Karnataka Election 2023: कांग्रेस के लिए कहीं कर्नाटक में भी न हो जाएं पंजाब जैसे हालात! पार्टी के लिए आसान नहीं सत्ता की डगर

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Karnataka Election 2023: कांग्रेस के लिए कहीं कर्नाटक में भी न हो जाएं पंजाब जैसे हालात! पार्टी के लिए आसान नहीं सत्ता की डगर
नई दिल्ली: शाख़ें रहीं तो फूल भी पत्ते भी आएंगे, ये दिन अगर बुरे हैं तो अच्छे भी आएंगे... बात बिल्कुल पते की है. कहते हैं न उम्मीद पर तो दुनिया कायम है. हालात कितने भी विपरीत क्यों न हो अच्छे की उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए? कांग्रेस के लिए उम्मीद की एक किरण कर्नाटक से दिखाई दे रही है. यहां पर करप्शन बड़ा मुद्दा है. मतदान 10 मई को होने वाला है. लेकिन पार्टी के साथ बिल्कुल वही समस्या है जो पंजाब, छत्तीसगढ़, राजस्थान में है. पंजाब में इसी कारण से सत्ता से हाथ धोना पड़ा. राजस्थान पर सचिन पायलट और अशोक गहलोत में बीते तीन सालों से रार चल रही है. कर्नाटक में पूर्व सीएम सिद्दारमैया और प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार के बीच नहीं बनती. चुनाव से पहले कांग्रेस के लिए ये बहुत बड़ा संकट है. अगले साल लोकसभा चुनाव भी हैं. कर्नाटक दक्षिण भारत की राजनीति का गेटवे बोला जाता है. यहां पर विधानसभा की 224 सीटें हैं, जबकि लोकसभा की 28 और राज्यसभा में यहां से 12 सांसद जाते हैं. लगभग 6.5 करोड़ की आबादी है. मौजूदा वक्त पर बीजेपी की सरकार है. मगर राज्य में करप्शन का बड़ा मुद्दा है. इसीलिए शायद जनता का झुकाव कांग्रेस की तरफ है. लेकिन कांग्रेस इस बढ़त को ईवीएम तक ले जा पाएगी, इसमें संशय है. ये भी पढ़ें- 3 दल, 3 यात्राएं 1 चुनाव : कर्नाटक में जीत की ताकत बन पाएंगी यात्राएं ? कांग्रेस के लिए मुश्किलें संशय की बात इसलिए है कि क्योंकि राज्य के दो बड़े नेता डीके शिवकुमार और सिद्दारमैया के बीच बनती नहीं है. राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के वक्त भी दोनों नेताओं के बीच मनमुटाव साफ नजर आ रहा था. 30 सितंबर को यात्रा कर्नाटक पहुंची थी. 22 दिन यहीं पर रही. डीके शिवकुमार ने तब सिद्दारमैया गुट पर आरोप लगाया था कि वो भारत जोड़ो यात्रा के सफल होने में मदद नहीं कर रहे. कांग्रेस की दूसरी लिस्ट के बाद विवाद शुरू कर्नाटक विधानसभा चुनावों के लिए कांग्रेस अब तक 166 सीटों के लिए उम्मीदवार घोषित कर चुकी है. सोमवार को 58 सीटों के लिए कैंडिडेट सेलेक्ट किए गए. दोनों नेता आलाकमान से अपने-अपने चहेतों को टिकट दिलाने की वकालत कर रहे हैं. कांग्रेस ने जो पहली लिस्ट जारी की उसमें 124 कैंडिडेट थे. जिसमें ज्यादातर सिटिंग MLA, सीनियर लीडर्स ही थे. इसको लेकर ज्यादा विवाद नहीं हुआ. लेकिन दूसरी लिस्ट में 42 नाम शामिल थे. अब इसको लेकर विवाद होने लगा. कई विधानसभा क्षेत्रों से बगावत के सुर उठने लगे. पहली दो लिस्टों में तो डीके शिवकुमार हावी दिख रहे हैं. उनके खेमे के लोगों को ज्यादा टिकट मिले. वहीं सिद्दारमैया गुट के सात लोगों को टिकट दिया गया. भारत जोड़ो यात्रा के दौरान भी मतभेद भारत जोड़ो यात्रा के दौरान भले ही राहुल गांधी ने एक हाथ डीके शिवकुमार का थाम और दूसरा हाथ सिद्दारमैया का थामकर ये संदेश देना चाहा कि यहां सब ठीक है. मगर ऐसा नहीं था. इन दोनों नेताओं के बीच में राहुल गांधी का हाथ था. अब अगर कांग्रेस डीके शिवकुमार को सीएम बनाती है तो सिद्दारमैया इस सदम को कैसे बर्दाश्त कर पाएंगे. अगर सिद्दारमैया को दोबारा सीएम की कुर्सी मिलती है तो डीके शिवकुमार आलाकमान से नाराज हो जाएंगे. वैसे डीके शिवकुमार आलाकमान की पसंद हैं क्योंकि वो कई मौकों पर रिसॉर्ट पॉलिटिक्स का नमूना भी पेश कर पाएं हैं. 2017 का ये साल था. राज्यसभा चुनाव के लिए बीजेपी से बचाने के लिए डीके शिवकुमार 'संकट मोचक' बने थे. डीके शिवकुमार का खरगे कार्ड डीके शिवकुमार ने ऐन वक्त पर ट्रंप चाल चल दी. इसका काट तो सिद्दारमैया के पास भी नहीं होगा. हालांकि आलाकमान को ये बात पसंद आ सकती है मगर फिर एक बड़ी टेंशन हो जाएगी. दरअसल, शिवकुमार का कहना है कि कर्नाटक में कांग्रेस सीएम पद का चेहरा मल्लिकार्जुन खरगे को बना दीजिए.वो बहुत सीनियर लीडर हैं. उन्होंने पार्टी के लिए बहुत कुछ कुर्बान किया है. अगर उनको मुख्यमंत्री बनाया जाता है तो मैं उनके दिशा निर्देश में काम करूंगा. इसकी प्रतिक्रिया में सिद्दारमैया बोलते हैं कि अगर कोई सीएम बनना चाहता है तो इसमें कोई गलत नहीं है. मतलब वर्चस्व की लड़ाई चरम पर है. खरगे कांग्रेस के अध्यक्ष हैं. अगर उनको सीएम बनाया गया तो फिर ये पद छोड़ना पड़ेगा. ऐसे में फिर एक नई समस्या की कांग्रेस का अध्यक्ष कौन बनेगा. बहुत ही मुश्किल में कांग्रेस को नया अध्यक्ष मिला है. पंजाब जैसे हालात न हो जाएं कांग्रेस की स्थिति कुछ वैसे ही है कि जैसे किसी को मंजिल दिख रही है, मंजिल का रास्ता भी पता हो मगर जिस वाहन से उसको वहां तक पहुंचना है उसका ड्राइवर ही बागी है. बीजेपी चाहती है कि इस बार पूर्ण बहुमत की सरकार बने. ताकि किसी दूसरे का मुंह न देखना पड़े. कर्नाटक राजनीति में प्रभाव रखने वाला लिंगायत समुदाय बीजेपी के साथ रहा है. क्योंकि इस समुदाय के लीडर हैं बीएस येदियुरप्पा. लेकिन इस बार कांग्रेस और जेडीएस ने लिंगायत कम्युनिटी को खूब रिझाया है. साथ ही दोनों की नजर वोकलिग्गा समुदाय पर भी है. मगर सबसे अहम बात क्या कांग्रेस इन द्वंद से बाहर आ पाएगी. वरना इसका भी हाल पंजाब चुनाव जैसा हो जाएगा. ये भी पढ़ें- कर्नाटक कांग्रेस में फिर विवाद, भारत जोड़ो यात्रा से पहले डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया आमने-सामने

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