केंद्र ने पूर्वोत्तर के कई इलाकों से खत्म किया Afspa, विशेषज्ञ बोले- सेना को अब SOP बदलने की जरूरत

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पूर्वोत्तर भारत (north east) के अधिकांश हिस्सों में सुरक्षा स्थिति में काफी सुधार और चीन तथा म्यांमार के साथ लगे बॉर्डर्स पर अपना ध्यान केंद्रित करने की योजना के तहत कई इलाकों से विवादित अफस्पा कानून (Armed Forces Special Powers Act) को हटा दिया गया है. सेना (army) अब अपनी आतंकवाद विरोधी रणनीति को साकार कर रही है. इस मामले से परिचित अधिकारियों का कहना है कि पूर्वोत्तर में कानून के दायरे को सीमित करना सही दिशा में एक कदम है. सेना को उन जगहों पर ज्यादा फोकस करना चाहिए जहां स्थिति खराब है.

केंद्र सरकार ने दो दिन पहले गुरुवार को क्षेत्र के कई हिस्सों से सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (अफस्पा) को हटा दिया. यह विवादास्पद कानून सुरक्षा बलों को व्यापक अधिकार प्रदान करता है.

अंग्रेजी अखबार हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, पूर्वोत्तर के कई क्षेत्रों से अफस्पा हटाए जाने को लेकर शीर्ष विशेषज्ञों ने कहा कि सुरक्षा बलों को उन क्षेत्रों में संचालन के लिए अपनी मानक संचालन प्रक्रियाओं (एसओपी) को संशोधित करना होगा जो अब अफस्पा के दायरे में नहीं हैं. सरकार ने सुरक्षा स्थिति में महत्वपूर्ण सुधार, हिंसा को समाप्त करने के लिए कई समझौते और नागालैंड में एक असफल ऑपरेशन जो दिसंबर 2021 में हुआ था जिसमें 14 लोगों की मौत हो गई थी, की घटना के बाद अफस्पा के खिलाफ महीनों तक चले विरोध प्रदर्शन को देखते हुए पूर्वोत्तर में विवादास्पद कानून के फुटप्रिंट को कम कर दिया है.

मानवीय चेहरे के साथ काम शुरू करे सेनाः LG शौकिन चौहान

2017-18 में असम राइफल्स का नेतृत्व करने वाले लेफ्टिनेंट जनरल शौकिन चौहान (रिटायर) ने कहा कि नागालैंड की घटना के बाद, यह केवल समय की बात है कि AFSPA को उन क्षेत्रों से हटा दिया गया जहां पिछले कुछ सालों में कोई घटना नहीं हुई थी. इसके लिए सुरक्षा बलों को अपने एसओपी बदलने और मानवीय चेहरे के साथ अभियान शुरू करने की आवश्यकता होगी ताकि वे विद्रोहियों से निपट सकें और साथ ही पूर्वोत्तर के लोगों की चिंताओं को दूर कर सकें.

शौकिन चौहान, जिन्हें उग्रवाद के खिलाफ जोरदार काम के लिए जाना जाता है, और वे क्षेत्र की सुरक्षा गतिशीलता को भी अच्छे से समझते हैं. वह 2020 में केंद्र और नागा विद्रोही समूहों के बीच संघर्ष विराम जमीनी नियमों को लागू करने के लिए जिम्मेदार ग्रुप संघर्ष विराम निगरानी समूह (Ceasefire Monitoring Group) के अध्यक्ष के रूप में रिटायर हुए थे.

खुफिया एजेंसियों के आकलन पर लिया गया फैसला

अगर आरोपी के ड्यूटी के दौरान किसी तरह के आरोप लगते हैं, तो अफस्पा केंद्र की अनुमति के बिना अभियोजन शुरू करने से रोकता है. इसे अक्सर कानून को अशांत क्षेत्रों में अभियान चलाने के लिए सेना का एक सक्षम साधन माना जाता रहा है. जिन जिलों से अफस्पा को हटाया गया है, वे कई सालों से शांतिपूर्ण हैं और इसे हटाने का निर्णय हितधारकों के बीच व्यापक विचार-विमर्श के बाद ही लिया गया है.

उपरोक्त अधिकारियों में से एक ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “नगालैंड, असम और मणिपुर में ‘अशांत’ के रूप में अधिसूचित क्षेत्रों को कम करने का सरकार का निर्णय विभिन्न सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों के आकलन पर आधारित है, सुरक्षा स्थिति का आकलन मौजूदा कानून और व्यवस्था तंत्र की क्षमताओं के भीतर किया जा रहा है.” चौहान ने कहा कि तीनों राज्यों के कई हिस्सों से अफस्पा हटाना समय की मांग थी. आप अधिक खुलेपन और पारदर्शिता की जरुरत से नहीं लड़ सकते, और अधिक मानवीय कार्यों की ओर बढ़ना होगा. हमें अनुकूलन करना होगा क्योंकि सुरक्षा बल इन क्षेत्रों में काम करना जारी रखेंगे. अंतत: पूरे क्षेत्र से अफस्पा को हटाना ही होगा.

एक दूसरे अधिकारी ने कहा, एक बार जब किसी क्षेत्र को “अशांत” नहीं माना जाता है और कानून-व्यवस्था की स्थिति “खतरनाक स्थिति” में नजर नहीं आती है, तो अफस्पा की प्रयोज्यता को बढ़ाया नहीं जाता है, जिसके बाद सेना इसे वापस ले सकती है. चौहान ने कहा कि अब यह सुनिश्चित करने के लिए विद्रोही समूहों पर दबाव होगा कि जिन क्षेत्रों से कानून हटाया गया है, वे शांतिपूर्ण रहें क्योंकि स्थिति बिगड़ने पर अफस्पा को फिर से बहाल किया जा सकता है.

खतरे वाले क्षेत्रों पर ध्यान दे सेनाः LG हिमालय सिंह

लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर) कोन्सम हिमालय सिंह ने कहा, “पूर्वोत्तर में कानून के दायरे को सीमित करना सही दिशा में एक कदम है.” हिमालय सिंह 2017 में रिटायर हुए थे और तब थ्री-स्टार रैंक तक पहुंचने वाले पूर्वोत्तर से पहले सेना अधिकारी थे.

उन्होंने कहा, “यह अच्छा है कि अफस्पा को कई जिलों से हटा दिया गया है. सुरक्षा बलों को अपनी संचालन प्रक्रियाओं में फिर से काम करना होगा. इसके अलावा, सेना उन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए बलों के पुनर्समायोजन के लिए जा सकती है जहां खतरे बने हुए हैं, खासकर भारत-म्यांमार सीमा.” सेना के आकलन में, पूर्वोत्तर की स्थिति में पिछले कुछ सालों में काफी सुधार हुआ है, और वहां सैनिकों की एक योजनाबद्ध तथा क्रमिक वापसी की प्रक्रिया चल रही है.

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