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी, लिहाजा इनकी पढ़ाई- लिखाई नहीं हो सकी और ये भी बाहरी दुनिया से अंजान रहे. उन्हें बचपन से ही संघर्ष करना पड़ा.
अन्याय और अत्याचार के खिलाफ छेड़ा विद्रोह
ये वो दौर था जब देश की नेचुरल संपदा पर भी अंग्रेज कब्जा करने लगे थे, हैदराबाद के निजाम अंग्रेजों के समझौता कर शासन कर रहे थे. लिहाजा आदिवासियों पर लगातार अन्याय और अत्याचार किया जा रहा था. फसलों से जो आमदनी होती थी उन पर लगान वसूला जाता था. न देने पर जुल्म ढाए जाते थे. इन्हें देखकर कोमाराम भीम ने विद्रोह छेड़ दिया और ऐलान किया कि वे हैदराबाद को आसफ शाही राजवंश से मुक्ति दिलाकर रहेंगे.
दिया जल, जंगल और जमीन का नारा
कोमाराम भीम ने विद्रोह का बिगुल फूंकने के बाद ये ऐलान किया कि जंगलों में रहने वाले लोगों का वन के सभी संसाधनों पर अधिकार है, निजाम को इसमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, उन्होंने ही जल, जंगल और जमीन का नारा दिया.
भगत सिंह से थे प्रभावित
साउथ के इतिहासकारों की मानें तो जिस वक्त कोमाराम भीम ने हैदराबाद के निजाम और ब्रिटिश राज के खिलाफ संघर्ष का ऐलान किया था उस वक्त देश में स्वतंत्रता आंदोलन तेजी से चल रहा था, भगत सिंह देश पर अपने प्राण न्योछावर कर चुके थे. कहा जाता है कि कोमाराम भीम भी भगत सिंह से प्रभावित थे, उन पर उन आदिवासियों योद्धाओं का भी प्रभाव था जो अपनी माटी के लिए प्राणों की आहुति दे चुके थे.
निजाम के पट्टेदार की कर दी थी हत्या
हैदराबाद के निजाम ने लगान वसूली के लिए पट्टेदारों को तैनात कर रखा था, एक आदिवासी गांव में लगान वसूली के दौरान जब पट्टेदार सिद्दीकी ने आदिवासियों पर जुल्म किए तो कोमाराम भीम ने उसकी हत्या कर दी. इसके बाद उन्हें गांव छोड़ना पड़ा और जंगलों की शरण लेनी पड़ी.
बनाई अपनी गोरिल्ला आर्मी
अब तक निजाम को कोमाराम भीम के विद्रोह की खबर लग चुकी थी, ऐसे में निजाम ने भीम को पकड़ने के लिए कई बार सेना भेजी. इधर कोमाराम भीम ने भी अपनी गोरिल्ला आर्मी तैयार कर ली थी जो हर बार सेना का मुकाबला करती थी और जंगलों में छिप जाती थी, इससे लगातार सेना हारती रही.
समझौते से किया इन्कार
लगातार होती पराजय देखकर हैदराबाद के निजाम ने कई बार कोमराम भीम के पास अपना दूत भेजा और समझौते की पेशकश की, लेकिन कोमाराम भीम ने इससे इन्कार कर दिया. इसके बाद निजाम ने और बड़ी टुकड़ी को युद्ध के लिए भेजा.
1940 में किया गया छल, मिली वीरगति
कोमाराम भीम ने 1928 से लेकर 1940 तक लगातार निजाम और अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था. 1940 में निजाम ने एक बार फिर सेना भेजी और इस बार भीम के साथ धोखा किया गया. अंतत: उन्हें वीरगति मिली. आदिवासियों के दिलों में वो आज भी जिंदा हैं, कई स्थानों पर उन्हें देवता की तरह पूजा जाता है.
RRR में उन्हीं को समर्पित था किरदार
हाल ही में रिलीज हुई तेलगू सिनेमा की बड़ी फिल्म RRR में जूनियर NTR का किरदार कोमाराम भीम को ही समर्पित है, बेशक फिल्म काल्पनिक थी, लेकिन लीड किरदार भीम के संघर्षों और उनके व्यक्तित्व को ध्यान में ही रखकर लिखा गया था. फिल्म में किरदार का नाम भी भीम ही रखा गया है.
जिले का बदला गया नाम
2016 में आसिफाबाद जिले का नाम बदलकर कोमाराम भीम आसिफाबाद जिला रख दिया गया. यहां पर एक स्मारक और कोमाराम भीम संग्रहालय की स्थापना कराई गई है, ताकि लोगों को आदिवासी वीर योद्धा के बारे में जानकारी मिल सके.