New Bail Law: नए ‘जमानत कानून’ पर सरकार को विचार करने का निर्देश, सुप्रीम कोर्ट ने कहा- आजादी से पहले के प्रावधान अब भी मौजूद

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Supreme Court On New Bail Law: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार (Central Government) को आपराधिक मामलों में आरोपियों की रिहाई को आसान बनाने और उन्हें जमानत देने के लिए एक नया कानून बनाने पर विचार करने का निर्देश दिया है. खासकर उन मामलों में जहां अपराध के लिए अधिकतम सजा 7 साल तक की जेल है. कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि भारत को कभी-भी ‘पुलिस का राज’ बनाने का प्रयास नहीं किया जाना चाहिए, जिसमें इन्वेस्टीगेशन एजेंसियां औपनिवेशिक युग की तरह कार्य करती हैं. गैरजरूरी गिरफ्तारियों को रोकने और क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में निष्पक्षता लाने के लिए एक नया कानून बनाने पर विचार करना जरूरी है.

कोर्ट ने निर्देश देते हुए कहा कि स्वतंत्रता कानून में निहित है. इसलिए इसका संरक्षण और रक्षा करना दोनों जरूरी है. शीर्ष अदालत ने कहा कि “आपराधिक दंड प्रक्रिया संहिता” (Code of Criminal Procedure) आजादी से पहले के दंड प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों में संशोधनों के साथ लगभग उसी रूप में आज भी अस्तित्व में है. कोर्ट ने यह भी कहा कि देश की जेलों में विचाराधीन कैदियों की बाढ़ है और संज्ञेय अपराध के पंजीकरण के बावजूद अधिकांश को गिरफ्तार करने की भी जरूरत नहीं हो सकती है.

लोकतंत्र में ‘पुलिस राज’ संभव नहीं

नेताओं, कार्यकर्ताओं और पत्रकारों सहित कई विचाराधीन कैदियों की जमानत याचिकाओं को देखते हुए नए जमानत कानून को तैयार करने पर विचार करने की सिफारिश महत्व रखती है. शीर्ष अदालत ने कहा कि लोकतंत्र में ऐसी छवि कभी नहीं बन सकती है कि यह पुलिस राज है. कई दिशा-निर्देशों को पारित करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारत में आपराधिक मामलों (Criminal Cases) में दोषसिद्धि की दर बहुत कम है और जमानत आवेदनों का फैसला करते वक्त यह कारक नकारात्मक अर्थों में कोर्ट के जेहन में होता है.

‘जमानत’ पर सख्ती से करना होगा फैसला

कोर्ट ने कहा, ‘अदालतें यह सोचती हैं कि सजा की संभावना दुर्लभता के करीब है. कानूनी सिद्धांतों के उलट जमानत आवेदनों पर सख्ती से फैसला करना होगा. हम एक जमानत आवेदन पर विचार नहीं कर सकते हैं, जो प्रकृति में दंडात्मक नहीं है.’ जस्टिस एसके कौल और जस्टिस एम. एम. सुंदरेश की बेंच ने कई दिशानिर्देश जारी करते हुए कहा कि जांच एजेंसियां और उनके अधिकारी आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CRPC) की धारा 41-A (आरोपी को पुलिस अधिकारी के समक्ष पेश होने का नोटिस जारी करना) का पालन करने के लिए बाध्य हैं.

विचाराधीन कैदियों का पता लगाने का निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने सभी हाईकोर्ट्स से उन विचाराधीन कैदियों का पता लगाने को भी कहा है, जो जमानत की शर्तों को पूरा नहीं कर पा रहे हैं या ऐसा करने में असमर्थ हैं. कोर्ट ने ऐसे कैदियों की रिहाई में मदद के लिए जरूरी कदम उठाने का भी निर्देश दिया है. शीर्ष अदालत ने सभी हाईकोर्ट और राज्यों तथा केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों से 4 महीने में इस मामले में स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है. अदालत ने सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन (CBI) द्वारा एक व्यक्ति की गिरफ्तारी से जुड़े मामले में फैसला सुनाए जाने के दौरान ये दिशानिर्देश जारी किए.

(भाषा इनपुट के साथ)

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