
अरुणाचल के तवांग में चीनी सैनिकों की हरकत के बाद भारतीय सेना किसी भी तरह की कमी नहीं छोड़ना चाहती. 9 दिसंबर को भी फौज पूरी तरह से एक्टिव थी, इसी का नतीजा था कि 300 चीनियों को बैरंग वहां से लौटना पड़ा. भारत के साथ चीन तीन हजार किलोमीटर से ज्यादा एलएसी साझा करता है. पूर्वी लद्दाख से लेकर अरुणाचल तक ड्रैगन की निगाहें भारत के इलाके पर कब्जा करने का है. अब डिफेंस मिनिस्ट्री के साथ सेना की इस सप्ताह के अंत में बैठक होने वाली है. इस मीटिंग में आर्मी LAC पर तैनाती के लिए हल्के टैंकों को शामिल करने का प्रस्ताव लाएगी. इस टैंक का नाम रखा गया है जोरावर…
सरकारी सूत्रों ने बताया कि रक्षा मंत्रालय की हाई लेवल बैठक में मेक इन इंडिया के तहत इनमें से 354 टैंक खरीदने के प्रस्ताव पर चर्चा होगी. भारतीय सेना ने अपने फ्यूचर लाइट टैंक के लिए स्पेसिफिकेशंस जारी किए हैं, जिसे ‘जोरावर’ नाम दिया गया है. टैंक का नाम उस दिग्गज जनरल के नाम पर रखा गया है, जिसके नाम से चीन कांपता है. जनरल जोरावर ने ही माइनस 40 डिग्री में बर्फ से ढंके दर्रों, पहाड़ों पर लड़ना और जीतना सिखाया. भारतीय सेना आज भी जनरल जोरावर की पूजा करती है. सबसे खास बात ये है कि इन्होंने तिब्बत में कई युद्ध जीते थे. आज ये इलाका चीन के कब्जे में है. जब LAC पर जोरावर की तैनाती होगी तो चीन के हौसले खुद पस्त हो जाएंगे.
भारतीय सेना के आदर्श हैं जोरावर सिंह
भारतीय सेना आज उस ‘शेर’ को अपना आदर्श मानती है. हर साल जनरल जोरावर दिवस भी मनाया जाता है. लद्दाख, तिब्बत, बाल्टिस्तान और इस्कार्डू सहित हिमालय पर विजय के कारण इस महान योद्धा को भारत का नेपोलियन, लद्दाख के विजेता जैसे शब्दों से संवारा जाता है. जोरावर सिंह कहलूरिया एक चंदेल वंशीय राजपूत थे. उनका जन्म सितंबर 1784 में वर्तमान हिमाचल प्रदेश में कहलूर (बिलासपुर) राज्य की रियासत में कहलूरिया/चन्देल राजपूत परिवार में हुआ था. बचपन से ही जोरावर शूरता और वीरता से लबरेज थे. उनकी वीरता का ही नमूना था कि जल्द ही उनको ‘पूरब का नेपोलियन बोनापार्ट’ कहा जाने लगा.
-40 डिग्री में युद्ध लड़ना और जीतना सिखाया
चीन से साथ भारत की सीमा हजारों फिट की ऊंचाई पर मौजूद है. यहां पर सांस लेना मुश्किल हो जाता है. तापमान -40 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है. इस स्थिति में किसी का जिंदा रहना नामुमकिन हो जाता है. लेकिन जोरावर ऐसे सेनानायक हुए जिन्होंने ऐसी विकट परिस्थितियों में भी युद्ध करना सिखाया. भारतीय सेना उसे अपना आदर्श मानती है और हर साल 15 अप्रैल को जनरल जोरावर दिवस मनाती है. लद्दाख, तिब्बत, बाल्टिस्तान और इस्कार्डू सहित भारत के नक्शे में मुकुट समान दिखने वाले हिमालय पर्वत पर विजय के कारण इस महान यौद्धा को ‘भारत के नेपोलियन’ कहा जाने लगा.
तिब्बत में जीर्ण-शीर्ण समाधि
जनरल जोरावर सिंह के ऊपर कुछ किताबें लिखी गईं हैं. विकिपीडिया और ऑन लाइन मीडिया रिपोर्ट्स में इनके बारे में विस्तृत जानकारी पढ़ने को मिलती है. तिब्बत में वह पवित्र स्थान तकलाकोट में जनरल जोरावर सिंह की जीर्ण-शीर्ण समाधि है. इस पर लिखा है शेरों का राजा. इस क्षेत्र पर चीन का कब्जा है लेकिन वो भी उनको सम्मान से देखते हैं. जम्मू के डोगरा राजपूत शासक गुलाब सिंह के एक सैन्य जनरल थे. उन्होंने किश्तवाड़ के राज्यपाल के रूप में कार्य किया और राज्य के क्षेत्रों का विस्तार किया. जब उन्होंने चीन से लद्दाख और बाल्टिस्तान पर कठिन से कठिन युद्धों में विजय प्राप्त की तो दुनिया हैरत में पड़ गई. इसके बाद उन्होंने पश्चिमी तिब्बत (नगारी खुरसुम) पर विजय का प्रयास किया, लेकिन डोगरा-तिब्बती युद्ध के दौरान तो-यो की लड़ाई में वे शहीद हो गए.
भारतीय फौज का हिस्सा बनेगा ‘जोरावर’
यूं तो जनरल जोरवार सिंह की बहादुरी के किस्से हर जुबान पर बसते हैं. लेकिन अब सेना में शामिल होने वारे टैंकों का नाम भी इस शूरवीर के नाम पर रखा जा रहा है. सेना के अधिकारियों ने कहा कि मध्यम युद्धक टैंकों के सामने आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए इसको शामिल किया जाना है. इससे मैदानी, अर्ध-रेगिस्तान और रेगिस्तान में इसके उपयोग के अलावा उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्र (एचएए), सीमांत इलाकों और द्वीप क्षेत्रों में इसका उपयोग किया जाएगा. भारतीय सेना को हाई रिस्क वाले क्षेत्रों में पर्याप्त संख्या में टी-72 और टी-90 टैंकों को शामिल करना पड़ा. इसी के कारण तवांग से चीनी सेना को पीछे होना पड़ा.