
कर्नाटक हाईकोर्ट ने हावेरी जिले के ब्याडगि तालुक में एक राज्य राजमार्ग को चौड़ा करने के लिए भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया रद्द कर दी है.
कई जमीन मालिकों द्वारा दायर पांच याचिकाओं को सुनवाई के लिए मंजूर करते हुए कर्नाटक हाईकोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास एवं पुन:स्थापन (कर्नाटक) अधिनियम की धारा-34 में किए गए संशोधन को इन जमीन मालिकों की भूमि के अधिग्रहण की प्रक्रिया के संबंध में अवैध करार दिया. यह धारा उचित मुआवजे एवं पारदर्शिता के अधिकार से जुड़ी है.
राज्य सरकार ने 16 मई 2020 को एक अधिसूचना जारी कर राज्य राजमार्ग-136 के लिए प्रस्तावित जमीन अधिग्रहण के संबंध में सामाजिक असर मूल्यांकन (एसआईए) में छूट दी थी. सभी याचिकाओं में याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि वे हावेरी जिले के ब्याडगि तालुक में रहते हैं और शहर के बाजार वाले इलाके में कारोबार करते हैं. हावेरी के उपायुक्त द्वारा 20 फरवरी 2019 को किए गए अनुरोध के अनुसार, कर्नाटक सरकार ने ब्याडगि शहर में गजेंद्रगड-सोराब राज्य राजमार्ग के चौड़ीकरण के उद्देश्य से याचिकाकर्ताओं की जमीन समेत अन्य भूमि के अधिग्रहण के लिए 18 सितंबर 2019 को मंजूरी दी थी.
जमीन मालिकों ने किया था हाईकोर्ट का रुख
इन जमीन मालिकों ने हाईकोर्ट का रुख किया था. हाईकोर्ट ने 12 मार्च 2020 के अपने अंतिम आदेश में प्राधिकारियों को याचिकाकर्ताओं तथा अन्य जमीन मालिकों की भूमि के अधिग्रहण के लिए कानून के अनुसार प्रक्रिया शुरू करने का निर्देश दिया था. हालांकि, दो महीने बाद सरकार ने एक अधिसूचना जारी कर एसआईए में छूट दी, जिसके बाद जमीन मालिकों ने फिर से हाईकोर्ट का रुख किया. मामले पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति एस आर कृष्ण कुमार ने हाल ही में दिए अपने फैसले में कहा, ‘कर्नाटक के 2015 के उक्त अधिनियम की धारा-34 में किया गया संशोधन अधिग्रहण प्रक्रिया के संबंध में लागू नहीं होता है.’
113 संपत्ति मालिकों ने खटखटाया था कोर्ट का दरवाजा
हाईकोर्ट ने कहा कि 16 मई 2020 की आक्षेपित अधिसूचना को कानून की नजर में अवैध, अमान्य, निष्क्रिय, शून्य, गैरकानूनी और गैर-स्थायी माना जाता है. कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं की भूमि के संबंध में अधिग्रहण की कार्यवाही, जो कि लागू अधिसूचना के मुताबिक शुरू की गई थी, साफतौर से अवैध और अमान्य हैं. कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की भूमि के संबंध में प्रारंभिक अधिसूचना और अंतिम अधिसूचना को भी रद्द कर दिया. कुल 113 संपत्ति मालिकों ने पांच अलग-अलग याचिकाओं में हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.
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(भाषा इनपुट के साथ)
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