नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने आज शुक्रवार को अपने 2011 के उस फैसले को कानून की दृष्टि से खराब करार दिया, जिसमें कोर्ट की ओर से कहा गया था कि किसी प्रतिबंधित संगठन की सदस्यता लेने मात्र से ही कोई शख्स तब तक अपराधी नहीं बन जाता जब तक कि वह हिंसा का सहारा नहीं लेता या लोगों को इसके लिए उकसाता नहीं है. उस पर यूएपीए का मुकदमा भी नहीं चल सकता. देश की सबसे बड़ी अदालत में जस्टिस एमआर शाह (MR Shah), सीटी रविकुमार (CT Ravikumar) और संजय करोल (Sanjay Karol) की 3 सदस्यीय बेंच ने 2 जजों की बेंच के फैसले को पलट दिया. 2 जजों की बेंच ने अपने फैसले में कहा था कि किसी प्रतिबंधित संगठन के महज सदस्य होने से उसके खिलाफ यूएपीए का मामला नहीं चल सकता. किसी पर केस चलाने के लिए जांच में यह भी साबित होना चाहिए कि उस शख्स ने अन्य लोगों को भी हिंसा के लिए उकसाया है.
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