बिलकिस बानो केस में 11 दोषियों की रिहाई के मामले में गुजरात सरकार के साथ-साथ केंद्र सरकार पर भी सवाल उठते हैं. अब इस पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जवाब दिया है. उन्होंने कहा कि सजा देने का काम कोर्ट का है, हमारा नहीं है. ये एक कानून है. 14 साल की सजा में उनके व्यवहार के आधार पर रिहाई की जा सकती है, ये प्रावधान है. एक न्यूज चैनल के कार्यक्रम में शाह ने ये बात की.
इस मामले को लेकर उनसे सवाल किया गया कि जब दोषियों पर इतने संगीन आरोप हैं तो उन्हें पैरोल कैसे मिली. क्या केंद्र सरकार चाहती थी कि उन्हें पैरोल मिले? इस पर जवाब देते हुए अमित शाह ने कहा कि ऐसा नहीं है. ये एक कानून है. अगर कोर्ट ने उनको कोई और कठोर सजा दी होती तो उन्हें वो मिलती. कोर्ट ने 14 साल की सजा दी, उसमें उनके व्यवहार के आधार पर उन्हें रिहा किया जा सकता है. सजा देना कोर्ट का काम है, हमारा नहीं है.
बिलकिस गैंगरेप मामले में 11 लोगों को दोषी ठहराया गया था जिन्हें गुजरात सरकार की माफी नीति के तहत 15 अगस्त को गोधरा उप कारागार से रिहा कर दिया गया. दोषियों ने 15 साल की सजा पूरी कर ली है. इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में भी सुनवाई चल रही है. 11 दोषियों को माफी देने के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर अब 29 नवंबर को सुनवाई होगी. मामला गुजरात में हुए दंगों से जुड़ा है जिनमें बिलकीस के परिवार के सात लोग मारे गए थे.
गृह मंत्रालय ने दी रिहाई को मंजूरी: गुजरात सरकार
गुजरात सरकार ने शीर्ष अदालत में 1992 की छूट नीति के अनुसार दोषियों को रिहा करने के अपने फैसले का बचाव किया था और कहा था कि दोषियों ने जेल में 14 साल से अधिक की अवधि पूरी कर ली थी तथा उनका आचरण अच्छा पाया गया था. गुजरात सरकार ने अदालत को बताया कि गृह मंत्रालय, भारत सरकार ने 11 जुलाई, 2022 के पत्र के माध्यम से दोषियों की समय से पहले रिहाई को मंजूरी दी.
11 लोगों को सुनाई गई थी उम्रकैद की सजा
2002 में गोधरा में ट्रेन जलाए जाने की घटना के बाद गुजरात में भड़के सांप्रदायिक दंगों के समय बिलकीस बानो 21 साल की थी और पांच महीने की गर्भवती थी. इस दौरान उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया और तीन साल की बेटी सहित उसके परिवार के सात लोग मारे गए थे. मुंबई स्थित एक विशेष सीबीआई अदालत ने 21 जनवरी, 2008 को बिलकीस बानो से सामूहिक बलात्कार और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में 11 लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी. बाद में बॉम्बे हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने उनकी सजा को बरकरार रखा था.
(भाषा इनपुट के साथ)