कोरोना महामारी की रोकथाम के लिए निगरानी ही हमारी ताकत

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Suneela

कोरोना की बेहद खतरनाक दूसरी लहर के बाद भारत ने पिछले साल (2022) से महामारी को फैलने से रोकने के लिए कई कदम उठाए. इनमें अलग-अलग स्तर पर हितधारक शामिल हैं, जैसे राष्ट्रीय रोग नियंत्रक केंद्र (National Centre for Disease Control), स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (Ministry of Health and Family Welfare) और हमारे पास गृह मंत्रालय (Ministry of Home Affairs) भी था, क्योंकि वह भी आपदा प्रबंधन अधिनियम (Disaster Management) में शामिल था.

साथ ही, टीकाकरण से पहले और टीकाकरण के बाद लोगों को कोविड उचित व्यवहार का पालन करने के लिए कहा गया. इसमें मास्क पहनना, हाथों की साफ-सफाई का ध्यान रखना और शारीरिक दूरी बनाए रखने आदि की जानकारी दी गई.

इसके अलावा एक अन्य अहम पॉइंट भी था, ‘जांच, इलाज और निगरानी.’ महामारी की रोकथाम के लिए निगरानी ही हमारी ताकत थी. हमने अपने इंटिग्रेटेड डिसीज सर्विलांस प्रोग्राम (IDSP) प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से इस पूरी महामारी की निगरानी बेहद बारीकी से की.

हमारे टीकाकरण कार्यक्रम का बेहद अहम और अनूठा हिस्सा यह था कि यह पूरी तरह से डिजिटल था. हमारे पास कोविड ऐप था, जहां हम देख सकते थे कि कितने लोगों को टीका लगाया गया है, कितने लोगों का टीकाकरण होना है और किस उम्र के लोगों को हमने टीका लगाया है समेत तमाम जानकारी से रूबरू हो सकते थे. सबकुछ डिजिटल था.

देश में कोरोना की दूसरी लहर यानी डेल्टा वैरिएंट का प्रकोप सबसे घातक था. उस समय हमारे पास ऑक्सीजन की कमी हो गई थी. हमारे पास ऑक्सीकेयर ऐप था, जिसकी मदद से ऑक्सीजन की उपलब्धता की जानकारी डिजिटल हो गई थी.

इसके अलावा हमारे पास अलग-अलग इलेक्ट्रॉनिक मीडिया प्लेटफॉर्म के माध्यम से लोगों को जागरूक करने के लिए एजुसेट था. साथ ही, समय के साथ हम मरीजों की देखभाल के लिए दिशा-निर्देशों के साथ आगे बढ़ते रहे. तो कुल मिलाकर, मैं यह कहूंगा कि हमारे पास महामारी से पूरी तरह निपटने के लिए बेहद बहुत स्तंभ थे.

आखिर में टेली-मेडिसिन एक ऐसी अहम चीज थी, जिसके चलते लोगों को हर बार डॉक्टर के पास जाने की जरूरत नहीं पड़ती थी. लोग अन्य प्लेटफॉर्म पर भी डॉक्टरों से सलाह लेते थे. और सबसे अहम बात, जिसने पूरी दुनिया को सीख दी कि मरीजों का इलाज घर पर भी हो सकता है, जिससे न सिर्फ हमारे डॉक्टर, बल्कि हमारे पैरामेडिकल वर्कर्स भी सशक्त हुए और अलग-अलग स्तर पर बहुत सारी मैनपावर तैयार हुई.

सार्वजनिक स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से देखा जाए तो कोई भी बीमारी पूरी तरह खत्म नहीं हो सकती है. खासकर, जब हम सांस संबंधी संक्रमण SARS-CoV-2 की बात कर रहे हों, जो काफी तेजी से फैलता है.

अगर हम भारत को देखें तो यहां कोरोना संक्रमण के मामले सैकड़ों में सिमट गए हैं, जबकि चीन के नवंबर के आखिर में 70 हजार से ज्यादा मामले सामने आए, जो अब तक का सबसे बड़ा रिकॉर्ड है. हम चीन की कोविड नीति के बारे में बहुत ज्यादा नहीं जानते हैं, क्योंकि यह पब्लिक डोमेन में उपलब्ध नहीं है. हमें चीन से संबंधित जो भी खबरें मिलती हैं, वह मीडिया के माध्यम से ही आती हैं.

चीन ने कभी भी टीकाकरण पर उचित तरीके से ध्यान नहीं दिया, जबकि भारत ने इसमें किसी भी तरह की लापरवाही नहीं बरती. और भारत के काम करने का तरीका ही दूसरे देशों के लिए एक तरह का रोल मॉडल बन गया.

यह बात सामने आ चुकी है कि बुजुर्गों के टीकाकरण के दौरान चीन को विरोध का सामना करना पड़ा. दरअसल, बुजुर्गों की जरूरतों को पूरा करने में चीन की सरकार असफल रही. भारत में बुजुर्गों ने तय मानदंडों के अनुसार प्राथमिकता के आधार पर टीकाकरण कराया, क्योंकि सरकार काफी ज्यादा सक्रिय थी.

टीकाकरण के दिशा-निर्देशों में साफ कहा गया कि सबसे पहले स्वास्थ्यकर्मी, फ्रंटलाइन वर्कर्स आएंगे और इसके बाद देश की बुजुर्ग आबादी को टीका लगाया जाएगा. साथ ही, हमारे पास लोगों की झिझक को दूर करने के लिए टॉप से लेकर आखिरी छोर तक एक तंत्र मौजूद था, जिससे लोग टीकाकरण के लिए आगे आए. वहीं, इस मामले में चीन बुरी तरह नाकाम रहा.

सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में चार दशक के अनुभव के बाद मैं कह सकता हूं कि पर्दे के पीछे भी बहुत कुछ है. दरअसल, वायरस की उत्पत्ति के मामले में चीन ने अपनी स्थिति को कभी सार्वजनिक नहीं किया. जहां तक चीन में संक्रमण के मामलों की बात करें तो मुझे भी मीडिया के माध्यम से ही जानकारी मिल रही है, क्योंकि चीन ने खुद को बाहरी दुनिया से पूरी तरह काटकर रखा है. इससे ज्यादा क्या कह सकते हैं कि जब डब्ल्यूएचओ की टीम चीन गई तो उसे भी कुछ खास हासिल नहीं हुआ.

हम अब भी इस बात से जूझ रहे हैं कि वायरस की उत्पत्ति और रोकथाम के संबंध में सही तथ्य क्या हैं, लेकिन हम यह बात भी जानते हैं कि लॉकडाउन की नीति कभी काम नहीं आने वाली है.

एक दूसरे दृष्टिकोण से देखे तो यह स्थिति बेहद अहम हो जाती है, क्योंकि दोनों देशों की सीमाएं सटी हुई हैं. हम नहीं चाहते हैं कि चीन जैसे हालात यहां भी बनें. वह भी तब, जब हमने इस बीमारी पर काफी हद तक काबू पा लिया है. आलम यह है कि इस वक्त भारत में रोजाना करीब 300-400 मामले मिल रहे हैं. कोई नहीं चाहेगा कि चीन जैसे हालात भारत में भी सामने आएं.

कोरोना के मामलों को पूरी तरह खत्म करने के लिए चीन की जीरो कोविड पॉलिसी सार्वजनिक स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से बिल्कुल भी काम नहीं करेगी. यह तो चीन जैसे देश के लिए आपदा की तरह है. दरअसल, चीन काफी कुछ जानता है, जिनकी वजह से दुनिया के कई देशों ने डब्ल्यूएचओ की टीम के नेतृत्व में जांच की मांग की है.

(डॉ. सुनीला गर्ग नई दिल्ली स्थित मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज में एक्स सब-डीन और डिपार्टमेंट ऑफ कम्युनिटी मेडिसिन की हेड हैं. वह राष्ट्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण संस्थान की कार्यक्रम सलाहकार समिति (PAC) की अध्यक्ष भी रह चुकी हैं. साथ ही, उन्होंने 2021-22 के दौरान दो महत्वपूर्ण राष्ट्रीय संगठनों इंडियन असोसिएशन ऑफ प्रिवेंटिव एंड सोशल मेडिसिन और ऑर्गनाइज्ड मेडिसिन अकैडमी का नेतृत्व बतौर राष्ट्रीय अध्यक्ष किया था.)

(पूरा इंटरव्यू https://www.news9plus.com/all पर देखा जा सकता है.)

खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

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