क्रांतिकारियों के लिए आजादी संकल्प भी थी और लक्ष्य भी. मगर स्वराज का एक योद्धा ऐसा भी था जो आजादी को ही हर रोग की दवा मानता था. यही कारण था कि किसानों की बुरी दशा देखकर उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह का ऐलान कर दिया था. ये शख्स कोई और नहीं बल्कि क्रांतिकारी वासुदेव बलवंत फड़के थे. यही वो पहले शख्स थे जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र आंदोलन के लिए एक बहुत बड़ा संगठन बना दिया था. जिसका नाम ‘रामोशी’ था. Tv9 की इस खास सीरीज में आज हम उन्हीं वीर को नमन करते हैं.
महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले में हुआ था जन्म
वासुदेव बलवंत फड़के का जन्म महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले में स्थित शिरढोणे गांव में हुआ था. उनके पिता चाहते थे कि वे कुछ काम करें लेकिन प्राथमिक पढ़ाई के बाद ही वे मुंबई आ गए और यहीं जंगलों में हथियार चलाने की ट्रेनिंग ली.
सशस्त्र आंदोलन का ऐलान
ये वो दौर था जब किसानों पर अंग्रेज अत्याचार कर रहे थे, इन्हीं अत्याचारों को देखकर उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह का ऐलान कर दिया. उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह के लिए लोगों को जागरूक किया. इसके अलावा कोली, भील तथा धांगड़ जातियों को इकट्ठा कर ‘रामोशी’ नाम का क्रान्तिकारी संगठन बनाया.
धन जुटाने के लिए ब्रिटिश साहूकारों को लूटा
अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र आंदोलन के लिए हथियारों की जरूरत थी, ऐसे में वासुदेव बलवंत फंड़के ने क्रांतिकारियों के साथ धनी अंग्रेज साहूकारों को लूटा. उन्हें सबसे ज्यादा प्रसिद्धि तब मिली थी जब उन्होंने पुणे शहर को अंग्रेजों से छीन लिया था. हालांकि कुछ दिन बाद फिर से अंग्रेजों ने शहर पर कब्जा कर लिया था.
1979 में हुई उम्रकैद की सजा
वासुदेव बलवंत फड़के 20 जुलाई 1979 को बीजापुर में पकड़ लिए गए, अंग्रेजों ने उनपर मुकदमा चलाया. राजद्रोह के आरोप में उन्हें कालापानी की सजा हुई. यमन जेल में हालत बिगड़ने से 17 फरवरी 1883 को उनका निधन हो गया.