
एक पिता को चिंता है कि वह अपने बेटे की कब्र की मिट्टी को भी कभी नहीं छू पाएगा. इस बात से वह बहुत आहत हैं. फिलहाल मामला सुप्रीम कोर्ट मे है. दरअसल अब्दुल लतीफ मागरे अपने बेटे की कब्र से उसके शव को निकलवाने की कोशिश कर रहे हैं. जिसकी मौत नौ महीने पहले श्रीनगर के हैदरपोरा इलाके में एक एनकाउंटर के दौरान 3 अन्य लोगों के साथ हो गई थी. उन्होंने कहा, हर दिन यह बोझ उन पर बढ़ता जा रहा है.
मामला फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में है. मागरे ने कहा, ‘जितना समय इसमें लग रहा है, उतना ही मैं चिंतित हो रहा हूं कि शायद मुझे अपने बेटे की कब्र की मिट्टी भी छूने के लिए नसीब नहीं होगी.’ नवंबर 2021 में हैदरपोरा में हुए एक एनकाउंटर में 4 लोगों की मौत हुई थी. इस दौरान जम्मू-कश्मीर की नई पॉलिसी के हिसाब से अगर ऐसी कोई घटना होती है तो संदिग्ध आतंकियों की लाशों को बिना निशान वाली जगह पर दफना दिया जाता है.
4 की मौत, 2 का शव लौटाया
एनकाउंटर में चार लोगों की मौत हुई थी. इनमें से एक को पाकिस्तानी आतंकवादी बताया गया, बाकी तीन के परिवारों ने पुलिस के दावों का विरोध किया. इस मामलें में पुलिस ने एक बिजनेसमैन अलताफ भट और डॉक्टर मुदस्सर गुल के शवों को कब्र से बाहर निकालकर उनके परिवारों को सौंप दिया ताकि वह विधिपूर्वक उनका अंतिम संस्कार कर सकें.
इस मामले में आमिर की डेड बॉडी हंदवारा में ही रह गई. हालांकि पुलिस ने कहा था कि आमिर एक आतंकवादी था. बता दें कि आमिर के पिता मागरे आतंकियों से लड़ने के लिए सरकार की ओर से वीरता पुरुस्कार दिया गया है. मागरे ने इस बात का विरोध किया. एक डिपार्टमेंटल जांच में पुलिस ने खुद को क्लीन चिट दी है.
हाईकोर्ट के आदेश की नाफरमानी
27 मई को जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने मागरे की याचिका पर प्रशासन को आदेश दिए थे कि वह आमिर के शरीर को निकालकर उनके परिवार को सौंपे. हाईकोर्ट ने यह भी कहा था कि उनके परिवार को अंतिम संस्कार से वंचित करना अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है. इसके बाद भी प्रशासन ने अभी तक इस आदेश का पालन नहीं किया है और डेड बॉडी की सड़न का बहाना देकर हर बार आदेश टाल रहे हैं. हालांकि मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 29 अगस्त को इस मामले में फैसला सुरक्षित रखा है.
मागरे ने कहा कि उन्हें अपने देश के कानून पर अभी भी भरोसा है और फैसला उनके पक्ष में ही होगा. मागरे ने कहा, ‘मेरा किसी से कोई झगड़ा नहीं है, मुझे बस मेरे बेटे का चेहरा देखने दो. मुझे और कुछ नहीं चाहिए.’
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