देश के निर्माणाधीन संसद भवन (New Parliament Building) की छत पर राष्ट्रीय प्रतीक का अनावरण किए जाने के बाद उसके स्वरूप को बदले जाने पर शुरू हुआ विवाद जारी है. भारतीय जनता पार्टी ने कहा कि नए संसद भवन के शीर्ष पर स्थापित राष्ट्रीय प्रतीक (National Emblem) चिह्न वाराणसी के पास सारनाथ में स्थित प्रतीक चिह्न की ही प्रतिकृति है, जबकि विपक्ष ने इसे बदलने का आरोप लगाया और तत्काल बदलने की मांग की. दूसरी ओर, इसे बनाने वाले कलाकारों का कहना है कि डिजाइन में कोई बदलाव नहीं किया गया है.
इससे पहले विपक्षी दलों के कई सदस्यों ने कल मंगलवार को केंद्र सरकार पर अशोक की लाट के ‘मोहक और राजसी शान वाले’ शेरों की जगह उग्र शेरों का चित्रण कर राष्ट्रीय प्रतीक के स्वरूप को बदलने का आरोप लगाया और इसके स्वरूप को तत्काल बदलने की मांग की.
PM मोदी ने सोमवार को किया था अनावरण
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो दिन पहले सोमवार को देश के नए संसद भवन की छत पर राष्ट्रीय प्रतीक का अनावरण किया था. इस दौरान आयोजित समारोह में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला और राज्यसभा के उप सभापति हरिवंश उपस्थित थे. भारतीय जनता पार्टी ने विपक्ष के विरोध को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को निशाना बनाने की एक और ‘साजिश’ बताकर खारिज कर दिया. साथ ही विपक्ष ने पीएम मोदी पर संविधान के नियमों को तोड़ने और समारोह में किसी भी विपक्षी नेताओं को आमंत्रित नहीं करने के लिए भी निशाना साधा है.
9,500 किलोग्राम की कांसे का प्रतीक तैयार करने वाले डिजाइनर सुनील देवरे और रोमियल मूसे ने समाचार चैनल एनडीटीवी को बताया कि डिजाइन में “कोई बदलाव नहीं” किया गया है. सुनील देवने ने कहा, “हमने विस्तार पर खासा ध्यान दिया है. शेर का चरित्र एक ही है. बहुत मामूली अंतर हो सकते हैं. लोगों की अलग-अलग व्याख्याएं हो सकती हैं. यह एक बड़ी मूर्ति है, और नीचे से देखने पर थोड़ा बदला दिख सकता है.
99 फीसदी अशोक प्रतीक के अनुसार मूर्तिः मूर्तिकार
मूर्तिकार सुनील देवरे, जो परियोजना के प्रभारी थे, ने आगे कहा, “नई संसद के ऊपर प्रतीक को कम से कम 100 मीटर दूर से देखा जाना चाहिए. इसलिए, मूर्तिकला पर विवरण ऐसा होना चाहिए कि यह दूर से दिखाई दे.” उन्होंने यह स्वीकार करते हुए कहा कि मामूली बदलाव हो सकते हैं. यह प्रतिकृति अधिकतम, 99 प्रतिशत अशोक प्रतीक के अनुसार, ही है.
इससे पहले कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने निराशा जताते हुए कहा, “सारनाथ स्थित अशोक के स्तंभ पर शेरों के चरित्र और प्रकृति को पूरी तरह से बदल देना भारत के राष्ट्रीय प्रतीक का अपमान है.” तृणमूल कांग्रेस नेता महुआ मोइत्रा ने भी इस मुद्दे पर कहा, “सच कहा जाए, सत्यमेव जयते से संघीमेव जयते की भावना पूरी हुई है.”
हालांकि बीजेपी के मुख्य प्रवक्ता और राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी ने कहा कि विपक्ष के आरोपों की मूल वजह उनकी कुंठा है कि प्रधानमंत्री मोदी की अगुवाई वाली सरकार के कार्यकाल में, अंग्रेजों द्वारा 150 साल पहले बनाए गए संसद भवन की जगह भारत अपना नया संसद भवन बना रहा है.
शहरी मामलों के मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने इस पर जोर दिया कि यदि सारनाथ स्थित राष्ट्रीय प्रतीक के आकार को बढ़ाया जाए या नए संसद भवन पर बने प्रतीक के आकार को छोटा किया जाए, तो दोनों में कोई अंतर नहीं होगा. उन्होंने यह भी कहा, “सारनाथ स्थित मूल प्रतीक 1.6 मीटर ऊंचा है जबकि नए संसद भवन के ऊपर बना प्रतीक विशाल और 6.5 मीटर ऊंचा है.”
इतिहासकार इरफान हबीब ने भी स्थापित राष्ट्रीय प्रतीक पर आपत्ति जताई है. उन्होंने कहा, “हमारे राष्ट्रीय प्रतीक के साथ छेड़छाड़ पूरी तरह अनावश्यक है और इससे बचा जाना चाहिए. हमारे शेर अति क्रूर और बेचैनी से भरे क्यों दिख रहे हैं? ये अशोक की लाट के शेर हैं जिसे 1950 में स्वतंत्र भारत में अपनाया गया था.”
इनपुट- एजेंसी/भाषा