भारत ने गुरुवार को एक बार फिर से चीन से कहा कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के प्रबंधन के लिए हुए समझौतों का ईमानदारी से पालन किया जाए. भारत का यह बयान पूर्वी लद्दाख में सीमा पर जारी गतिरोध (Border Dispute) को दूर करने के लिए होने वाली 16वीं दौर की सैन्य बैठक के दो दिन पहले आया है. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा, ‘यह आवश्यक है कि भारत और चीन के बीच 1993 और 1996 में हुए उचित समझौतों का ईमानदारी से अनुपालन किया जाए.’ वह मीडिया से बातचीत के दौरान पूर्वी लद्दाख में जारी गतिरोध से जुड़े सवाल का जवाब दे रहे थे.
बागची ने विदेश मंत्री एस. जयशंकर के बयान का भी संदर्भ दिया कि भारत एलएसी पर स्थिति में एकतरफा बदलाव की किसी भी कोशिश को कभी स्वीकार नहीं करेगा. गौरतलब है कि पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन के बीच पांच मई 2020 से गतिरोध चल रहा है जिसकी वजह से पैंगोंग झील क्षेत्र में दोनों देशों के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प हुई थी. इसके बाद-बाद दोनों पक्षों ने हजारों सैनिकों व भारी हथियारों की उन इलाकों में तैनाती की.
विदेश मंत्री ने भारत-चीन सीमा विवाद पर कड़ा रुख अख्तियार किया
इससे पहले विदेश मंत्री एस जयशंकर ने मंगलवार को भारत-चीन सीमा विवाद पर कड़ा रुख अख्तियार करते हुए कहा कि एलएसी पर यथास्थिति को बदलने के किसी भी एकतरफा प्रयास को ‘बर्दाश्त’ नहीं किया जाएगा. इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि मौजूदा समस्या 1962 में रणनीतिक क्षेत्रों पर चीन द्वारा कब्जा किए जाने का नतीजा है. कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के ट्वीट के संबंध में भारत सरकार की आधिकारिक स्थिति के संदर्भ में एक प्रश्न पर विदेश मंत्री की यह प्रतिक्रिया आई. गांधी ने ट्वीट में दावा किया था कि भारतीय क्षेत्र में ‘चीनी घुसपैठ बढ़ रही है’.
‘LAC पर एकतरफा ढंग से बदलने का प्रयास बर्दाश्त नहीं किया जाएगा’
जयशंकर ने कहा, ‘पिछले दो साल में जो हुआ है, हम यह सुनिश्चित करने में बहुत स्पष्ट और बहुत सक्षम रहे हैं कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर यथास्थिति को एकतरफा ढंग से बदलने का कोई भी प्रयास हमारे द्वारा बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.’ उन्होंने कहा कि दोनों देशों के सैन्य कमांडरों और राजनयिकों के बीच बातचीत के जरिए सीमा मुद्दे को सुलझाने के प्रयास जारी हैं. जयशंकर ने कहा कि पूर्वी पड़ोसी के साथ सीमा मुद्दा मुख्यत: कांग्रेस शासन के दौरान 1962 में लद्दाख सहित भारत के एक बड़े हिस्से पर चीन द्वारा कब्जा किए जाने के कारण है.