भारत अगले साल संभालेगा G20 की अध्यक्षता, कूटनीतिक लिहाज से क्यों है ये इतना अहम?

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G20 Leaders' Summit

इंडोनेशिया की राजधानी बाली में नवंबर का मौसम काफी सुहाना होता है. हल्की ठंडक फिर हल्की धूप और बीच-बीच में बारिश भी. लेकिन आज यहां का माहौल थोड़ा तनावपूर्ण रहेगा. जी-20 मीटिंग के लिए दुनिया की बीस सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों के राष्ट्राध्यक्ष पहुंच चुके हैं. आज सब अपने-अपने देश के एजेंडे के साथ मीटिंग में हिस्सा लेंगे. ये बैठक हर साल होती है मगर G-20 2022 खास है. इसका कारण है रूस-यूक्रेन के बीच जारी जंग. फरवरी महीने में रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया. तब से अभी तक युद्ध निरंतर जारी है. इस युद्ध ने वैश्विक परिस्थितियों को बिल्कुल बदल दिया है. दो देशों के बीच आपसी रिश्तों पर भी गहरा असर पड़ा है.

जी20 दुनिया की 20 बड़ी अर्थव्यवस्थाओं का ऐसा का समूह है जो वैश्विक अर्थव्यवस्था की दिशा और दशा तय करता है. इस मीटिंग का प्रमुख उद्देश्य है वैश्विक अर्थव्यवस्था को सही ढंग से चलाने के लिए एजेंडा सेट करना. साल 2008 में सबसे ज्यादा इस सम्मेलन की उपयोगिता समझ में आई. आपको याद होगा ये वो साल था जब पूरी दुनिया मंदी की मार झेल रही थी. लाखों लोगों की नौकरी चली गई थी. आईटी कंपनियां घाटे में चली गईं थीं. यूं तो 1999 के एशियाई वित्तीय संकट के बाद ही जी20 की जरूरत महसूस हुई और इसको बनाया गया था लेकिन 2008 में जब वैश्विक नेताओं ने बैठक की तो इसका मतलब सामने आया.

हमारे लिए ये जानना काफी अहम है इस बार का जी-20 खास क्यों है?

2014 में पीएम मोदी के सत्ता संभालने के बाद सबसे प्रमुख रहा है विदेशी देशों से संबंध. हमने देखा भी विश्व के तमाम मुल्क अब भारत को कमतर आंकने की गलती बिल्कुल नहीं करते. पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और वर्तमान फॉरेन मिनिस्टर एस जयशंकर ने पूरी दुनिया में भारत की एक अलग ही छाप छोड़ी है. टॉप ब्यूरोक्रेट रहे जयशंकर ने कई मुद्दों पर यूरोपीय देशों को आइना दिखा दिया. फरवरी महीने में यूक्रेन-रूस की जंग छिड़ गई. भारत के ऊपर दवाब बना कि वो किसका साथ देगा. रूस भारत का पुराना सहयोगी था. ऐसी स्थिति में भारत न्यूट्रल रहा. यूक्रेन युद्ध के बाद दुनिया के सामने कई नई आर्थिक चुनौतियां हैं. पूरी दुनिया ऊर्जा संकट, अर्थव्यवस्था, महंगाई और गिरती करंसी से जूझ रही है. ऐसे में माना जा रहा है कि इस सम्मेलन के दौरान ये सभी मुद्दे हावी हो सकते हैं.

ऊर्जा संकट से जूझ रहे हैं यूरोपीय देश

यूक्रेन पर हमला करने के बाद रूस का अमेरिका सहित यूरोपीय देशों ने बायकॉट कर दिया. लेकिन उन देशों को ये पता नहीं था कि रूस गैस की सप्लाई भी रोक सकता है. रूस ने यूरोपीय देशों को गैस देना या तो बंद कर दिया या फिर न के बराबर कर दी. इसके कारण यूरोप के कई शहरों को ऊर्जा संकट से आज भी जूझ रहे हैं. वहां पर बिजली कीमतों में भारी उछाल हो रहा है. पावरकट हो रहे हैं और तो और पेरिस के मशहूर एफल टॉवर की तक की लाइटें बंद करने का आदेश देना पड़ा. सर्दियों के महीने में बिजली की खपत दो गुनी हो जाती है. ऐसे में यूरोप केसै इस संकट से दूर होगा ये भी चर्चा का विषय होगा.

बदली हुई हैं वैश्विक स्थितियां

इन सबके अलावा जी20 मीटिंग में रूस- यूक्रेन युद्ध, अमेरिका और चीन के बीच बढ़ रहा तनाव, महंगाई, दुनिया के सामने बढ़ रहा मंदी का ख़तरा, उत्तर कोरिया की परमाणु धमकियां और जलवायु परिवर्तन के कारण आ रही आपदाओं पर चर्चा होगी. आपको बता होगा कि पूरी दुनिया में लगभग 170 देश हैं लेकिन दुनियाभर का 85 फीसदी कारोबार जी20 सदस्य देशों में ही होता है. पहले सिर्फ अर्थव्यवस्था मामले में ही चर्चा होती थी मगर धीरे-धीरे बदलाव हुआ और इसमें
क्लाइमेट चेंज, वैश्विक आतंकवाद जैसे मुद्दों पर भी चर्चा होने लगी.

जी20 अध्यक्षता के मायने

जी-20 की अध्यक्षता हर साल एक नए देश के पास होती है. अब ये मौका भारत को मिलने जा रहा है. ये कूटनीतिक लिहाज से काफी अहम है. ऐसे में भारत के पास जी20 को फिर से उसके आर्थिक लक्ष्यों की तरफ ले जाने का मौका होगा. हम आपके मन में एक सवाल जरुर आ रहा होगा कि भारत को अगर अध्यक्षता मिली तो क्या फायदा होगा ? बीबीसी से बात करते हुए जेएनयू के एक प्रोफेसर स्वर्ण सिंह ने बताते हैं कि सबसे पहले तो जी 20 शिखर सम्मेलन की ये परंपरा रही है कि पिछले साल के अध्यक्ष और आने वाले साल के अध्यक्ष देश जो हैं वो एक दूसरे के साथ निरंतर तालमेल बनाए रखते हैं.

पिछले एक साल से बातचीत कर रहे भारत-इंडोनेशिया

उन्होंने बताया कि इसके कारण भारत और इंडोनेशिया पिछले एक साल से बातचीत कर रहे हैं. अगली बार जी-20 को किस तरफ ले जाना है और अलग-अलग मुद्दों को लेकर कैसे इस पर सहमति बनानी है. तो ये अच्छा अवसर होगा भारत के लिए दूसरे मुल्क के नेताओं से तालमेल बनाने का, उनको अगले साल भारत आने का निमंत्रण देने का और अपनी बात आगे रखने का.

भारत के पास होगा मौका

प्रोफेसर मानते हैं कि ये भारत के पास वैश्विक मुद्दों को अपनी सोच को दुनिया के सामने रखने का बड़ा मौका है. स्वर्ण सिंह कहते हैं, “भारत ने बहुत से मुद्दे उठाए हैं, जैसे इंटरनेशनल सोलर एलायंस की बात हो या प्रधानमंत्री ने पिछले साल ग्लासगो में जो लाइफस्टाइल फॉर इंविरॉनमेंट की बात की थी, तो भारत को एक मौका मिलता है कि इतने बड़े मंच से अपनी बात कहने का और उसको एक दिशानिर्देश देने का.”

भारत सेट करेगा एजेंडा

भारत अब अगले सम्मेलन की अध्यक्षता भी कर रहा है और भारत ही इसका एजेंडा तय करेगा. भारत इस समय दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है दुनिया में सबसे तेज़ी से आगे बढ़ने वाले देशों में शामिल है. प्रोफेसर स्वर्ण सिंह कहते हैं कि भारत को अध्यता मिलना ना सिर्फ बड़ी बात है बल्कि अपनी सोच को सामने रखने का बड़ा अवसर भी है.

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