भोली पंजाबन… गलवान… देशभक्ति, और रगों में बहता खून

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Richa Chadha

आजकल रीले और यूट्यूब शॉट्स देखना लोगों का फेवरेट टाइम पास होता है एक वायरल रील में आपने जरूर देखा होगा कैसे एक छोटी सी बच्ची सैनिक को देखकर सैल्यूट करती है. मन गर्व से भर भर जाता है इस वीडियो को देखकर कि छोटे-छोटे बच्चों के मन में भी सेना के लिए सम्मान का संस्कार है.

दरअसल, किसान और सैनिक… इस देश की वो दो कौम हैं जिसको आप सिर झुकाकर नमन करते हैं. जैसे डिप्लोमट को कुछ इम्यूनिटी होती है ना उससे बढ़कर. क्योंकि डिप्लोमेट की इम्यूनिटी प्रोटोकॉल का हिस्सा होती है लेकिन किसान और सैनिक के लिए सम्मान इस देश के दिल की अंतरआत्मा की आवाज़ होती है. किसान आंदोलन के दौरान भी जब इस देश के मुखिया को लगा कि वो किसानों को समझा पाने में असमर्थ रहें तो सर झुकाकर उन्होनें तीनों कानून वापस ले लिए.

हम कभी सैनिकों पर सवाल नहीं उठाते

वैसे ही इस देश के सैनिकों पर हम कभी सवाल नहीं उठाते. लेकिन लोकतंत्र की आड़ लेकर आजकल ना सिर्फ सुबूत मांगने का कल्चर शुरू हुआ है, बल्कि कोई भी सेना पर तंज करने की हिमाकत तक करने लगा है.

बस मुंह ही तो खोलना है, इन्हें सीमा पे थोड़ी ना जाना है, जब-जब देशप्रेम की बात होगी, उन्हें अपनी सीमा लांघ जाना है.

लेकिन लगता है लोगों को क्रिकेट और सेना का बेसिक अंतर समझना होगा. क्रिकेट में एक बाल पर आप आउट हो सकते हैं लेकिन सेना में एक गोली में शहीद. इसलिए मैच में दौरान तो घर बैठे साथ साथ कमेंट्री कर सकते हैं. अरे यार …’क्या कर रहा है यार’ कवर ड्राइव मारनी थी. ‘इसको उठा देना था सीधे मैदान पार सिक्स था.’ लेकिन क्या कभी आपकी हिम्मत पड़ेगी कि चलती गोलियों के बीच बताने की कैसे खेलना है? इसमें छाती-चौड़ी करके सीने पर गोली नहीं खानी थी. दो चार सिविलियन ही तो मरते. जैसे एक दो रन हाथ से निकल जाते हैं.

हो सकता है आपको अब ये सब खराब लगे और मजा ना आए लेकिन एनआरसी -सीएए प्रोटेस्ट के दौरान आप ही कह रहे थे मजा आ रहा है. मुद्दा ये है कि फिर से एक बॉलीवुड अभिनेत्री रिचा चढ्ढा ने उत्तरी सेना के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल उपेंद्र द्रिवेदी के एक बयान पर मजाक उड़ाया है.

कहीं ये आपकी कुंठा तो नहीं!

उत्तरी सेना के कमांडर ने जब कहा कि भारतीय सेना पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर को वापस लेने के लिए तैयार है अगर आदेश मिल जाए तो. ऋचा चड्ढा ने इस पर तंज कसते हुए लिखा GALWAN SAYS HI. जिस गलवान में भारत-चीन संघर्ष के दौरान भारत ने अपने बीस जाबांज जवानों को खो दिया था अभिनेत्री महोदया गलवान से हाय करवाकर अपने ही देश की सेना का, अपने ही देश के कमांडर का मखौल बना रही हैं.

आपको लगता है ये मजाक है? ये आलोचना है? ये निंदा है? नहीं. ये कुंठा है. किसी के लिए भी हो, लेकिन अपनी कुंठा को सेना के लिए निकालना… सॉरी आप जैसे तो आप को माफ कर देंगे. लेकिन इस देश की वो आबादी जिसका दिल इस देश के लिए धड़कता है. जिसका सीना तिरंगा देख के चौड़ा हो जाता है. वो हाथ वो वर्दी देख सैल्यूट के लिए उठता है. वो आपकी इज्जत कैसे करे.

लाइक रीट्वीट फॉलोअर्स सोशल मीडिया से कहीं ऊपर की चीज है सेना. जब आप नहीं थीं. जब आप फिल्मों में नहीं थीं. जब आप पहचान में नहीं थीं. बिना पहचाने भी आपके लिए लड़े होंगे ये. ये सेना का ही दिल है जो कश्मीर में बाढ़ को साजिश बताने वाले यासीन मलिक को भी बाढ़ से बचा लेती है.

आलोचना के हजार मौके

कई बार हमारे मन में कई तरह के विचार आते हैं जिन्हें मौके की नजाकत के हिसाब से ही हम व्यक्त, अभिव्यक्त करते हैं. जब देश आपके साथ खड़ा है आपको देश के साथ खड़ा ही दिखना चाहिए. और केवल इसी सूरत में क्यों अगर हमने इस धरती पर जनम लिया है तो क्या ये हमारा दायित्व नहीं.

आलोचना के हजार मौके खुले हैं लेकिन देश के नाम की एक लकीर कहीं तो होनी चाहिए. जब जनता ने इस हरकत पर घेरा तो ऋचा चड्ढा ने ना सिर्फ ट्वीट डिलीट कर दिया अपने नाना के फौज में होने का जिक्र करते हुए माफी मांगी और ये भी लिखा ITS IN MY BLOOD, लेकिन तब तक पब्लिक का ब्लड खौल चुका था. और फिर से बॉयकॉट बॉलीबुड की बयार चल चुकी थी.

एक नागरिक के तौर पर देशभक्ति हमारे ब्लड में ही होती है. इस देश ने सिनेमा पर पैसे प्यार वक्त सब लुटाया है, बॉयकॉट की नौबत तब आ रही है जब सामने से हमारी संवेदनाएं आइना बनकर नहीं आ रहीं. 100 करोड़ का बिजनेस, लाखों की फैन फॉलोइंग सब लोगों से ही हैं और लोग देश से ही हैं इस देश से जहां बॉलीवुड भी बसता है. सरकारों पर सवाल कीजिए आलोचना कीजिए खुलकर कीजिए.

उन 20 शहीद सैनिकों के परिवार के प्रति हमारा कर्तव्य कहता है. ये तंज ना मज़ाक है ना आलोजना इसे कुंठा ही माना जाए. नाना पाटेकर का वो डॉयलॉग याद है आपको ये रहा हिंदु का खून ये मुसलमान का काटा कैसे फर्क करेंगे खून तो लाल ही है. फर्क करना आसान है देश विरोधी जिस बात पर खून खौल जाए जो अपनी मिट्टी ले लिए उबाल खाए वो ही हर हिंदुस्तानी का खून है.

जान हथेली लेकर चलना जिसका कर्म ये दैनिक है, कोई पांव पूजे या पत्थर मारे निःस्वार्थ डटा वो सैनिक है.

फिल्मों में एक्टिंग और सीमा पर तैनाती मनोरजन और रक्षा दो अलग अलग क्षेत्र हैं. इसीलिए मुहावरा है जिसका काम उसी को साजे और करे तो डंडा बाजे. सेना ना सुबूत डिलीट करके भागती है और ना विक्टिम कार्ड खेलती है, ना अपने परिवार के शहीद गिनाती है वो बस अपने कर्तव्य पथ पर बढ़ती जाती है. जोर से बोलिए देशबक्ति इट्य इन अवर ब्लड.

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