केरल उच्च न्यायालय (Kerala High Court) ने मां की सहमति या जानकारी के बगैर पिता द्वारा नाबालिग बच्चों (Minor children) को अमेरिका ले जाए जाने के मामले में उन्हें अदालत में पेश करने के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट जारी की है. पुलिस ने अदालत को सूचित किया कि पिता अपनी पत्नी की जानकारी के बगैर बच्चों को छह फरवरी को उसके आवास से लेकर आया और चेन्नई (Chennai) के रास्ते आठ फरवरी को उन्हें लेकर अमेरिका चला गया. वह अमेरिका में काम करता है. इसी आधार पर अदालत ने रिट जारी किया है. पुलिस ने यह भी बताया कि महिला (पत्नी) भी अमेरिका में कार्यरत है, लेकिन बच्चों को लेकर लौटते हुए पति उसका पासपोर्ट भी अपने साथ ले गया.
14 मार्च 2022 से पहले बच्चे को पेश करने का आदेश
अदालत ने कहा, ‘‘इन परिस्थितियों में, दूसरे प्रतिवादी (पति) द्वारा जानबूझकर बच्चों को बाहर ले जाए जाने का और याचिकाकर्ता (पत्नी) के कानूनी उपचार की संभावना खत्म करने का प्रयास किया गया है.’’ अदालत ने कहा, ‘‘इसलिए हम याचिकाकर्ता और दूसरे प्रतिवादी के 6 और 3 साल उम्र के बच्चों को 14 मार्च, 2022 से पहले हमारे समक्ष पेश करने के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट जारी कर रहे हैं.’’ अदालत ने अमेरिका में सान फ्रांसिस्को में रहने वाले पति को याचिका का नोटिस और आदेश की प्रति पहुंचाने में केन्द्रीय गृह मंत्रालय से मदद मांगी है.
9 फरवरी को हुई थी मामले की सुनवाई
महिला ने उसके पास से बच्चों को ले जाए जाने के अगले दिन, सात फरवरी को बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की. जिसपर अदालत ने नौ फरवरी को सुनवाई की. अदालत ने उसी दिन पुलिस से बच्चों का पता लगाने और इस संबंध में रिपोर्ट देने को कहा. अदालत ने यह भी निर्देश दिया था कि अगर बच्चों का पता चल जाता है तो सुनिश्चित करें कि बच्चों को देश से बाहर ना ले जाया जाए और उनके पासपोर्ट सक्षम अधिकारी द्वारा जब्त कर लिए जाएं, साथ ही इस संबंध में आव्रजन कार्यालय को सूचित किया जाए.
पति-पत्नी की लड़ाई में अधिकतर मां को मिलता है बच्चों पर हक
पति−पत्नी के बीच पैदा हुए आपसी मतभेद एक हद से गुजर जाएं तो दोनों का अलग हो जाना बेहतर माना जाता है. लेकिन तलाक के बाद बच्चों का हक, उनका पालन−पोषण, उनकी जिम्मेदारी एक गंभीर समस्या बन जाती है. कौन उसकी देखभाल अच्छी तरह करेगा? यह विवाद का मुद्दा बन जाता है. कानूनी तौर पर बच्चे की भलाई और उसका हित सर्वोपरि होता है. कानून इस बात पर गौर करते हुए ही फैसला करता है कि बच्चा माता या पिता में से किसके पास ज्यादा सुरक्षित है. 95 प्रतिशत मामलों में बच्चे की अभिरक्षा का भार मां को ही सौंपा जाता है. क्योंकि माना जाता है कि मां बच्चे की हर प्रकार से बेहतर देखभाल कर सकती है और बच्चा भी भावनात्मक रूप से मां के ज्यादा करीब होता है. 5 प्रतिशत मामलों में बच्चा पिता के अधिकार में सौंप दिया जाता है. ऐसे में बच्चे की रजामंदी सबसे बड़ा कारण होती है.
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