कारगिल युद्ध के कई साल बीत जाने के बाद भी भारत में अभी तक नहीं बनी कोई व्यापक हथियार और रणनीतिक योजना

SHARE:

Kargil War

कारगिल युद्ध को लंबा समय बीत चुका है. 1999 के इस कारगिल संघर्ष से हमने जो सबक सीखे या हमें जो हमें सबक मिले इससे हम सब वाकिफ हैं. इस युद्ध में आधिकारिक तौर पर 527 शहीद हुए और 1,363 घायल हुए. वहीं 16,000-18,000 फीट की ऊंचाई पर लड़े गए कारगिल युद्ध में भारतीय सेना ने अंदर तक घुसे दुश्मन से लड़ने के लिए अहम भूमिका निभाई. तब से लेकर अब तकभारतीय सैनिकों को प्रशिक्षण और डटे रहने की शक्ति से लेकर हथियारों और रणनीतियों तक ने एक लंबा सफर तय किया है. पीछे मुड़ कर देखने पर यह सफर काफी हद तक लंबा और बड़ा दिखता है मगर अब भी यह व्यापक नहीं है. आलम यह है कि कारगिल युद्ध के कई साल बीत जाने के बाद भी भारत में अभी तक कोई व्यापक हथियार और रणनीतिक योजना नहीं बनी है.

सीडीएस का पद अब भी खाली है

सबसे पहले बेहतर समन्वय, कमांड में एकरूपता, सुधारों को अंजाम देने के लिए और बुनियादी ढांचे के पूरे उपयोग के लिए एक चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) की जरूरत है. के सुब्रह्मण्यम के नेतृत्व वाली कारगिल समीक्षा समिति (केआरसी) 1999 के कारगिल युद्ध के तुरंत बाद अस्तित्व में आई. इसके द्वारा दी गई सबसे महत्वपूर्ण सिफारिशों में से एक सीडीएस की नियुक्ति रही. इसे जांच करना था कि पाकिस्तानी फौज कैसे रणनीतिक ऊंचाइयों पर कब्जा करने में सफल हो गई और भारत की शुरुआती प्रतिक्रिया क्यों सुस्त रही. इसने राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करने के उपायों को लेकर भी सुझाव दिया.

इसके बावजूद सरकार को सीडीएस (स्वर्गीय जनरल बिपिन रावत) नियुक्त करने में करीब दो दशक लग गए, जो दिखाता है कि रक्षा जैसे महत्वपूर्ण मामलों में हमारा दृष्टिकोण कितना लापरवाही वाला है. एक दुखद हेलीकॉप्टर दुर्घटना में जनरल रावत के देहांत के सात महीने बाद भी भारत के पास इस वक्त कोई सीडीएस नहीं है. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने जून में कहा था कि “सीडीएस की नियुक्ति की प्रक्रिया जारी है” और यह नियुक्ति “जल्द ही” की जाएगी. यह उस सेना की स्थिति है जिसमें 14 लाख से अधिक सक्रिय जवान शामिल हैं. भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा सैन्य बल है.

रक्षा के थिएटराइजेशन का काम चल रहा है

‘रक्षा के थिएटराइजेशन का काम चल रहा है. यह भारतीय सेना में सबसे बड़ा परिवर्तन लाने वाला अभ्यास माना जा रहा है, जिसका उद्देश्य सभी बलों को एक सूत्र में बांध कर उसकी मिली-जुली शक्ति को बढ़ाना है. तीनों सेनाओं के बीच मतभेद और जनरल रावत की मौत ने इस प्रक्रिया को लम्बा खींच दिया है.

लगातार बढ़ रहा है रक्षा बजट

1999 में भारत का सैन्य खर्च 13.90 अरब डॉलर था और 2021-22 में यह बढ़कर 49.6 अरब डॉलर हो गया. बढ़ता रक्षा बजट सातवें वेतन आयोग के अनुसार वेतन और पेंशन में बढ़ोतरी के साथ बड़े पैमाने पर रक्षा सौदे की तरफ भी इशारा करता है. 2021-22 के रक्षा बजट में वेतन और पेंशन का हिस्सा क्रमशः 30 और 28 प्रतिशत रहा.

अग्निपथ योजना

सरकार नई अग्निपथ योजना लेकर आई है. देश भर में विरोध और संसद में हंगामे के बावजूद अग्निपथ योजना को लाने का पहला उद्देश्य सशस्त्र बलों की औसत आयु को कम करना है. अग्निपथ का दूसरा मकसद सरकार द्वारा सुरक्षा बलों को दिये जाने वाले पेंशन भुगतान को कम करना है. पेंशन भुगतान के माध्यम से सरकार जो बचत करेगी वह हमारे सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण के लिए खर्च किया जा सकता है. विशेषज्ञों के अनुसार यह “समय की मांग” है. आज जब देश में अग्निपथ योजना पर बहस जारी है, मोदी सरकार आराम से प्रमुख रक्षा सौदों में तेजी लाने का दावा कर सकती है जो ‘आत्मनिर्भरता’ पर लगातार जोर दिये जाने के बावजूद अब भी मुख्यतः आयात पर ही आधारित है. निःसंदेह, नए हथियार और प्रणालियां छोटी अवधि के युद्ध (जैसे कारगिल संघर्ष) और लंबी गतिरोध वाली स्थिति (जैसे चीन के साथ एलएसी के साथ पूर्वी लद्दाख में) में नतीजे को पलट देने का माद्दा रखती हैं.

1 जनवरी 2014 को मेजर जनरल रेमंड जोसेफ नोरोन्हा ने रांची में नव-स्वीकृत सत्रहवीं माउंटेन स्ट्राइक कोर की स्थापना की. सत्रहवीं वाहिनी का सिद्धांत है: ‘आक्रमण ही सर्वश्रेष्ठ बचाव है’. सैन्य योजनाकारों ने हिमालय की सीमाओं के लिए 90,000 जवानों की एक कोर के बारे में सोचा था, जिसमें दो डिवीजन होंगे, जो परिवहन और अटैक हेलीकॉप्टर और ड्रोन से लैस होंगे. लेकिन ब्रह्मास्त्र कोर के नाम से पहचान वाली सत्रहवीं वाहिनी की पश्चिम बंगाल के पानागढ़ में केवल 16,000 जवानों के साथ एक पैदल सेना का डिवीजन है. पठानकोट में प्रस्तावित दूसरे डिवीजन को कथित तौर पर ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है.

चीन के साथ सीमा पर चल रहे तनाव के कारण सेना ने सत्रहवीं वाहिनी में 10,000 और सैनिकों को जोड़ा है. अगस्त 2020 में कैलाश रिज पर कब्जा करने के लिए सेना का ऑपरेशन स्नो लेपर्ड अभियान इस बात का प्रमाण है कि रक्षात्मक रणनीति अब चीन के मामले में प्रभावी नहीं है.

भारत के पास मौजूद आयुध और गोला-बारूद

1999 के बाद निम्नलिखित हथियार, उपकरण और मशीनों ने भारतीय रक्षा बलों की प्रतिक्रिया को काफी तेज कर दिया है. ये अपने साथ भारतीय सेना में विश्वास रखने वाले लोगों को भी आश्वस्त करते हैं कि हमारी सेना ताकतवर है और हमें महफूज रख सकती है:

हेलमेट/बॉडी आर्मर

2020 में भारतीय सेना ने एक लाख से अधिक ‘एके-47 संरक्षित’ हेलमेट खरीदने की प्रक्रिया शुरू की. यह इन विशेष बैलिस्टिक हेलमेट की दुनिया की सबसे बड़ी खरीद में से एक है. सेना के जवान इस नए ‘मेड इन इंडिया’ बुलेटप्रूफ हेलमेट के साथ 9 मिमी कार्बाइन बुलेट स्ट्राइक से सुरक्षित रहते हैं. मेक इन इंडिया के तहत इन अत्याधुनिक हेलमेट की खरीद 2016 में तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर के वक्त एक बड़े अनुबंध के तहत हुई जो यूपी के कानपुर स्थित एमकेयू लिमिटेड और रक्षा मंत्रालय के बीच किया गया. ठेका 1.5 लाख से अधिक बुलेट प्रूफ हेलमेट (बीपीएच) के लिए था. इस साल की शुरुआत में कश्मीर घाटी में कुछ आतंकवादियों ने भारतीय सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में अमेरिकी गोलियों का इस्तेमाल किया जो इन बुलेटप्रूफ जैकेटों को भेदने में सफल रहे.

“आतंकवादियों ने मुठभेड़ों के दौरान इन गोलियों का इस्तेमाल किया. उन्होंने कुछ मामलों में इन रक्षात्मक जैकेट को बेध दिया. हम अब तक स्तर 3 जैकेट का उपयोग कर रहे थे मगर अब जल्द ही हमें स्तर 4 जैकेट मिल जाएंगे जो इन गोलियों के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करेंगे,” श्रीनगर स्थित चिनार कोर के शीर्ष अधिकारी ने समाचार एजेंसी एएनआई को बताया.

रिपोर्टों में कहा गया है कि भारतीय सेना अपने सैनिकों के लिए एक पूरे शरीर वाला सूट ‘सर्वत्र कवच’ खरीदने के कगार पर है, जिसमें किसी भी चीनी कच्चे माल का इस्तेमाल नहीं हुआ है. इसे भारत में ही डिजाइन, विकसित और निर्मित किया जा रहा है. इसके अलावा हैदराबाद के कंचनबाग इलाके में मिश्र धातु निगम लिमिटेड (मिधानी) में अंतरराष्ट्रीय मानकों और सुरक्षात्मक गियर के बुलेटप्रूफ जैकेट बनाने और बुलेटप्रूफ वाहनों की आपूर्ति के लिए एक विशेष इकाई का निर्माण किया जा रहा है.

भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (बीएआरसी) के प्रौद्योगिकी विकसित करने के कारण इस बुलेटप्रूफ जैकेट का नाम ‘भाभा कवच’ रखा गया है. ये जैकेट एके-47 से चलाई गई गोली को भी रोक सकता है. हालांकि, मीडिया रिपोर्टों में यह भी कहा गया है कि ऐसे सैकड़ों बॉडी आर्मर पहले से ही उपयोग में हैं.

एसआईजी सोएर और एके-203 राइफल

2019 में भारतीय सेना ने अपनी अग्रिम पंक्ति के सैनिकों के लिए कमजोर स्वदेशी इंसास राइफल (कारगिल युद्ध के दौरान जिसने अपना कमाल दिखाया था जबकी ये बंदूकें सैनिकों की पसंदीदा नहीं थीं) को बदलने का फैसला किया और 9 करोड़ रुपये में अमेरिका से एसआईजी सोएर राइफलें खरीदीं. रिपोर्टों में कहा गया है कि “ऑपरेशनल ग्लिट्स” के बाद भी 73,000 एसआईजी सोएर 716 जी2 राइफल की दोबारा खरीद की जा रही है. हालांकि स्थानीय 7.62 मिलीमीटर की गोली दागते वक्त इनमें जाम होने की शिकायत आई है.

रिपोर्टों में कहा गया है कि भारत को रूस से पहले ही 70,000 एके-203 राइफलें मिल चुकी है. सूत्रों ने बताया कि पहले बैच का उपयोग वायु सेना कर सकती है जबकि यूपी के अमेठी कारखाने में बनने वाली 6 लाख से अधिक एक-203 राइफलों को इसके मुख्य ग्राहक सेना को दिया जाएगा.

स्वाति गन-लोकेटिंग राडार

चीन की सीमा पर सुरक्षा को मजबूत करने के लिए भारतीय सेना ने 950 करोड़ की लागत से रक्षा अनुसंधान और विकास संस्थान (डीआरडीओ) द्वारा विकसित 12 स्वाति वेपन लोकेटिंग रडार (डब्ल्यूएलआरएस) खरीदने की योजना बनाई है. मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि स्वाति डब्ल्यूएलआरएस सेना को दुश्मन द्वारा दागी गई तोपों की सही पोजिशन जानने में मदद करेगी. रडार एक साथ अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग हथियारों से दागे गए गोलों का पता लगा सकता है.

बहुत ही हल्के होवित्जर तोप

पेंटागन के विदेशी सैन्य बिक्री (एफएमएस) कार्यक्रम के तहत भारतीय सेना को लगभग 750 मिलियन डॉलर की लागत से बीएई सिस्टम्स से 145 एम777 अल्ट्रा लाइटवेट होवित्जर तोप मिले हैं. एम777 दुनिया का पहला 155-मिलीमीटर होवित्जर है जिसका वजन 10,000 पाउंड (4,218 किलोग्राम) से कम है. आंशिक रूप से टाइटेनियम से बने इन तोपों को बगैर वक्त गांवाए ऊंचाई वाले इलाकों में विमानों से ले जाया जा सकता है. पहाड़ी युद्ध के लिए यह आदर्श भी है और अनुकूल भी. एम777 की फायरिंग रेंज 25 किलोमीटर तक है. भारतीय सेना अपनी नई 17 माउंटेन स्ट्राइक कोर में इस नई तोप को शामिल करने की योजना बना रही है.

क्वाडकॉप्टर या ड्रोन

रक्षा मंत्रालय ने निगरानी के लिए दो तरह के क्वाडकॉप्टर (ड्रोन) की खरीद का अनुरोध किया है. सेना नए ड्रोन की तलाश कर रही है, जो अत्यधिक ऊंचाई पर भी हर मौसम में सही ढंग से काम करे. रक्षा मंत्रालय ने निगरानी क्वाडकॉप्टर या ड्रोन के दो संस्करणों की खरीद के लिए सूचना के लिए एक अनुरोध (आरएफआई) जारी किया है जिसे समुद्र के स्तर से 4,000 मीटर ऊपर या नीचे तैनात किया जा सके. आरएफआई के हवाले से मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि शत्रु द्वारा कब्जा कर लिए जाने पर इस निगरानी ड्रोन में ऐसा तंत्र होना चाहिए जो उसे पूरी तरह से नष्ट कर दे. उस पर इलेक्ट्रोमैगनेटिक (ईडब्ल्यू) इंटरफेरेंस का असर नहीं होना चाहिए. उसमें एंटी जैमिंग और शत्रुओं को धोखा देने के भी गुण होने चाहिए.

एडवांस्ड लाइट हेलीकाप्टर

कारगिल युद्ध के दौरान भारत के पास उन ऊंचाइयों पर उड़ पाने वाला हेलिकॉप्टर नहीं था. वायु सेना के विमानों को घातक स्टिंगर और एसएएम मिसाइलों से जूझना पड़ रहा था. लद्दाख में सर्दियों के मौसम में अग्रिम चौकियों पर तैनात सैनिकों की सहायता के लिए भारतीय हेलीकॉप्टरों को बनने में लगभग दो दशक लग गए. ऊंचाई वाली ठंडी जगहों पर दो तरह के हेलीकॉप्टरों ने सफलता पूर्वक अपनी उपयोगिता साबित की है. एडवांस्ड लाइट हेलीकॉप्टर (एएलएच) ने दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धक्षेत्र सियाचिन ग्लेशियर में आपूर्ति मिशन को सफलतापूर्वक अंजाम दिया है. इसे हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) ने तैयार किया है.

राफेल लड़ाकू विमान और उसमें लगे हथियार

भारतीय वायु सेना ने राफेल लड़ाकू जेट के दो स्क्वाड्रन जोड़े हैं. 42 स्क्वाड्रनों की मंजूरी के बावजूद भारतीय वायुसेना के पास इस वक्त मुश्किल से 30 स्क्वाड्रन (प्रत्येक में लगभग 18 लड़ाकू विमान) हैं. 36 फ्रेंच राफेल हवा से हवा में मार करने वाले मीका, मीटिओर मिसाइलों और हवा से जमीन पर मार करने वाले स्कैल्प स्टैंड-ऑफ हथियारों के अलावा सभी मौसम में हवा से सतह पर मार करने वाले स्मार्ट हथियारों से लैस हैं. हैमर बगैर जीपीएस के कम दूरी से लेकर 70 किलोमीटर तक की लंबी दूरी तक मार कर सकता है. एक बार छोड़े जाने पर इसका इस्तेमाल दोबारा नहीं किया जा सकता. यह न तो जाम होता है न ही इसमें लक्ष्य को लेकर किसी तरह की चूक होती है.

यह भी पढ़ें

[ट्रेंडिंग]_$type=ticker$count=9$cols=4$cate=0$color=#0096a9

निष्पक्ष मत को फेसबुक पर लाइक करे


Name

General knowledge,1,Madhya Pradesh,740,National News,2678,राष्ट्रीय समाचार,2678,
ltr
item
कारगिल युद्ध के कई साल बीत जाने के बाद भी भारत में अभी तक नहीं बनी कोई व्यापक हथियार और रणनीतिक योजना
कारगिल युद्ध के कई साल बीत जाने के बाद भी भारत में अभी तक नहीं बनी कोई व्यापक हथियार और रणनीतिक योजना
https://images.tv9hindi.com/wp-content/uploads/2022/07/kargil-war-1.jpg
Madhya Pradesh News in Hindi
https://www.nishpakshmat.page/2022/07/blog-post_28.html
https://www.nishpakshmat.page/
https://www.nishpakshmat.page/
https://www.nishpakshmat.page/2022/07/blog-post_28.html
true
6650069552400265689
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts सभी देखें आगे पढ़े Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU TAGS ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content