गुजरात ने रचा इतिहास, उपचुनावों में भी दिखी झलक, चुनावी नतीजों में मोदी का मैजिक

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Narendra Modi

लगातार 27 साल से गुजरात में राज कर रही भाजपा (BJP) ने फिर से फ़तेह हासिल कर ली है. उसने राज्य की 85 प्रतिशत से अधिक सीटें प्राप्त की हैं और सबसे बड़ी बात तो यह कि ओबीसी (OBC), दलित (SC) और आदिवासी (ST) के अतिरिक्त मुसलमानों का वोट भी उसे थोक में मिला है. गुजरात के इतिहास में यह पहली बार हुआ है कि किसी एक पार्टी ने राज्य विधानसभा में 85 प्रतिशत सीटें अपनी झोली में डाल ली हों. लगभग 52 प्रतिशत वोट उसने पाए हैं और इस भारी सफलता का श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) को जाता है.

इसके पहले 1985 में कांग्रेस ने 149 सीटें पाई थीं, जिस कांग्रेस की यह स्थिति वह आज कुल 17 सीटों पर सिमट कर रह गई है, जबकि अभी पिछली विधानसभा में कांग्रेस ने बीजेपी की राह में अवरोध खड़ा कर दिया था. हालांकि तब भी सरकार बीजेपी की बन गई थी. मगर उसके खाते में कुल 99 सीटें गई थीं यानी बहुमत से बस सात अधिक. सवाल खड़ा होता है कि जिस राज्य में कांग्रेस भाजपा के समानांतर खड़ी होती थी, वह अचानक गायब कैसे हो गई. मालूम हो कि गुजरात में कोई क्षेत्रीय दल नहीं है. वहां लड़ाई भाजपा बनाम कांग्रेस ही होती आई है, वहां से कांग्रेस इस दुर्गति को पहुंची कैसे?

गुजरात में कांग्रेस का भविष्य खत्म हो गया?

एक तरफ राहुल गांधी की पद यात्रा तो दूसरी तरफ नरेंद्र मोदी की कांग्रेस मुक्त देश करने की योजना, जो स्थितियां बनी हैं, उनसे यही लगता है कि नरेंद्र मोदी का प्रण अधिक ठोस दिख रहा है, जबकि राहुल गांधी की पद यात्रा कोई प्रभाव नहीं छोड़ पा रही. यह अजीब बात है क्योंकि भारत की जनता सदैव सरकार के विरोध में खड़ी होती रही है. मगर इस बार तो कांग्रेस का गुजरात में ऐसा सूपड़ा साफ़ हुआ, कि अब लगता नहीं कि कांग्रेस भविष्य में कभी गुजरात में खड़ी हो पाएगी. इससे यह भी स्पष्ट होता है कि राहुल गांधी को अपनी सलाहकार मंडली पर नज़र डालनी चाहिए, क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा पर वे हमलावर तो प्रचंड होते हैं किंतु ज़मीन पर साफ हैं.

इसकी एक वजह तो कांग्रेस के अंदर से परंपरागत माध्यम मार्गी और उदारवादी नेताओं को साइड ट्रैक करते जाना. हालांकि ग्रुप-23 के नेताओं ने बहुत पहले तब की अध्यक्ष सोनिया गांधी को सचेत किया था, लेकिन कांग्रेस में घुस आए अतिवादी नेताओं ने उनकी चेतावनी पर गौर न करने की सलाह दी. नतीजा यह है, कि कांग्रेस में आज व्यक्तिगत हमले करने वाले नेता तो बहुत हैं लेकिन न कोई पब्लिक मीटिंग को संबोधित करने में सक्षम है न ही उनमें मोदी को काउंटर करने की क्षमता है. वे सरकार और जनता पर भी हमले करते हैं.

बहुसंख्यक जनता को अपने हमलों से आहत करते हैं. संभव है, बीजेपी के कुछ समर्थक अतिवादी हों, मुस्लिम द्वेषी हों, लेकिन उसके लिए पूरी हिंदू जनता को उग्रवादी घोषित कर देना अथवा सरकार को अतिवादी बता देना तो कोई हल नहीं है. कोई भी उदारवादी नेता ऐसे मामलों में माध्यम मार्ग अपना कर इनको इग्नोर करता और इस रणनीति के चलते वे खुद ही एक्सपोज हो जाते, परंतु काउंटर हमले से तो वे और भी मज़बूत हुए.

कांग्रेस को जजमेंटल होने का नुकसान

बीजेपी की इस जीत ने यह भी बता दिया है, कि फिलहाल नरेंद्र मोदी के समक्ष खड़े होने की क्षमता किसी में नहीं है. ऐसा लगता है कि विपक्ष स्वयं नरेंद्र मोदी की पिच पर खेल रहा है. नतीजा यह होता है, कि नरेंद्र मोदी की जीत के लिए मैदान उनके विपक्षी बना देते हैं. राजनीति नफरत से नहीं कूटनीति से खेली जाती है. कांग्रेस मोरबी पुल दुर्घटना के लिए सीधे-सीधे प्रधानमंत्री पर अंगुली उठा रही थी. उसके नेता उस दुर्घटना की जांच की मांग करने की बजाय सीधे-सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ऊपर आरोप मढ़ने लगे. उनके आरोप व्यक्तिगत कुढ़न से निकले अधिक थे, विवेकपूर्ण कम. इसका परिणाम यह हुआ कि जनता भी कांग्रेस के ऐसे बोलों से चिढ़ने लगी. यह जजमेंटल हो जाने कि जो राजनीति है, वह कांग्रेस को भारी पड़ी. सच तो यह है, कि कांग्रेस नेतृत्त्व अपनी पार्टी के ऐसे नेताओं की पहचान कर उनको सचेत करे.

हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस कैसे जीती?

हालांकि कांग्रेस के लिए यह संतोष की बात है, कि उसने हिमाचल की कुल 68 विधानसभा सीटों में 40 सीटें लेकर बहुमत साबित कर दिया है. इसकी वजह शायद यह भी है, कि कांग्रेस के अतिवादी नेता गुजरात में रहे और हिमाचल वे लोग आए जो अपेक्षाकृत नरम समझे जाते हैं. वहां पर कांग्रेस ने समझदारी के साथ रणनीति बनाई और व्यक्तिगत हमले नहीं किए. कांग्रेस के मौजूदा अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ऐसे ही नेताओं में हैं. यहां रणनीति सफल रही. उधर बीजेपी की अंतर्कलह के चलते यहां बीजेपी के बागियों ने खेल बिगाड़ दिया. इस प्रांत से बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा हैं और सूचना प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर भी. इसके अतिरिक्त यहां बीजेपी के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का गुट भी था, और इस गुटबाज़ी को मैनेज करने में बीजेपी का स्थानीय नेतृत्त्व विफल रहा. इसी कारण तमाम सीटों पर भाजपा हजार से कम वोटों से हारी. जीतने वालों में कई विधायक बागी गुट के भी हैं.

केजरीवाल और ओवैसी का गुजरात में रोल

आम आदमी पार्टी के अध्यक्ष अरविंद केजरीवाल गुजरात और हिमाचल को लेकर अति उत्साहित थे. पिछले दो वर्षों से वे हिमाचल और गुजरात में घेराबंदी कर रहे थे, लेकिन इस पार्टी का हिमाचल में तो सफ़ाया हो गया, और गुजरात में उसे मात्र 5 सीटों से संतोष करना पड़ा. अलबत्ता गुजरात में उसने 13 पर्सेंट वोट लेकर कांग्रेस के वोट ज़रूर खींच लिए. इस तरह वह गुजरात में बीजेपी के लिए सहायक बनी और हिमाचल में कांग्रेस के लिए. इस तरह उसे वोटकटवा पार्टी का तमग़ा ज़रूर मिल गया. आप पार्टी का यह पतन दुर्भाग्यपूर्ण है, क्योंकि हिमाचल के बग़ल में पंजाब में इसी आप पार्टी की सरकार है. उधर दिल्ली नगर निगम (MCD) के कल आए नतीजों से आप पार्टी फूल रही थी. वहां उसे बहुमत मिला था, लेकिन अगले ही रोज दो राज्यों में वह सिर्फ़ वोट काटने वाली पार्टी बन कर रह गई. इसी के साथ ओवैसी का भ्रम भी दूर हुआ कि वे मुसलमानों के एकच्छत्र नेता हैं. गुजरात में मुसलमानों ने बीजेपी को वोट किया. मुस्लिम बहुल इलाक़ों ख़ासकर भरूच के नतीजे इसके प्रमाण हैं.

राज्यों में उपचुनावों के नतीजे

इन दोनों राज्यों के साथ ही जो उपचुनाव हुए उनके नतीजे भी चौकाने वाले रहे. उत्तर प्रदेश की मैनपुरी लोकसभा सीट से प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पत्नी और सपा प्रत्याशी डिम्पल यादव ने 288000 वोटों से बीजेपी के रघुराज सिंह शाक्य को हरा दिया. इसी तरह मुजफ्फर नगर जिले की खतौली विधानसभा सीट में सपा-रालोद के उम्मीदवार मदन भैया जीते. किंतु सपा के कद्दावर नेता आजम खान के गढ़ में सपा को पराजय मिली. रामपुर से बीजेपी प्रत्याशी का जीतना भी चौकाने वाला है. आजम खान की राजनैतिक हैसियत लगातार ख़त्म होती जा रही है. कुछ महीने पहले यहां से लोकसभा के उपचुनाव में भी बीजेपी ने सीट सपा से छीन ली थी. बिहार की कुढ़नी विधानसभा सीट पर बीजेपी जीती. ओडीसा की पद्मपुर सीट पर बीजू जनता दल को जीत मिली. मगर राजस्थान के सरदार शहर और छत्तीसगढ़ की भानुप्रताप पुर सीटें कांग्रेस को मिलीं.

कुल मिला कर इन चुनावों ने यह साबित तो किया ही कि नरेंद्र मोदी अपराजेय तो बनते ही जा रहे हैं, इसके अतिरिक्त वे देश में एक माहौल पैदा कर रहे हैं, जो देश को एकदलीय शासन प्रणाली की तरफ ले जा रहे हैं. नरेंद्र मोदी का यह चक्रवर्तित्त्व नेतृत्त्व आने वाले कई वर्षों तक भाजपा को लाभ तो पहुंचाएगा लेकिन सेकंड लाइन का न होना बीजेपी के लिए चुनौती भी बनेगा.

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