दिल्ली स्थित ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस (AIIMS) ने सांसदों के लिए इलाज सुविधाओं को सुव्यवस्थित करने के लिए जारी अपनी SOP को वापस ले लिया है. एम्स प्रशासन ने यह फैसला कुछ डॉक्टरों की आलोचना के बाद किया है. चीफ एडमिनिस्ट्रेटिव ऑफिसर देवनाथ शाह ने शुक्रवार को एसओपी वापसी का आदेश जारी किया. दरअसल एम्स के निदेशक एम. श्रीनिवास ने लोकसभा सचिवालय के संयुक्त सचिव वाई. एम. कांडपाल को हाल ही में लिखे एक पत्र में ‘आउट पेशेंट डिपार्टमेंट’ (ओपीडी), आपातकालीन परामर्श और लोकसभा व राज्यसभा दोनों के मौजूदा सांसदों को अस्पताल में भर्ती कराने के लिए एसओपी जारी किया था.
श्रीनिवास ने अपने पत्र में कहा था कि अस्पताल प्रशासन विभाग के ड्यूटी अधिकारी एम्स के कंट्रोल रूम में 24 घंटे उपलब्ध रहेंगे, ताकि व्यवस्थाओं का समन्वय और उसे सुविधाजनक बनाया जा सके. इस कदम की कई चिकित्सक संघों ने तीखी आलोचना की थी और इसे प्रमुख स्वास्थ्य संस्थान में ‘वीआईपी कल्चर’ बताया था. जिसके बाद इस पत्र को अस्पताल प्रशासन ने शुक्रवार को वापस ले लिया. देवनाथ शाह द्वारा हस्ताक्षरित नए पत्र में लिखा गया है कि “एम्स में सांसदों के लिए मेडिकल व्यवस्था को लेकर जारी 17 अक्टूबर के पत्र को तत्काल प्रभाव से वापस लिया जा रहा है.”
‘एक साझा सफलता’
एम्स प्रशासन द्वारा एसओपी वापसी के फैसले के तुरंत बाद फेडरेशन ऑफ रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन (FORDA) ने ट्वीट किया, ‘तो विशेष विशेषाधिकार को वापस ले लिया गया है. समर्थन करने वाले सभी पर गर्व है.’ इसने एक अन्य ट्वीट में कहा, ‘कारण, तर्क और संकल्प की आवाज एक बड़ा बदलाव ला सकती है. हम सभी को उनके समर्थन और स्वास्थ्य सेवा में वीआईपी कल्चर के खिलाफ खड़े होने के लिए धन्यवाद देते हैं. यह एक साझा सफलता है.’
फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया मेडिकल एसोसिएशन (FAIMA) ने गुरुवार को एम्स प्रशासन की एसओपी को लेकर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया को पत्र लिखा था. FAIMA ने कहा, ‘हम हमेशा वीआईपी कल्चर के खिलाफ खड़े होते हैं. हम अपने रुख से कभी समझौता नहीं करेंगे. निदेशक को सांसदों के लिए विशेष उपचार संबंधी पत्र वापस लेना पड़ा.’
वीआईपी कल्चर की निंदा
एफओआरडीए ने गुरुवार को एसओपी पर सवाल उठाया था और कहा था कि सांसदों के लिए विशेष व्यवस्थाओं से मरीजों को मिलने वाली सेवाओं पर असर पड़ सकता है. इसने ट्वीट किया, ‘हम इस वीआईपी कल्चर की निंदा करते हैं. किसी भी मरीज को दूसरे के विशेषाधिकारों से नुकसान नहीं होना चाहिए. ऐसा कहा जा रहा है कि चीजों को सुव्यवस्थित करने के लिए बनाए गए इस प्रोटोकॉल को अपमानजनक नहीं मानना चाहिए, लेकिन इससे किसी दूसरे मरीज की देखभाल में बाधा नहीं आनी चाहिए.’
…
(एजेंसी इनपुट के साथ)
दोआब (Doab) किसे कहते हैं? और जानिए भारत के दोआब क्षेत्रों के बारे में