सुप्रीम कोर्ट ने सेम सेक्स मैरिज को लेकर गुरुवार को भी सरकार और याचिकाकर्ता ने अपनी-अपनी दलीलें पेश की. सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सेक्सुअल ओरिएंटेशन का जिक्र करते हुए कहा कि इसे लेकर भी दो विचार हैं. एक कहता है कि इसे हासिल भी किया जा सकता है और दूसरा कहता है कि यह एक सहज चरित्र है.
कोर्ट के सामने अपनी दलील रखते हुए एसजी तुषार मेहता ने एक स्थिति की कल्पना करते हुए कहा मान लीजिए कोई शख्स अपनी बहन की ओर आकर्षित होता है और स्वायत्तता का दावा करता है और कहता है कि हम निजी तौर पर इन गतिविधियों में जाने का दावा कर सकते हैं. तब इसे यह कहकर चुनौती नहीं दी जा सकती कि इसे कैसे प्रतिबंधित किया जा सकता है?
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जिस पर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा लेकिन यह बहुत दूर की कौड़ी है. विवाह के सभी पहलुओं में सेक्सुअल ओरिएंटेशन और स्वायत्तता का प्रयोग नहीं किया जा सकता है. यह तर्क नहीं दिया जा सकता है कि सेक्सुअल ओरिएंटेशन इतना मजबूत है कि अनाचार कीअनुमति दी जाए.
कोर्ट ने माना कानूनी मान्यता संसद का अधिकार
जिरह के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने माना कि समलैंगिक लिंग विवाह को कानूनी मान्यता प्रदान करना संसद का अधिकार क्षेत्र है. न्यायालय ने इस बारे में विचार करने के लिए कहा कि वैवाहिक स्थिति प्रदान किए बिना समान यौन साझेदारों को कुछ सामाजिक अधिकारों तक कैसे पहुंच प्राप्त करायी जा सकती है.
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बैंकिंग, बीमा, प्रवेश आदि जैसी सामाजिक आवश्यकताएं होंगी, जहां केंद्र को कुछ करना होगा. इस पर एसजी ने कहा कि सरकार कानूनी मान्यता दिए बिना कुछ ऐसे मुद्दों से निपटने पर विचार कर सकती है, जिनका वे सामना कर रहे हैं.
कोर्ट ने केंद्र को 3 मई को बुलाया
इसके बाद कोर्ट ने सामाजिक लाभों अपनी प्रतिक्रिया के साथ 3 मई को सुनवाई में वापस आने के लिए कहा है. कोर्ट ने केंद्र से पूछा है कि क्या समलैंगिक जोड़ों को उनकी वैवाहिक स्थिति की कानूनी मान्यता के बिना भी सामाजिक लाभों की अनुमति दी जा सकती है?