भारत के मुख्य न्यायधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने शुक्रवार को आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा में एक कार्यक्रम में कहा कि न्यायपालिका की ‘तारीख पे तारीख’ वाली छवि बदलने की जरूरत है. चीफ जस्टिस ने अदालतों को निर्देश दिया कि अदालतें लंबे समय से लंबित मामलों को स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त) तक निपटाएं, ताकि न्यायपालिका की छवि में बदलाव आए. उन्होंने देश की अदालतों से कहा कि 63 लाख से अधिक मामलों में वकील की गैर-मौजूदगी देरी का कारण मानी जाती है.
उपलब्ध तकनीक की मदद से लंबित मामलों को निपटाने की आवश्यकता पर जोर देते हुए सीजेआई ने कहा कि आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट में परंपरा और इतिहास की गहरी समझ है. हमें न्यायिक संस्था की स्थिरता और ताने-बाने को बनाए रखने के लिए विरासत में मिली नई परंपराओं, नई प्रथाओं को सुनिश्चित करना होगा.” उन्होंने कहा कि न्यायिक बिरादरी में समान संख्या में महिलाएं न्यायिक अधिकारी के तौर पर प्रवेश कर रही हैं. चीफ जस्टिस ने यह भी कहा कि हमारे पेशे का भविष्य महिलाओं का है.
14 लाख केस सिर्फ रिकॉर्ड और डॉक्यूमेंट की वजह से पेंडिंग
आंध्र प्रदेश न्यायिक अकादमी के उद्घाटन के मौके पर सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि लोगों को जिला अदालतों को अधीनस्थ न्यायपालिका के रूप में मानने की औपनिवेशिक मानसिकता से छुटकारा पाना चाहिए क्योंकि जिला अदालतें न केवल न्यायपालिका की रीढ़ हैं, बल्कि अनेक लोगों के लिए न्यायिक संस्था के रूप में पहला पड़ाव भी हैं. उन्होंने कहा कि जमानत आपराधिक न्याय प्रणाली के सबसे मौलिक नियमों में से एक है, न कि जेल.
चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि फिर भी व्यवहार में भारत में जेलों में बंद विचाराधीन कैदियों की संख्या एक विरोधाभासी और स्वतंत्रता से वंचित करने की स्थिति को दर्शाती है. सीजेआई ने कहा कि राष्ट्रीय न्यायिक डाटा ग्रिड (एनजेडीजी) के अनुसार 14 लाख से अधिक मामले किसी तरह के रिकॉर्ड या दस्तावेज के इंतजार में लंबित हैं, जो अदालत के नियंत्रण से परे है.
वकीलों की नामौजूदगी भी पेंडिंग केस की वजह
चीफ जस्टिस कहा, इसी तरह, एनजेडीजी के आंकड़ों के अनुसार 63 लाख से अधिक मामले वकीलों की अनुपलब्धता के कारण लंबित माने जाते हैं. हमें यह सुनिश्चित करने के लिए वास्तव में बार के समर्थन की आवश्यकता है कि हमारी अदालतें अधिकतम क्षमता से काम करें. चीफ जस्टिस ने यह भी कहा कि यह बहुत अधिक या कम हो सकता है क्योंकि अभी सभी अदालतों से अधिक डेटा प्राप्त होना बाकी है. डीवाईचंद्रचूड़ ने जिला अदालतों के बारे में कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 438 (जमानत) और धारा 439 (जमानत रद्द करना) अर्थहीन नहीं होनी चाहिए.
(भाषा इनपुट के साथ)