सिर्फ पराली से महीनेभर में कमाए 16 लाख, मिलिए 12वीं पास इस युवा किसान से

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Paddy Stubble Symm Pi

जिस पराली को लेकर दिल्ली-एनसीआर, पंजाब और हरियाणा में जमकर विवाद उठा, यहां की सरकारें आपस में उलझती रहीं और एक-दूसरे पर आरोप तक लगाती रहीं, उसी को लेकर पंजाब के एक किसान ने महीने भर में ही 16 लाख रुपये कमा लिए और कई अन्य किसानों की भी कमाई बढ़ा दी. इसका फायदा यह हुआ कि इस युवा किसान के इलाके में पराली जलाने की घटना बहुत कम देखी गई. हर साल अक्टूबर और नवंबर में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में वायु प्रदूषण के स्तर में खतरनाक वृद्धि के पीछे पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने को बड़ा कारण माना जाता रहा है.

बात उस किसान की हो रही है जो 12वीं पास है और इस युवा ने पराली से ही इतने पैसे कमा लिए कि वह दूसरे किसानों के लिए नजीर बन गया. बड़ी संख्या में किसान इस युवा से संपर्क करने लगे हैं. 12वीं के बाद पढ़ाई छोड़ने वाले गुरप्रीत सिंह कुठाला के लिए पराली का अर्थशास्त्र बेहद आसान है. उनके लिए बदनाम हो चुके पराली का मतलब है पैसा. मलेरकोटला के कुथला गांव में अपने परिवार की 40 एकड़ जमीन पर अपनी खेती से भी ज्यादा कमाई करते हैं.

पराली बेचकर कमा लिए 16 लाख

वेबसाइट इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, गुरप्रीत कहते हैं, “मैंने धान की पराली बेचकर एक महीने में 16 लाख रुपये कमा लिए.” यह सुनिश्चित करने के लिए कि पंजाब के अन्य किसान इसके महत्व को समझें, वह कहते हैं, “निजी क्षेत्र में काम करने वाले ज्यादातर लोगों को 8 लाख रुपये का वार्षिक पैकेज तक नहीं मिलता है.”

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गुरप्रीत सिंह (फोटो- इंडियन एक्सप्रेस)

25 वर्षीय इस युवा किसान का कहना है कि उन्होंने संगरूर स्थित जैव ईंधन उत्पादन कंपनी (biofuel generation company) के साथ 10,000 क्विंटल धान की पराली उपलब्ध कराने को लेकर एक समझौता किया था. उन्होंने कहा, “हालांकि, मैं करीब 750 एकड़ जमीन से 12,000 क्विंटल पराली एकत्र करने में कामयाब रहा.” वह कहते हैं कि अपने खेतों से पराली जुटाने के बाद पड़ोस के बधरांवा, खुर्द और चीमा गांवों के लोगों से पराली की व्यवस्था की. दूसरे गांवों के किसान तो पराली देकर इस बात से बेहद खुश थे क्योंकि उन्हें अगली फसल के लिए खेत तैयार करने को लेकर ज्यादा काम नहीं करना पड़ेगा.

पराली जलाए तो रेड एंट्री होंगे शामिल

इस बीच मलेरकोटला में पराली जलाने की घटनाओं में भारी कमी दर्ज की गई है. जिले ने धान की कटाई के मौसम से पहले ही अपनी मंशा दिखा दी थी, जब अक्टूबर के मध्य में इसकी 176 पंचायतों में से 154 ने पराली जलाने के खिलाफ प्रस्ताव पारित कर दिया था. जिला प्रशासन भी पहले ही ऐलान कर चुका था कि अगर कोई किसान पराली जलाता पाया गया तो वह रेड एंट्री में चला जाएगा. रेड एंट्री का सीधा सा मतलब है कि किसान किसी भी सरकारी सुविधा का लाभ नहीं उठा पाएगा और खेती के लिए पंचायत की जमीन पट्टे पर भी नहीं ले सकेगा.

गुरप्रीत सिंह का कहना है कि वह धान की पराली जलाने और इसके होने वाले दुष्प्रभावों को लेकर चल रही बहस से वाकिफ थे. उन्होंने कृषि अवशेषों के प्रबंधन पर काफी काम किया और फिर फसल अवशेष प्रबंधन योजना के तहत रियायती दरों पर दो रैकर और दो बेलर खरीदे.

अगले साल और मशीन खरीदने की तैयारी में गुरप्रीत

गुरप्रीत ने कहा, “मैंने 16 लाख रुपये कमाए. बेलर और रेकर चलाने के लिए ट्रांसपोर्टेशन, श्रम लागत और ईंधन पर होने वाले खर्च को हटा दें तो भी शुद्ध लाभ 8 लाख रुपये से अधिक का हुऐ होगा. मेरे पास दो रैकर और बेलर थे, तो मैं इतना ही काम कर पाया.”

यह युवा किसान अब अगली कटाई के मौसम से पहले अधिक मशीनें खरीदने की योजना बना रहा है ताकि वह अगली बार कम समय में अधिक से अधिक पराली एकत्र कर सके. उन्होंने कहा, “हमें गेहूं की बुवाई को लेकर जमीन तैयार करने के लिए समय पर खेतों को ठीक करने की जरूरत होती है, अन्यथा जमीन में नमी कम हो जाती है और किसान लगभग 15 महत्वपूर्ण दिन गंवा देते हैं.”

उनका कहना है कि संगरूर की एक फर्म ने उन्हें पराली के लिए 160 रुपये प्रति क्विंटल और परिवहन लागत के रूप में 10 रुपये प्रति क्विंटल अतिरिक्त भुगतान करने पर सहमति जताई थी. गुरप्रीत ने कहा, “मैंने खेतों से पराली एकत्र की, उनके बंडल बनाए और उन्हें संगरूर पहुंचाया. केवल 2-3 दिनों में ही मैंने खेतों को गेहूं की फसल के लिए तैयार कर दिया. जैसे ही मैंने अपने खेतों से पराली उठानी शुरू की, कई किसानों ने मुझसे संपर्क किया.” वह अब गन्ने की फसल के अवशेषों को भी एकत्र करने की योजना बना रहे हैं. गन्ने की कटाई नवंबर के अंत तक या दिसंबर के पहले हफ्ते में हो जाती है और किसान इसकी पराली को भी जला देते हैं.

मलेरकोटला के डिप्टी कमिश्नर सय्यम अग्रवाल ने गुरप्रीत की तारीफ की और कहा, “उनकी पहल ने कई किसानों की मदद की और काफी हद तक पराली को जलाने से रोका. साथ ही कई किसानों ने महसूस किया है कि पराली की कीमत बहुत अधिक होती है और वे इससे कमाई कर सकते हैं.”

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