पिछले कुछ दिनों से श्रीलंका (Sri Lanka) का संकट वर्ल्ड मीडिया की सुर्खियों में है. हर कोई जान चुका है कि श्रीलंका की इकोनॉमी (Economy) फेल हो चुकी है. देश का खजाना खाली हो चुका है. इस बीच फिक्र की बात ये भी है कि भारत (India) भी अगर गणराज्य नहीं होता तो यहां के भी कई राज्यों की हालत श्रीलंका जैसी होती. ये राज्य कौन-कौन हैं और उनका खजाना खाली क्यों है. इसका विश्लेषण हम आगे करेंगे. पहले जान लीजिए कि श्रीलंका में ऐसे हालात क्यों बने? पेट्रोल पंप (Petrol Pump) पर लंबी कतार, बिजली-पानी के लिए हाहाकार. ये है श्रीलंका का आर्थिक आपातकाल.
महंगाई का आलम ये है कि एक कप चाय की कीमत 100 रुपए, ब्रेड 1400 रुपए प्रति पैकेट, चावल 500 रुपए किलो और LPG सिलेंडर 6500 रुपए में मिल रहा है. इतनी महंगाई के बावजूद श्रीलंका में दिहाड़ी मजदूरों को 500 रुपए रोजाना नहीं मिल पा रहा है. पैसा नहीं होने की वजह से सरकार ने कई देशों में अपने दूतावास तक बंद कर दिए हैं और विदेशी मुद्रा भंडार भी खाली हो चुका है. श्रीलंका के पास सिर्फ 2 बिलियन डॉलर का विदेशी भंडार बचा है, जिससे मुश्किल से एक महीने का आयात हो सकता है.
श्रीलंका के दिवालिया होने के कई कारण
दरअसल श्रीलंका के दिवालिया होने के कई कारण हैं. मसलन कोरोना के कारण इनकम का मेन सोर्स टूरिज्म चरमरा गया तो फर्टिलाइजर पर रोक के कारण एग्रीकल्चर का प्रोडक्शन बेतहाशा गिर गया. चीन से महंगे और कड़े शर्त पर कर्ज ले लिया. सरकार में भाई-भतीजावाद को बढ़ावा दिया. राजपक्षे परिवार के ही हाथ में कैबिनेट का दो तिहाई बजट रखा. लेकिन श्रीलंका के दिवालिया होने के पीछे सबसे बड़ा कारण है सरकार की लोक लुभावन नीतियां यानी फ्री स्कीम्स.
करीब 10 लोकलुभावन वादों की सवारी करते हुए 2020 में दो तिहाई बहुमत के साथ राजपक्षे की सरकार बनी, जिसके बाद इकोनमिक एक्सपर्ट्स ने सरकार को संरचनात्मक सुधारों पर फोकस करने को कहा, लेकिन राजपक्षे सरकार ने अपने पार्टी घोषणापत्र को वादों के साथ लागू करना शुरू कर दिया. इसके तहत टैक्स के दरों में कटौती की. राज्य सरकारों के अधीन कंपनियों का खर्च बढ़ाया, निजीकरण का विरोध किया, कल्याणकारी योजनाओं को लागू करने पर जोर दिया, छात्रों के लिए ब्याज मुक्त ऋण के आदेश दिए, 50 हजार शिक्षकों की भर्ती, सुरक्षाकर्मियों की भर्ती और पेंशन की खामियों को दूर करने को कहा.
भारत के कई राज्यों पर कर्ज का बोझ कई गुना बढ़ा
इसका नतीजा ये हुआ कि वैट यानी वैल्यू एडेड टैक्स प्रभावित हुआ. 2019 की ऋण प्रबंधन योजना कमजोर हुई. IMF के अनुसार 2020-21 में श्रीलंका में वार्षिक राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद यानी GDP के 10 प्रतिशत से अधिक हो गया और सरकारी खजाना खाली होता चला गया. मतलब सरकार की गलत नीतियों के कारण श्रीलंका में महंगाई चरम पर पहुंची. लोगों के सामने खाने-पीने और जीने-मरने का संकट खड़ा हो गया, लेकिन हम अब जो बताने जा रहे हैं उसे सुनकर आपको हैरानी होगी. एक रिपोर्ट कहती है कि श्रीलंका की ही राह पर भारत के कई राज्य चल रहे है. पंजाब, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, दिल्ली, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और छत्तीसगढ़ समेत कई राज्यों की स्थिति वैसी ही, क्योंकि वोट के लिए मुफ्त बांटना सत्ता हथियाने का शॉर्टकट बन चुका है. Freebies का नतीजा ये हुआ है कि देश के कई राज्यों पर कर्ज का बोझ कई गुना बढ़ चुका है.
इसको लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी चिंता जता चुके हैं. दरअसल पीएम मोदी के साथ 2 अप्रैल को सचिवों की लंबी बैठक हुईस जिसमें सेक्रेटरीज ने कहा कि कुछ राज्य सरकारों की लोकलुभावन घोषणाओं और योजनाओं को लंबे समय तक नहीं चलाया जा सकता है. अगर इन पर रोक नहीं लगी तो ये आर्थिक रूप से श्रीलंका की तरह बदहाल हो जाएंगे. पीएम और सेक्रेटरीज ने ऐसा क्यों कहा? हमने रिसर्च करके इसका crux निकाला है. हमने फ्री बांटकर कर्ज में डूबते देश या राज्यों को लेकर एक इकोनॉमिक की-वर्ड ढूंढ़ा है. वो है GDP to debt ratio यानी कर्ज-जीडीपी अनुपात.
कर्ज-GDP अनुपात किसी भी देश के प्रोडक्शन यानी कमाई और कर्ज का ratio होता है. इससे किसी देश के कर्ज चुकाने की क्षमता का आकलन किया जाता है यानी जिस देश का कर्ज-GDP अनुपात जितना अधिक होगा, उसे लोन चुकाने में उतनी ज्यादा परेशानी होगी. इस वक्त श्रीलंका का कर्ज-GDP अनुपात 119 है जबकि श्रीलंका की जीडीपी करीब 8000 करोड़ रुपए है यानी श्रीलंका के ऊपर करीब 9600 करोड़ रुपए का कर्ज है. इसका मतलब ये हुआ कि अब इतना ज्यादा कर्ज चुकाना श्रीलंका के वश का नहीं है. श्रीलंका की ही तरह भारत में भी कई राज्य हैं, जो कर्ज लेकर फ्री की स्कीम्स लागू कर रहे हैं.
8000 करोड़ है श्रीलंका की GDP
अब चूंकि श्रीलंका की GDP 8000 करोड़ है, लिहाजा हमने देश के उन राज्यों का सैंपल लिया है जिनकी जीडीपी श्रीलंका से थोड़ा कम या ज्यादा है. आंध्र प्रदेश, केरल, मध्य प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, बिहार, ओडिशा और असम वो राज्य हैं, जिनकी GDP 5 हजार करोड़ से 13 हजार करोड़ के बीच है और इनके कर्ज-GDP अनुपात को देखें तो सबसे खस्ता हालत पंजाब का है. इसके बाद केरल और आंध्र प्रदेश का नंबर आता है. पंजाब में तो अभी अभी आम आदमी पार्टी की सरकार बनी है, जिसके मैनिफेस्टो में भी कई लोकलुभावन वादे हैं.
सिर्फ महिलाओं को प्रति महीने हजार रुपए देने के वादे को भी सरकार लागू करेगी तो स्टेट के खजाने पर सालाना 12 हजार करोड़ रुपए का बोझ पड़ेगा. इसके अलावा बिजली सब्सिडी और कई फ्री स्कीम्स भी हैं. अभी पंजाब की जीडीपी 54000 करोड़ है और कर्ज-जीडीपी रेशियो 53.3 है. पंजाब के ऊपर इस वक्त करीब 3 लाख करोड़ का कर्ज है इसलिए चीफ मिनिस्टर भगवंत मान जब पहली ही बार पीएम मोदी से मिले तो केंद्र सरकार से एक लाख करोड़ सरकारी मदद मांगी. दो साल के लिए 50,000 करोड़ रुपए प्रति वर्ष की मांग की ताकि कर्ज में डूबे राज्य को थोड़ा सपोर्ट दिया जा सके.
अब इस फ्री के उपहार से सरकारी खजानों के हो रहे बंटाधार को ऐसे भी समझिए कि अगर भारत की जीडीपी 100 बिलियन है तो भारत का कर्ज 60 बिलियन से ज्यादा नहीं होना चाहिए. 60 बिलियन कर्ज में 40 फीसदी का केंद्र सरकार का हो यानी सेंटर का कर्ज-जीडीपी अनुपात 40 बिलियन से ज्यादा नहीं होना चाहिए और सभी राज्यों को मिलाकर कर्ज-जीडीपी अनुपात 20 फीसदी से ज्यादा नहीं होना चाहिए. लेकिन इस वक्त कोरोना महामारी के कारण भारत का कर्ज-जीडीपी अनुपात 90 फीसदी हो गया है, जो 2020 में 74 फीसदी था और इस वक्त देश में महज तीन ही राज्य हैं जिनका कर्ज-जीडीपी अनुपात 20 फीसदी के करीब या उससे नीचे है.
पंजाब का सबसे बुरा हाल
सबसे बुरा हाल पंजाब का है. इस हाल में भारत को और तमाम राज्यों को ये सोचना होगा कि फ्री बिजली-पानी, लैपटॉप, बस टिकट ये सब कब तक बांटते रहेंगे. यहां ये भी सोचने की जरूरत है कि लोक कल्याणकारी योजनाएं वैसी ही लागू की जानी चाहिए जिससे जीडीपी में बढ़ोतरी हो. जैसे हाउसिंग, टॉयलेट, गैस, विद्युतीकरण वगैरह, ना कि फ्री में पैसे, लैपटॉप और बस टिकट बांटे जाएं. इस वक्त श्रीलंका का उदाहरण हमारे सामने है. श्रीलंका की हालत ये है कि जो एक रुपए की कमाई होती है, उस पर कर्ज 1 रुपए 20 पैसे है.
वहीं पंजाब की 1 रुपए कमाई में 53 पैसे कर्ज है और सरकार के पास विकास के लिए सिर्फ 43 पैसे हैं और जो कर्ज हैं उनका समय के साथ ब्याज बढ़ता ही जाएगा तो गौर करने वाली बात ये है कि पंजाब और श्रीलंका में फर्क ये है कि पंजाब भारत सरकार से मदद मांग सकता है और भारत सरकार इनके लिए सुरक्षा कवच है, लेकिन अब कोरोना की वजह से और स्टेट के कर्ज से सुरक्षा कवच भी कमजोर होने लगा है इसलिए Freebie इकोनॉमी पर अब सख्ती से सोचने की जरूरत है, उसे रोकने की जरूरत है.
ये भी पढ़ें- Srilanka Crisis: श्रीलंका में क्यों बिगड़े हालात, इमरजेंसी के बाद सभी मंत्रियों ने दिया इस्तीफा
ये भी पढ़ें- Sri Lanka Crisis: श्रीलंका में अप्रैल के आखिर तक खत्म हो सकता है पेट्रोल पंपों पर तेल, जानिए क्या भारत कर पाएगा मदद?