इतिहास इस बात को याद रखेगा कि जंग में जिन्होंने सबसे ज्यादा खोया है, उन्होंने दुश्मन को रोकने में सबसे कम कोशिश की. ये बात 1964 में अमेरिका (America) के पूर्व राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने कही थी, लेकिन 2022 के रूस (Russia) और यूक्रेन (Ukraine) के युद्ध में ये बात पलट चुकी है. रूस के हमलों को रोकने की यूक्रेन ने बहुत कोशिश की, लेकिन मुल्क को खंडहर बनने से भी नहीं रोक पाया. 39 दिन बाद यूक्रेन और रूस की जंग उस मुकाम पर पहुंच चुकी है जहां से आगे परमाणु युद्ध की आशंका और बढ़ चुकी है. सवाल ये है कि क्या रूस ब्लैक सी से एटमी हमले की तैयारी कर रहा है. पुतिन के परमाणु प्लान के हर प्रमाण को सामने रखती ये एक्सक्लूसिव रिपोर्ट देखिए.
यूक्रेनी टैंकों की कब्रगाह बन चुकी सड़क और हर तरफ बिखरी लाशें. कीव के करीब बूचा शहर का मंजर रूसी फौज के कहर की गवाही देता है. डेढ़ महीने भर तक कीव पर कब्जा करने में नाकाम रहे रूसी जब वापस लौटे तो बारूद से बूचा को बेबस कर दिया. शहर का कोना-कोना बताता है मानों पुतिन की पलटन के पास जितना बारूद बचा था, सब इसी शहर पर बरसा दिया. कीव के करीब बूचा पर रूस ने जबरदस्त बमबारी की. रूस के मिसाइल हमले में 20 लोगों की मौत हो गई, जिनमें महिलाएं और एक 14 साल का किशोर भी शामिल है. वहीं इस बीच कीव के मेयर ने दावा किया है कि करीब 300 से ज्यादा शवों को दफनाया गया है. बूचा की सड़कें कबाड़ हो चुके टैंकों और मिसाइलों से छलनी हो चुकी गाड़ियों से पटी पड़ी हैं. शहर का जर्रा-जर्रा सदी से सबसे भीषण युद्ध में कराहती मानवता की गवाही दे रहा है.
बूचा पर अब यूक्रेन का कब्जा
रूस की फौज वापसी के बाद बूचा पर यूक्रेन का कब्जा है, लेकिन सिर्फ खंडहरों और वीरान हो चुके आशियानो की हिफाजत के लिए 28 हजार की आबादी रहती थी. इस शहर में अब श्मसान जैसा सन्नाटा है. रूसी फौज के हमले में इतने टैंक और गाड़ियां तबाह हो चुकी हैं, जिन्हें हटाने में ही यूक्रेनियों को हफ्तों लग जाएंगे. डेढ़ महीने से यूक्रेन पर नॉनस्टॉप बरसता रूसी बारूद बता रहा है कि ये युद्ध रुकने वाला नहीं है. भले ही यूक्रेन पूरी तरह खाक में क्यों न मिल जाए. भले की एटम बम का इस्तेमाल करना पड़ जाए, लेकिन पुतिन नहीं रुकेंगे.
रूस की फौज भले ही कुछ इलाको से पीछे हट रही है, लेकिन जाते-जाते वो भीषण तबाही मचा रहे हैं. रूसी सेना ने पूरे इलाके में माइंस बिछा दी हैं, जिनमें मारे गए लोगों के शव चारों तरफ बिखरे पड़े हैं. रूसी फौज हमला करने से बाज नहीं आएगी. जेलेस्की ने जो कहा कि तस्वीरें उसकी तस्दीक कर रहा है. 39 दिन के रूस यूक्रेन युद्ध की ये सबसे खौफनाक तस्वीर हैं. तस्वीरें विचलित कर सकती हैं, लेकिन युद्ध से मानवता कैसे कराहती है. ये सबसे पबड़ा प्रमाण है. बूचा की सड़कों पर ये जो शव हैं, ये वो बेहगुनाह हैं जो मिसाइल हमले में मारे गए हैं. ये हम नहीं कह रहे हैं, ये दावा यूक्रेन कर रहा है. यूक्रेन तो दावा ये भी है कि करीब डेढ़ महीने के दौरान रूस के करीब 18 हजार सैनिक मारे जा चुके हैं. 143 फाइटर जेट, 131 हेलीकॉप्टर, 625 टैंक और 316 आर्टिलरी सिस्टम भी तबाह किए जा चुके हैं.
यूक्रेन पर रूस का हमला जारी
बावजूद इसके यूक्रेन पर रूस का प्रहार कम नहीं हो रहा है. इतना ही नहीं रूस ने अब यूक्रेन के उन शहरों को भी तबाह करना शुरू कर दिया है, जो अब तक हमले से बचे हुए थे. धमाकों से थर्राती धरती और काले धुएं में सिमटा आसमान. ये तस्वीरें ओडेशा की हैं, जहां तीन हफ्ते बाद पहली बार रूसी फौज ने मिसाइल दागी.
ओडेशा पर रूस ने तीन मिलाइलें दागी. रूसी हमले में ओडेशा का तेल डिपो तबाह हो गया. बेलारूस से रूसी टैंकों का काफिले की तस्वीरें सामने आई हैं. दावा किया जा रहा है कि रूस के ये टैंक वहीं हैं, जो चंद दो दिन पहले तक यूक्रेन के शहरों पर कहर बरपा रहे थे. सवाल ये है कि क्या यूक्रेन के आगे रूसी फौज को शिकस्त मिल रही है? रूस कीव में सेना की तैनाती क्यों घटा रहा है? यूक्रेन के उत्तरी इलाकों से रूसी सेना क्यों लौट रही है?
तीनों सवालों का जवाब मारियुपोल का ये मंजर है. धमाकों से थर्राती धरा और गोलियों की तड़तड़ाहट से गूंजती कायनात. आग उगलते टैंक और धुआं-धुआं होता शहर. रूस के हमलों में यूक्रेन के मारियुपोल खंडहर हो चुका हैं. घर, मकान, दुकान, सामान कुछ भी साबुत नहीं बचा है. लाखों लोग शहर छोड़ चुके हैं. जो जिंदा बचे हैं, उन्हें रूस की तरफ से लड़ रहे चेचन्या के जल्लाद चुन-चुन कर खत्म कर रहे हैं. ऐसे ही हालात यूक्रेन के हर दक्षिणी शहर का है. वजह क्या है, ये जानना भी जरूरी है. मारियुपोल की सीमा उसी डोनेस्क से लगती है, जिसे रूस आजाद मुल्क घोषित कर चुका है तो पूर्व में खेरसोन और क्रीमिया है. दोनों जगह रूस का कब्जा है. ऐसे में मारियुपोल पर कब्जे के बाद रूस से क्रीमिया तक सड़क बना सकता है, जिससे पूरे हिस्से पर रूस का दावा और मजबूत हो जाएगा. यही वजह है रूस का पूर फोकस अब यूक्रेन के दक्षिणी हिस्से पर है. रूस के ताबड़तोड़ हमलों की एक और वजह है.
मारियुपोल, खेरसोन और ओडेशा- यूक्रेन के ये तीनों शहर ब्लैक सी से लगते हैं. तीनों शहरों में यूक्रेन के बड़े पोर्ट है, जहां से यूक्रेन को विदेश से मिलने वाली हर मदद के साथ ही हथियारों का जखीरा मिलता है. यही वजह है कि ब्लैक सी से लगते पूरे इलाके पर कब्जा कर यूक्रेन की लाइफ लाइन काट देना चाहता है, इसीलिए रूस ने यूक्रेन के उत्तरी इलाकों से कुछ फौज हटाकर दक्षिण में तैनाती बढ़ा दी है. मारियुपोल को मटियामेट और खेरसोन को खाक कर रूस ने अब ओडेशा को तबाह करने का फैसला कर लिया है. पुतिन पहले ही साफ कर चुके हैं कि मकसद पूरा होने तक युद्ध नहीं रुकेगा. मकसद ये है कि यूक्रेन के हर बॉर्डर पर रूस का कब्जा हो, जिससे यूक्रेन को मिलने वाली अमेरिकी और नाटो की मदद पर लगाम लगाई जा सके. भले ही इसके लिए एच बम तक ही क्यों न दागना पड़े, जिसकी तैयारी भी रूस कर चुका है.
रूस ने यूक्रेन को दक्षिण से दहलाने की तैयारी की
साफ है कि रूस ने यूक्रेन को दक्षिण से दहलाने की तैयारी कर ली है. सवाल ये है कि क्या दुनिया ऐसा ही मंजर देखने वाली है. ब्लैक सी से रूसी मिसाइलें यूक्रेन को कोने-कोने में एटमी तबाही ला सकती हैं, इसीलिए डोनेस्क से लेकर ओडेशा तक रूसी फौज भीषण तबाही मचा रही है. रूस का हर हथियार तैयार है. कमी एटम बम की ही थी, उसके लिए भी पुतिन की फौज रेडी है जिसका एहसास यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की को हो चुका है. रूस की फौज भले ही कुछ इलाकों से पीछे जा रही हो, लेकिन ये तय है कि रूस न तो बमबारी रोकेगा ना ही एयरस्ट्राइक कम होंगी बल्कि खतरा अब उससे भी बड़ा है, क्योंकि रूस की फौज अब डोन्बास और दक्षिणी हिस्से में भीषण बमबारी कर रही है.
यूक्रेन जानता है कि पुतिन अपने मकसद में कामयाब होने से पहले युद्ध नहीं रोकेंगे. वहीं यूक्रेन की पहरेदारी का दम भरने वाले अमेरिका से पुतिन पहले से ही खार खाए हुए हैं, इसीलिए रूस खुलेआम अमेरिका और नाटो देशों को मैदान-ए-जंग में उतरने के लिए ललकारता रहा है. बावजूद इसके अमेरिका और नाटों दूर से ही यूक्रेन की तबाही का तनाशा देखते रहे हैं, लेकिन अब ब्लैक सी में एटमी ब्रिगेड उतारकर पुतिन ने यूक्रेन के मददगारों को समंदर से चुनौती दे दी है. अगर अमेरिका या यूरोप रूस-यूक्रेन की लड़ाई में उतरते हैं तो दुनिया 77 साल बाद एटमी तबाही का वो मंजर देखेगी, जिसे आने वाली कई नस्लें नहीं भूल पाएंगी.
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