सभी कार्यक्रम छोड़ ‘बुंदेलखंड के गांधी’ के घर पहुंच गए नेताजी, यूं हीं नहीं कहलाए धरती पुत्र

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Mulayam Singh Yadav

सर्दियों का महीना था. छत पर सभी लोग धूप सेंक रहे थे. अचानक पुलिस का सायरन बजता है और लोग अपनी छतों से नीचे की झांकते हैं. शांत इलाके में अचानक इतनी पुलिस फोर्स देखकर लोगों ने सोचा कि ऐसा क्या हो गया जो पूरे मोहल्ले को छावनी में तब्दील कर दिया. हमारी उम्र होगी कुछ 13-14 साल. यूपी से थे तो राजनीति में दिलचस्पी भी थी और इल्म भी था. हम भागते हुए सीढ़ियों से नीचे पहुंचे और तमाशा देखने लगे. हम देख रहे हैं कि सफाई कर्मी फटाफट कोना-कोना साफ कर रहे हैं. पुलिस वायरलेस से बात कर रही है. पूरा रास्ता ब्लॉक कर दिया गया. तब हमको बताया गया कि नेताजी आ रहे हैं.

बड़े इलाकों के लिए भले ये सब कोई खास न हो मगर छोटे गांव, कस्बे में सायरन बजाती पुलिस गाड़ी देखकर लोग सहम जाते थे. खाकी वर्दी तो पहले देखी थी लेकिन रंग बिरंगी पुलिस फोर्स पहली बार देख रहे थे. उसमें कुछ कमांडों भी थे. किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था. तभी मोहल्ले के एक चाचा से पूछा, ‘चाचा, क्या हो गया है ? इतनी पुलिस फोर्स यहां क्यों आई है. उन्होंने बताया अरे बेटा नेताजी आ रहे हैं. फिर मेरा सवाल कि ये नेताजी कौन हैं ? तब उन्होंने एकदम डांटते हुए जैसे पता नहीं पूछकर मैंने कौन सा अपराध कर दिया हो. बोले- यूपी के मुख्यमंत्री मु्लायम सिंह यादव जी आ रहे हैं बाबू जी से मिलने.

सीएम रूट को तोड़ मुलायम सिंह पहुंचे मुलाकात करने

बाबूजी के बारे में आपको थोड़ा समझा देता हूं तो आपको कहानी समझ आ जाएगी. बाबू जी का नाम था जमुना प्रसाद बोस, जिन्हें लोग बुंदेलखंड का गांधी भी कहते थे. ऐसा ईमानदार नेता हमने अपनी जिंदगी में देखा ही नहीं. आजादी की लड़ाई में जेल गए, आंदोलन किए. जिस वक्त जाति आधारित चुनाव होते थे उस वक्त बाबूजी को हर वर्ग के लोग वोट देते थे. सन 2000 में बोस जी ने समाजवादी पार्टी जॉइन की. 2002 में उनको टिकट दिया गया मगर वो चुनाव हार गए. 2003 या 2004 की बात है, सीएम मुलायम सिंह यादव को बांदा आना था. तैयारियां पूरी हो चुकीं थीं. नेताजी सभा स्थल पहुंच गए मगर पीछे मुड़कर देखा तो जमुना प्रसाद बोस वहां नहीं थे. उन्होंने पार्टी पदाधिकारियों से पूछा तो बताया गया कि उनकी तबीयत ठीक नहीं है. बाद में ये भी कहा गया कि शायद उनको बुलाया नहीं था तो वो नाराज थे इसलिए नहीं पहुंचे थे. जैसे ही मुलायम सिंह ने सभा खत्म की वो सीधे बाबू जी की घर की ओर बढ़े.

नाराज बाबू जी को मनाने पहुंचे मुलायम सिंह

सीएम रूट में वो शामिल नहीं था. सारे अधिकारियों के हाथ पैर फूल गए थे. अचानक सूचना आती है कि बाबूजी से मिलने नेताजी आ रहे हैं. हम सभी लोग बाबू जी के घर ही खेलते थे. वहीं उनसे राजनीति की बातें भी करते थे. आजादी की एक से बढ़कर एक कहानियां वो हमको सुनाते थे. हम वहीं पर थे अचानक सफेद धोती और चमचमाते हुए कुर्ते के ऊपर सदरी पहले हुए मुलायम सिंह यादव घर आए. उनकी छवि देखने लायक थी. वो हम सब बच्चों से भी मिले. वो एक याद है जब उन्होंने हमें एक गुलाब का फूल दिया और कहा की खूब आगे बढ़ो तरक्की करो. इसके बाद लगभग एक घंटे तक वो बाबू जी के पास बैठे रहे. बताया जाता है कि उन्होंने बाबूजी से पूछा कि आप सभा में क्यों नहीं आए. तो उन्होंने तबीयत खराब की बात बताई लेकिन नेताजी ने कहा कि लगता है आप हमसे नाराज थे इसलिए नहीं आए. चलिए कोई बात नहीं आप नहीं आए तो हम ही चले आए…

‘बुंदेलखंड के गांधी’ का सियासी सफर

बुंदेलखंड के गांधी कहे जाने वाले जमुना प्रसाद बोस का राजनीतिक सफर भी शानदार रहा. 1974 प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से पहली बार विधायक चुने गए. 1977 में पार्टी का विलय जनता पार्टी में हुआ तो फिर विधायक चुने गए और कैबिनेट मंत्री भी बनाए गए. 1985 में जनता पार्टी से फिर विधायक चुने गए. इसके बाद 1989 में जनता दल बनाया गया. अब इस बार बोस जी को फिर टिकट मिला और फिर जीत मिली. साल 2000 में उन्होंने सपा जॉइन की थी. चुनाव भी लड़ा मगर वो कुछ वोटों से हार गए थे.

ये कद था नेताजी का

मुलायम सिंह यादव का राजनीतिक कद बहुत ऊंचा था. कार्यकर्ताओं को वो अपने परिवार का हिस्सा मानते थे. अगर उनको पता चल जाए कि फला कार्यकर्ता नाराज है तो वो उसको मनाने खुद की पहुंच जाते थे. ये आपको बताता है कि कैसे लोग उनको नेताजी कहते थे. राजनीति के धुर विरोधियों से भी उनके रिश्ते काफी अच्छे थे. आज वो हमारे बीच नहीं है तो यादों का कारवां एकदम उसी दौर में चला गया जब वो मिले और गुलाब का फूल दिया.

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