BhagatSingh News: 8 अप्रैल साल 1857. हिंदुस्तान में आजादी की पहली चिंगारी सुलगाने वाले मंगल पांडे को फांसी दे दी गई. इसके ठीक 72 साल बाद 8 अप्रैल 1929 को पूरी दुनिया ने एक जोरदार आवाज सुनी. ये आवाज एक बम की थी, जिसे आजादी के परवानों भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली के सेंट्रल एसेंबली हॉल में फेंका था. इस घटना के 11 महीने बाद ही भगत सिंह को फांसी पर लटका दिया गया. जिसके बाद वह शहीद-ए-आजम कहलाए गए. आखिर भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने ऐसा क्यों किया. वह कौनसे बिल थे, जिनके विरोध में उन्होंने बम धमाके को अंजाम दिया? कहानी 8 अप्रैल से शुरू नहीं होती, बल्कि दो दिन पहले यानी 6 अप्रैल से शुरू होती है. इस दिन भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त दिल्ली की सेंट्रल असेंबली गए. दोनों ने पब्लिक गैलरी का जायजा लिया. साथ ही उन्होंने उस जगह की भी रैकी की, जहां बम फेंका जाना था. भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त वापस लौटे और एक रणनीति तैयार की, जिसमें था कि बम ऐसी जगह फेंका जाए कि फटने के बाद किसी को नुकसान न पहुंचे या किसी की जान न जाए. वह सिर्फ आजादी के आंदोलन की ओर दुनिया का ध्यान खींचना चाहते थे. यह भी पढ़ें- भगत सिंह ने Hat पहनकर कहां खिंचवाई थी तस्वीर, बम धमाका करने किस रास्ते पहुंचे थे एसेंबली? 8 अप्रैल को क्या हुआ था? 8 अप्रैल की सुबह हुई. आज दिल्ली की सेंट्रल असेंबली में वायसराय को 'पब्लिक सेफ्टी बिल' पेश करना था, जिसके बाद ये बिल कानून बन जाता. सुबह करीब 11 बजे भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त असेंबली में दाखिल हुए. भगत सिंह एक फ्लैट हैट पहनकर आए ताकी उन्हें कोई पहचान न ले. इस हैट को उन्होंने लाहौर की एक दुकान से खरीदा था. आजादी के दोनों परवाने जब असेंबली पहुंचे तो गैलरी खचाखच भरी थी. जैसी ही सदन में 'पब्लिक सेफ्टी बिल' पेश किया गया, भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने इंकलाब जिंदाबाद बोलते हुए असेंबली के बीचों बीच खाली जगह पर एक के बाद एक दो बम फेंक दिए. इसके बाद वहां अफरा तफरी मच गई. लोगों बेहताश होकर इधर उधर भागने लगे, लेकिन भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त अपनी जगह पर खड़े रहे और इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाते रहे. इस वक्त दोपहर के साढ़े 12 बज रहे थे. दोनों क्रांतिकारियों ने बम फेंकने के बाद असेंबली में कुछ पर्चे भी फेंके. इन पर्चों पर लिखा था, ''बहरों को सुनाने के लिए बहुत ऊंची आवाज की आवश्यकता होती है.'' बाद में दोनों को पुलिस ने पकड़ लिया और दोनों को अलग-अलग थाने ले गए. इस घटना के बाद पूरी दुनिया ने भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को जाना. भारत में ये दोनों क्रांतीकारी युवाओं के हीरो बन गए. यहीं से आजादी की आग और धधक उठी. कौनसे बिल थे वो, जिनका विरोध कर रहे थे भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त? पब्लिक सेफ्टी बिल- इस बिल में अंग्रजी हुकुमत को संदिग्धों पर बिना केस चलाए हिरासत में रखने का अधिकार दिया जाना था. बिल पर अध्यक्ष विट्ठलभाई पटेल को फैसला सुनाना था, लेकिन इससे पहले ही असेंबली में बम धमाका हो गया. ट्रेड डिस्प्यूट बिल- यह बिल पहले ही असेंबली से पास किया जा चुका था. साल 1927 में दुनिया में आर्थिक मंदी छा गई थी. मजदूरों के अधिकारों को छीना जा रहा था. जिसके बाद मजदूरों ने हड़ताल करना शुरू कर दिया. इसके बाद 1929 में ट्रेड डिस्प्यूट बिल पास कराकर मजदूरों की हर तरह की हड़ताल पर बैन लगा दिया गया. भगत सिंह को फांसी, बटुकेश्वर दत्त को मिली उम्रकैद असेंबली में बम धमाका करने के मामले में भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को दोषी ठहराया गया. इस मामले में दोनों को उम्रकैद की सजा दी गई. बटुकेश्वर दत्त को अंडमान निकोबार में काली पानी की सजा मिली. क्योंकि भगत सिंह को सांडर्स की हत्या का भी दोषी ठहराया गया था, ऐसे में उनको फांसी की सजा दी गई. हत्या के इस केस में भगत सिंह के अलावा सुखदेव और राजगुरु को भी फांसी मिली. बाद में अंग्रेजी हुकुमत ने सजा की तारीख से एक दिन पहले 23 मार्च की आधी रात को चुपके से तीनों को फांसी पर लटका दिया. यह भी पढ़ें- पाकिस्तान में मौजूद है शहीद-ए-आजम का पुश्तैनी घर, आज भी संजोयी हैं भगत सिंह की यादें
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