मुंबई: अगर किसी को यह गलतफहमी है कि शरद पवार ने बीच में थथ्था-मम्मा करके राहुल गांधी को सावरकर मुद्दे पर बयानबाजी से बचने की सलाह दे दी है और इस तरह महाराष्ट्र में महाविकास आघाड़ी में बिगाड़ी रोक दी है, तो वे अपनी इस गलतफहमी को दिल से निकाल दें. राहुल गांधी ने सावरकर को छेड़ कर जो महाराष्ट्र में आग लगा दी है, अब उसकी आंच बढ़नी शुरू हो चुकी है. एकनाथ शिंदे की शिवसेना और देवेंद्र फडणवीस की बीजेपी ने ऐसी प्लानिंग सजाई है कि अब उद्धव ठाकरे के लिए आगे कुआं, पीछे खाई है. एकनाथ शिंदे यह घोषणा कर चुके हैं कि उनकी शिवसेना और बीजेपी मिलकर महाराष्ट्र में जिले-जिले में 'सावरकर गौरव यात्रा' निकालने जा रहे हैं. सावरकर के मुद्दे को लेकर विपक्ष को घेरने की इस आक्रामक मुहिम की शुरुआत सीएम शिंदे ने अपने प्रोफाइल पिक्चर को बदल कर की. उन्होंने अपने ट्विटर हैंडल से अपने प्रोफाइल पिक्चर में वीडी सावरकर का चित्र डाल कर लिखा- 'मी सावरकर' यानी 'मैं सावरकर' और ट्वीट किया.
'मी सावरकर', 'मी पण सावरकर' के साथ...विपक्ष को घेरने का प्रयास
इसके बाद मंगलवार को देवेंद्र फडणवीस ने भी अपना प्रोफाइल बदल कर लिखा 'मी सावरकर.' इसके बाद महाराष्ट्र भर में शिवसेना और बीजेपी के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने अपने नाम के साथ 'मी सावरकर'...'मी पण सावरकर'... और 'आम्ही पण सावरकर' (मैं सावरकर, मैं भी सावरकर और 'हम भी सावरकर' लिखने की शुरुआत कर दी. यानी शिंदे-फडणवीस इस मुद्दे को बहुत आगे तक ले जाने का मन बना चुके हैं. ठाकरे उनके ट्रैप में लगभग आ चुके हैं.
जब Sanjay Raut shouts, सावरकर के नाती ने उन पर ही किया doubt
ठाकरे की फील्डिंग सजाने उतरे संजय राउत ने मंगलवार को कहा कि बीजेपी को सावरकर से क्या लेना-देना? आरएसएस तो सावरकर को दुश्मन मानती थी. संघ ने सावरकर के साथ अच्छा नहीं किया था. सावरकर को आदर्श मानने वाले कोई और नहीं, बालासाहेब ठाकरे थे. बीजेपी का सावरकर प्रेम ढोंग है. गद्दारों (शिंदे गुट) के मुंह से सावरकर का नाम शोभा नहीं देता है. शिंदे गुट को सावरकर गौरव यात्रा निकालने का कोई हक नहीं है. वगैरह-वगैरह...
'अगर ठाकरे की सावरकर पर है इतनी भक्ति, तो वे राहुल से कहें कि मांगें माफी'
इस पर खुद वीडी सावरकर के नाती रणजीत सावरकर ने संजय राउत को यह समझा दिया कि वे कौन होते हैं शिंदे गुट या बीजेपी को सावरकर गौरव यात्रा से मना करने वाले? उन्होंने कहा कि जो सावरकर के लिए बात करेगा, वही सावरकर प्रेमियों के दिलों पे राज करेगा. अगर उद्धव ठाकरे को सावरकर से इतना ही प्रेम है तो वे राहुल गांधी पर दबाव बनाएं कि वे सावरकर पर दिए गए अपने बयान को लेकर माफी मांगें. इस पर संजय राउत भी चुप तो बैठने वाले नहीं थे. उन्होंने रणजीत सावरकर को यह जवाब दिया कि, 'भूलिए मत कि आज सावरकर स्मारक जहां है, और जहां आपका (रणजीत सावरकर) कार्यालय है, उसके निर्माण के लिए बालासाहेब ठाकरे ने कितना योगदान दिया है.' यानी सावरकर का मुद्दा फिलहाल ठंडा होता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है.
सावरकर का मुद्दा उद्धव को फंसा चुका- सत्ता या भगवा? तय करें वो वक्त आ चुका
जाहिर सी बात है जब शिंदे की शिवसेना और फडणवीस की बीजेपी के कार्यकर्ता और नेता 'सावरकर गौरव यात्रा' पर निकलेंगे तो जनता से यही कहेंगे कि देखो, सावरकर के खिलाफ बयान देकर राहुल गांधी ने माफी मांगनी तो दूर, अपने बयान पर अफसोस तक नहीं जताया, फिर भी ठाकरे गुट महाविकास आघाड़ी में कांग्रेस के साथ बैठ कर ताली बजा रहा है, सुर मिला रहा है. हम कहते थे ना, कि असली बालासाहेब के विचारों को लेकर आगे जाने वाले हम हैं, क्या अब भी बाकी रहा कोई प्रश्न है?
BJP के साथ आएं तो, कैसे अपनाएं शिंदे को, आघाड़ी में रहें तो कहें क्या सावरकर भक्तों को?
अब उद्धव सिर्फ रैली में यह बोल कर नहीं निकल सकते कि, 'सावरकर का अपमान बर्दाश्त नहीं करेंगे'. इस पर शिंदे सवाल करते हैं कि तो फिर करेंगे क्या? फडणवीस उद्धव पर दबाव और बढ़ाते हुए कहते हैं कि उद्धव में बस बोलने की हिम्मत है, कुछ करने की नहीं. यानी हिम्मत है तो उद्धव आगे आएं और आघाड़ी से बाहर होकर बीजेपी से हाथ मिलाएं. पर आज के हालात में उद्धव एक हद तक बीजेपी के साथ आ भी जाएं पर शिंदे को कैसे अपनाएं? बीजेपी और शिंदे का साथ अब एक हकीकत हैं. उद्धव ने तो शिंदे सेना जब गुवाहाटी में मौजूद थी तभी फडणवीस को कॉल लगा दिया था और ऑफर दे दिया था कि, 'आप सीएम बन जाएं और शिंदे को छोड़ कर फिर साथ आएं'. तब फडणवीस ने जवाब दिया था कि, 'अब बहुत देर हो चुकी है.'
विचारधारा के बिना पार्टी, जैसे माला बिना मोती...उद्धव के लिए है यह बड़ी चुनौती
अगर उद्धव महाविकास आघाड़ी में बने रहते हैं तो सवाल पार्टी के मूल विचारधारा के खोने का है. यानी सावरकर के विचार और बालासाहेब ठाकरे के विचार किसी माला में मोती की तरह गुंथे हुए रहे हैं. अगर माला से मोतियां निकल गईं तो रहा क्या? पार्टी से विचारधारा गई तो बचा क्या? उद्धव खुद ही कह चुके हैं कि उनका हिंदुत्व आरएसएस और बीजेपी से अलग है. यानी उनका हिंदुत्व सावरकर वाला हिंदुत्व है. अगर ऐसा है तो सावरकर के खिलाफ बोलने वाले के साथ रहने का क्या औचित्य है? फिर उद्धव के भगवा का क्या होगा? भगवा के बिना ठाकरे का नामलेवा भविष्य में कहां बचेगा? उद्धव के सामने आज सवाल ही सवाल है, जवाब नहीं है. इसीलिए आज उनके आगे कुआं है और पीछे खाई. भारी दुविधा है भाई.