PM सुरक्षा में बरती गई वो लापरवाही जिसने प्रधानमंत्री के करीबी IPS को सस्पेंड करवा डाला

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Rajiv Gandhi

अमूमन जब भी कभी किसी बड़े नेता मंत्री मतलब वीवीआईपी की सुरक्षा में सेंध लगती है. तो निचले पायदान पर मौजूद सुरक्षा, खुफिया कर्मचारियों को आरोपी बनाकर फटाफट ‘नाप’ दिया जाता है. ताकि सुरक्षा में लापरवाही का ठीकरा किसी बड़े जिम्मेदार अफसर के सिर न फूटने पाए. यहां मैं जिक्र कर रहा हूं मगर इसके एकदम विपरीत उस सच्चे किस्से का जिसमें, प्रधानमंत्री के ऊपर हुए जानलेवा हमले में उन्हीं के करीबी विश्वासपात्र-रिश्तेदार एक वरिष्ठ आईपीएस अफसर को सस्पेंड करवा डाला था. इस अफसर के सस्पेंशन की सिफारिश की गई थी तब, भारत सरकार के सचिव तेज तर्रार अफसर टी.एन. शेषन की तरफ से. यह किस्सा जुड़ा है पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के ऊपर 36 साल पहले हुए कातिलाना हमले से. उस घटना के बाद सस्पेंड किए जाने वाले आईपीएस अधिकारी हैं 1965 बैच के गौतम कौल. आइए जानते हैं कि आखिर क्या था पूरा मामला?

दरअसल यह किस्सा है 2 अक्टूबर 1986 का. यानी अब से करीब 36 साल पहले. उस दिन भारत के राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह, प्रधानमंत्री राजीव गांधी और केंद्रीय गृहमंत्री बूटा सिंह, देश की राजधानी दिल्ली में स्थित राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की समाधि स्थल पर गए थे. देश की इन सभी सुपर पावर के एक साथ उस दिन राजघाट पर पहुंचने की वजह थी, गांधी जयंती के अवसर पर बापू को पुष्प अर्पित करना. समय रहा होगा सुबह के 6 बजे से साढ़े आठ बजे के बीच का. ऐसे में इन सभी वीवीआईपी मेहमानों की सुरक्षा का जिम्मा था देश की खुफिया एजेंसियों और दिल्ली पुलिस का. तब तक देश के प्रधानमंत्री और उनके परिवार की सुरक्षा के लिए आज की सी स्पेशल प्रोटक्शन ग्रुप यानी एसपीजी दस्ते का गठन नहीं हुआ था. ऐसे में विशेषकर दिल्ली में जब भी इन वीवीआईपी का मूवमेंट होता तो उस दौरान, इनकी और इनके परिवार की सुरक्षा की जिम्मेदारी दिल्ली पुलिस के कंधों पर हुआ करती थी.

“देखिए गोली चली है. यह गोली की आवाज है”

2 अक्टूबर सन् 1986 को प्रधानमंत्री राजीव गांधी, पत्नी सोनिया गांधी, केंद्रीय गृहमंत्री बूटा सिंह और तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह के साथ राजघाट पहुंच चुके थे. समय रहा होगा सुबह के यही कोई छह सवा छह बजे का. जैसे ही राजीव गांधी ने गांधी समाधि के मुख्य द्वार के अंदर पांव रखा. वैसे ही “धांय” के साथ गोली चलने की आवाज आई. उस धांय की आवाज के साथ प्रधानमंत्री राजीव गांधी के मुंह से तेज आवाज में निकला, “देखिए गोली चली है. यह गोली की आवाज है.” प्रधानमंत्री राजीव गांधी की उस हड़बड़ाई हुई आवाज के साथ उनसे एकदम सटकर चल रहे केंद्रीय गृहमंत्री की आवाज आई, “शूट हिम. गोली मार दीजिए उसको.”

प्रधानमंत्री के ऊपर उस कातिलाना हमले के बाद सीबीआई की जांच टीम के प्रमुख रहे और उन दिनों सीबीआई में पंजाब टेररिस्ट सेल के मुखिया शांतनु सेन टीवी9 भारतवर्ष को 36 साल बाद विशेष बातचीत के दौरान कहते हैं, “प्रधानमंत्री ने जैसे ही गोली चलने की और गृहमंत्री बूटा सिंह ने हमलावर को मार गिराने की बात कही. उसी दौरान मौके पर मौजूद भारतीय सेवा के पुलिस अधिकारी गौतम कौल ने कहा, नहीं इसको (अटैक करने वाले को) मारना नहीं है. जिंदा पकड़िए.”

दिल्ली पुलिस की थी सुरक्षा की जिम्मेदारी

मतलब प्रधानमंत्री के ऊपर उतनी कड़ी सुरक्षा में भी गोली चलाकर उनकी जान लेने की उस नाकाम कोशिश की घटना ने, हिंदुस्तान की हुकूमत और एजेंसियों को पसीना ला दिया था. हड़बड़ाहट में जिसके दिमाग में जो कुछ आ रहा था. वह वही कह जा रहा था. उसके कहने का परिणाम आइंदा क्या हो सकता है? इसकी चिंता या इस बारे में सोचने का वक्त किसी के पास नहीं था. दरअसल जिन 1965 भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी गौतम कौल का जिक्र ऊपर स्टोरी में आया है.

वे उन दिनों दिल्ली पुलिस में सिक्योरिटी और ट्रैफिक विंग के एडिश्नल पुलिस कमिश्नर हुआ करते थे. प्रधानमंत्री की सुरक्षा की जिम्मेदारी उस दिन दिल्ली में स्थानीय पुलिस की ही थी. घटनास्थल पर दिल्ली पुलिस के डीसीपी सिक्योरिटी पूरन सिंह भी मौजूद थे. दरअसल बाद में जब देश के वरिष्ठ दबंग ब्यूरोक्रेट और उन दिनों भारत सरकार के सचिव टीएन शेषन की अध्यक्षता में जांच कमेटी गठित हुई. तब इस बात का खुलासा हुआ था कि आखिर, आईपीएस गौतम कौल क्यों प्रधानमंत्री के ऊपर नाकाम कातिलाना हमला करने वाले को गोली न मारने की बात कह रहे थे. क्योंकि उसके मारे जाते ही षडयंत्र के तमाम बाकी पीछे मौजूद तार-तथ्य हमलावर की मौत के साथ ही दफन हो जाते.

पीएम पर चली गोली, गौतम कौल का निलंबन

बहरहाल राष्ट्रपति और केंद्रीय गृहमंत्री की मौजूदगी या कहिए चश्मदीदी में प्रधानमंत्री राजीव गांधी पर हुए उस हमले में, इन्हीं 1965 बैच के आईपीएस अधिकारी गौतम कौल को बाद में, टीएन शेषन की अध्यक्षता में गठित कमेटी की सिफारिश पर सस्पेंड कर दिया गया. गौतम कौल का निलंबन उतनी ही बड़ी घटना थी, जितना कि प्रधानमंत्री के ऊपर गोली चलाया जाना. वजह, क्योंकि गौतम कौल नेहरु-गांधी परिवार के रिश्तेदार थे. जिसके चलते उनकी इंदिरा गांधी परिवार में खासी धमक हुआ करती थी.

उनके निलंबन की सिफारिश चूंकि टीएन शेषन से दबंग ब्यूरोक्रेट ने की थी. वो भी तमाम तथ्यों से जांच के बाद मिली गौतम कौल की लापरवाही के चलते. ऐसे में हिंदुस्तानी हुकूमत लाख चाहते हुए भी गौतम कौल का निलंबन नहीं रोक सकी. लिहाजा प्रधानमंत्री राजीव गांधी पर उस दिन हुए उस नाकाम कातिलाना हमले में दिल्ली पुलिस के एडिश्नल पुलिस कमिश्नर स्तर के गौतम कौल से “हाईप्रोफाइल” आईपीएस का निलंबन आज तक, शायद ही उस जमाने का कोई भूल सका हो.

Karamjit Singh

62 साल के सरदार करमजीत सिंह जिन्होंने 2 अक्टूबर 1986 को 24 साल की उम्र में दिल्ली में राजघाट स्थित गांधी समाधि पर पहुंचे प्रधानमंत्री राजीव गांधी के ऊपर तीन गोलियां चलाईं थीं

पंजाब का रहने वाला था करमजीत

प्रधानमंत्री राजीव गांधी के ऊपर उस दिन राजघाट परिसर में गोली चलाने वाले करमजीत सिंह को मौके से ही रंगे हाथ जिंदा पकड़ लिया गया था. उसके पास से 12बोर का तमंचा भी मिला था. बाद में उस मामले की जांच करने वाले सीबीआई के रिटायर्ड ज्वाइंट डायरेक्टर शांतनु सेन कहते हैं, “करमजीत सिंह हमारी (सीबीआई टीम) जांच के आधार पर 14 साल की ब-मशक्कत सजा मुकर्रर की गई थी. जो उसने दिल्ली की तिहाड़ जेल में काटी. तब 24-25 साल का करमजीत सिंह दिल्ली में इंजीनियरिंग का विद्यार्थी था. वो मूल रूप से पंजाब का रहने वाला था. करमजीत को जेल में बेहतर चाल-चलन और जेल की सलाखों में भी अपनी जिंदगी बनाने के बेहतर कदम उठाने के चलते 14 साल में 5 महीने पहले ही रिहा कर दिया गया था.” जेल से 14 साल की सजा काटने के 5 महीने पहले ही रिहा कर देने की बात टीवी9 भारतवर्ष से विशेष बातचीत में खुद, पूर्व सजायाफ्ता मुजरिम करमजीत सिंह भी मानते हैं. करमजीत सिंह इन दिनों संगरूर (पंजाब) की कोर्ट में बहैसियत वकील प्रैक्टिस कर रहे हैं.

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