Corona Virus: चुनावी राज्यों में आ रहा कोरोना के मामलों में बड़ा उतार चढ़ाव, जानिए क्या है वजह

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पंजाब में 20 जनवरी को वोटिंग होगी लेकिन यहां टेस्टिंग और पॉजिटिविटी रेशियो चिंता बढाने वाला है. 11 जनवरी को 24 हजार 636 टेस्ट किए गए. इनमें से 4552 लोग कोरोना संक्रमित थे. पॉजिटिविटी रेट 18.48% थी. 12 जनवरी को 34529 टेस्ट किए गए. इनमें से 6344 लोगों की रिपोर्ट कोरोना पॉजिटिव आई. पॉजिटिविटी रेट 18.37% थी.

13 जनवरी को 35720 सैंपल्स की जांच हुई. 5939 मरीज़ कोरोना पॉजिटिव निकले. संक्रमण दर 16.63% रिकॉर्ड की गई. 14 जनवरी को 38209 टेस्ट किए गए. 7554 मरीजों की रिपोर्ट पॉजिटिव आई. पॉजिटिविटी रेट 19.77% रिकॉर्ड हुई. 15 जनवरी को 35368 सैंपल्स की जांच की गई…6813 संक्रमित मरीजों की पुष्टि हुई. संक्रमण दर 19.26 % रही.

16 जनवरी को 35626 टेस्ट में से 7318 मरीजों की रिपोर्ट पॉजिटिव थी. संक्रमण दर 20 परसेंट को पार कर गई. 20.54% हो गई. 17 जनवरी को टेस्टिंग में कमी आई. 31 हजार 866 टेस्ट हुए. इनमें से भी 6593 लोग कोरोना पॉजिटिव निकले. संक्रमण दर 20.69% हो गई. इसका मतलब ये है कि पंजाब में औसतन रोजाना सिर्फ 30 – 32 हजार से ज्यादा टेस्ट हो रहे हैं और इसमें भी 20 परसेंट पॉजिटिविटी रेट चिंता की बात तो है.

उत्तर प्रदेश की स्थिति क्या है?

अब उत्तर प्रदेश की बात करते हैं. यूपी में 10 फरवरी से चुनाव हैं. सात चरणों में चुनाव होने हैं. एक्सपर्ट्स का दावा है कि यूपी में कोरोना का पीक आना बाकी है. वैसे पिछले सात दिन के आंकड़े देखे तो केस बढ़ने का एक पैटर्न दिखाई देता है.

12 जनवरी को यूपी में 2 लाख 39 हजार 771 टेस्ट हुए. इनमें से 13 हजार 681 लोग कोरोना संक्रमित निकले. 13 जनवरी को 2 लाख 55 हजार 391 टेस्ट किये गए. इनमें से 14 हजार 765 की रिपोर्ट कोरोना पॉजिटिव आई. 14 जनवरी को 2 लाख 54 हजार 44 टेस्ट किये गए . इनमें से 16 हजार 16 नए मामले सामने आये. 15 जनवरी को 2 लाख 58 हजार 904 टेस्ट किये गए. इनमें से 15 हजार 795 मरीज कोरोना संक्रमित थे. 16 जनवरी को 2 लाख 57 हजार 694 टेस्ट किये गए. पता चला कि 17 हजार 185 मरीज संक्रमित थे. 17 जनवरी को 2 लाख 16 हजार 152 टेस्ट किये गए. इनमें से 15 हजार 622 मरीज़ कोरोना संक्रमित निकले. 18 जनवरी को 2 लाख 8 हजार 308 सैंपल्स की जांच की गई , इनमें से 14 हजार 803 नए मामले सामने आए.

यानी उत्तर प्रदेश में रोज दो लाख टेस्ट किए जा रहे हैं. ये बड़ी संख्या है. इसीलिए मरीजों का पता भी चल पा रहा है. वैसे जहां तक एक और चुनावी राज्य उत्तराखंड की बात है तो यहां भी केस की संख्या में उतार चढ़ाव देखने को मिला है.

उत्तराखंड में भी केस की संख्या में उतार चढ़ाव

12 जनवरी को 25821 टेस्ट हुए. 2915 संक्रमित मिले. 11.29% पॉजिटिविटी रेट थी. 13 जनवरी को 27535 टेस्ट हुए. 3005 मरीज़ों की रिपोर्ट पॉजिटिव आई. संक्रमण दर 10.91% रही. 14 जनवरी को 27874 टेस्ट हुए. इनमें से 3200 मरीज कोरोना संक्रमित पाए गए. संक्रमण दर 11.48% रही. 15 जनवरी को 30983 टेस्ट हुए. इनमें से 3848 मरीजों की रिपोर्ट पॉजिटिव आई.पॉजिटिविटी रेट 12.42% हो गई.

16 जनवरी को टेस्ट में कमी आई. 19563 टेस्ट हुए. इनमें से 2682 मरीजों की रिपोर्ट पॉजिटिव आई. संक्रमण दर 13.71% रिकॉर्ड की गई. हालांकि 17 जनवरी को 39138 टेस्ट हुए. इनमें से 3295 मरीज कोरोना संक्रमित निकले. संक्रमण की रफ्तार 8.42% पर थी. यानी कमी देखी गई.

वैसे कुछ लोगों का मानना है कि जांच में कमी की वजह ICMR की नई गाइडलाइन भी है जिसमें कहा गया कि संक्रमित शख्स के संपर्क में आने के बाद भी टेस्ट कराने की जरूरत नहीं.हालांकि इस सबके बीच केंद्र सरकार ने कोरोना टेस्टिंग को लेकर राज्यों को चिट्ठी लिखी है. केंद्र सरकार की तरफ से कहा गया कि कोरोना टेस्टिंग कम करना ठीक नहीं. टेस्टिंग कोरोना रोकने के लिए हैं. इसलिए टेस्टिंग फुल स्केल पर होनी चाहिए.

कोरोना के इलाज की गाइडलाइंस में भी बदलाव

घटती टेस्टिंग पर राज्यों को फटकार के साथ ही केंद्र की ओर से कोरोना के इलाज की गाइडलाइंस में भी कुछ बदलाव किए हैं. नई गाइडलाइंस में डॉक्टर्स को सलाह दी गई है कि वे मरीज को स्टेरॉयड्स देने से बचें. क्योंकि इससे ब्लैक फंगस और दूसरे गंभीर इन्फेक्शन होने का खतरा बढ़ जाता है. जिसकी वजह से दूसरी लहर में बहुत लोगों की जान गई थी.

स्टेरॉयड्स बहुत जल्दी और ज्यादा मात्रा में या फिर लंबे समय तक दिए जाने से मरीजों को दूसरी गंभीर बीमारियां भी हो सकती हैं. इन सब चीजों को दूसरी लहर में संक्रमण का शिकार हुए लोग झेल चुके हैं.

स्टेरॉयड्स की जल्दी और ज्यादा डोज की वजह से सेकेंडरी इंफेक्शन बढ़ गया था. इलाज के दौरान और रिकवर होने के बाद भी लोगों में हार्ट, लिवर, किडनी से जुड़ी गंभीर दिक्कतें दिखी थीं.

पहली और दूसरी लहर के दौरान सिर्फ स्टेरॉयड्स का ही अंधाधुंध इस्तेमाल नहीं किया गया था. कई और दवाएं भी थीं, जिन्हें डॉक्टरों कोरोना मरीजों के इलाज के लिए अंधाधुंध तरीके से लिखा. तो लोगों ने भी उसी तरह बेहिसाब तरीके से वो दवाएं खाईं. लेकिन जिन दवाओं को कोरोना के इलाज में पहली और दूसरी लहर में कारगर माना जा रहा था. लेकिन उनमें से कोई कोरोना के खिलाफ असरदार नहीं और कोरोना पर बेअसर रहने वाली ऐसी ही 500 करोड़ रुपये की दवाएं लोग बीते दो साल में खा गए.

फिर चाहें एजिथ्रोमाइसिन हो. हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन या डॉक्सीसाइक्लिन हो. फेविपिराविर या आइवरमेक्टिन हो. ऐसी कई दवाओं को कोविड के इलाज के लिए प्रोटोकॉल में शामिल तक किया गया था. लेकिन कोई भी असरदार नहीं निकली. उल्टा इनके गंभीर साइड इफेक्ट्स देखने को मिले. कुछ दवाओं की वजह से दूसरी लहर में कोरोना के साथ ब्लैक फंगस ने भी कहर बरपाया. बहुत सारे लोगों को हार्ट, लीवर, किडनी और ब्रेन से जुड़ी दिक्कतें भी हुईं.

हालांकि ऐसा नहीं है कि इसके लिए सिर्फ दवाएं लिखने वाले डॉक्टर ही जिम्मेदार हैं. बल्कि वो लोग भी जिम्मेदार हैं, जो कोरोना के खौफ के चलते सोशल मीडिया पर सर्कुलेट होने वाले संक्रमण से बचाव और इलाज के पर्चे लेकर मेडिकल स्टोर्स पर टूट पड़े और बिना सोचे-समझे खुद ही डॉक्टर बन गए थे. हालांकि इस बार ऐसे हालात देखने को नहीं मिल रहे हैं क्योंकि ओमिक्रॉन का संक्रमण हल्का होने से ज्यादा दवाओं की जरूरत नहीं पड़ रही है. इसीलिए नई गाइडलाइंस में स्वास्थ्य मंत्रालय ने एंटीबायोटिक्स, ओरल एंटीवायरल्स, मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज और विटामिन्स को जगह नहीं दी है.

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