कानून मंत्री किरेन रीजीजू ने सोमवार को कहा कि सरकार और न्यायपालिका के बीच मतभेद हो सकते हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि दोनों एक-दूसरे पर हमला कर रहे हैं और महाभारत हो रही है जैसा कि कुछ लोगों द्वारा प्रस्तुत किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि हमारे बीच कोई समस्या नहीं है. उन्होंने सवाल किया कि अगर लोकतंत्र में बहस या चर्चा नहीं होगी तो यह कैसा लोकतंत्र होगा.
रीजीजू ने सोमवार को तीस हजारी अदालत परिसर में आयोजित गणतंत्र दिवस समारोह में कहा कि चूंकि न्यायाधीश निर्वाचित नहीं होते हैं, इसलिए उन्हें सार्वजनिक जांच का सामना नहीं करना पड़ता है, लेकिन लोग उन्हें देखते हैं और न्याय देने के तरीके से उनका आकलन करते हैं. उन्होंने कहा कि भारत में अगर लोकतंत्र को फलना-फूलना है तो एक मजबूत और स्वतंत्र न्यायपालिका का होना जरूरी है.
ऐसे पेश कर रहे, जैसे महाभारत चल रहा है
रीजीजू ने कहा कि अगर उच्चतम न्यायालय के कुछ विचार हैं और सरकार के कुछ विचार हैं और यदि दोनों मतों में कोई अंतर है तो कुछ लोग इसे ऐसे प्रस्तुत करते हैं जैसे सरकार और न्यायपालिका के बीच महाभारत चल रही हो. ऐसा नहीं है…हमारे बीच कोई समस्या नहीं है. उन्होंने कहा कि हम (उच्च न्यायपालिका और सरकार के सदस्य) लगातार किसी न किसी तरह से दैनिक आधार पर मिलते हैं. कानून मंत्री ने कहा कि सभी बड़े और छोटे मुद्दों पर प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के साथ उनका संपर्क है.
मतभेद हो सकता है लेकिन मनभेद नहीं
रीजीजू ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में कहा जाता है कि मतभेद हो सकता है लेकिन मनभेद नहीं. उन्होंने कहा, हम अलग राय रख सकते हैं. राय में अंतर का मतलब यह नहीं है कि हम एक-दूसरे पर हमला कर रहे हैं. छह जनवरी को प्रधान न्यायाधीश को लिखे पत्र का जिक्र करते हुए, रीजीजू ने कहा कि शीर्ष अदालत की एक संविधान पीठ के 2015 के फैसले से उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए प्रक्रिया ज्ञापन तय हुआ. उन्होंने कहा कि यह बताया गया था कि सरकार उच्चतम न्यायालय के कॉलेजियम में एक प्रतिनिधि रखना चाहती है. उन्होंने सवाल किया कि वह प्रधान न्यायाधीश और चार वरिष्ठ न्यायाधीशों वाले समूह में किसी व्यक्ति को कैसे रख सकते हैं.
रीजिजू ने कहा कि इसमें कोई तथ्य नहीं है, लेकिन यह लोगों के बीच बहस का विषय बन गया कि सरकार अपने प्रतिनिधियों को कॉलेजियम में कैसे रख सकती है. रीजीजू ने कहा कि सोशल मीडिया के कारण आम नागरिक सरकार से सवाल पूछते हैं और उन्हें ऐसा करना चाहिए. उन्होंने कहा कि सरकार पर हमला किया जाता है और सवाल किया जाता है और हम इसका सामना करते हैं. मंत्री ने कहा, अगर लोग हमें फिर से चुनते हैं, तो हम सत्ता में वापस आएंगे. अगर वे नहीं चुनते हैं, तो हम विपक्ष में बैठेंगे और सरकार से सवाल करेंगे.
जजों को चुनाव का सामना नहीं करना पड़ता
कानून मंत्री ने कहा कि दूसरी ओर यदि कोई व्यक्ति न्यायाधीश बनता है तो उसे चुनाव का सामना नहीं करना पड़ता है. उन्होंने कहा, न्यायाधीशों की सार्वजनिक पड़ताल नहीं होती है. उन्होंने कहा, चूंकि लोग आपको नहीं चुनते हैं, वे आपको बदल नहीं सकते, लेकिन लोग आपको आपके फैसले, जिस तरह से आप फैसला सुनाते हैं उसके जरिए देखते हैं और आकलन करते हैं तथा राय बनाते हैं. उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया के दौर में कुछ भी छिपा नहीं है. रीजीजू ने कहा कि प्रधान न्यायाधीश ने उनसे सोशल मीडिया पर न्यायाधीशों पर हो रहे हमलों के बारे में कुछ करने का अनुरोध किया था. वह जानना चाहते थे कि न्यायाधीशों के खिलाफ अपमानजनक भाषा को कैसे नियंत्रित किया जाए.
उन्होंने कहा कि न्यायाधीश सार्वजनिक मंच पर बहस नहीं कर सकते क्योंकि सीमाएं हैं. रीजीजू ने कहा, मैंने सोचा कि क्या किया जाना चाहिए. अवमानना का प्रावधान है, लेकिन जब लोग बड़े पैमाने पर टिप्पणी करते हैं, तो क्या किया जा सकता है. जहां हम दैनिक आधार पर सार्वजनिक जांच और आलोचना का सामना करते हैं, वहीं अब न्यायाधीशों को भी इसका सामना करना पड़ रहा है. उन्होंने दावा किया कि आजकल न्यायाधीश भी थोड़े सावधान हैं, क्योंकि अगर वे ऐसा फैसला देते हैं जिसके परिणामस्वरूप समाज में व्यापक प्रतिक्रिया होगी, तो वे भी प्रभावित होंगे क्योंकि वे भी इंसान हैं.
(भाषा इनपुट)