थलसेना ने प्रोजेक्ट जोरावर के तहत पूर्वी लद्दाख में ऊंचाई वाले स्थानों पर हल्के टैंक की तैनाती की योजना बनाई है. इस कदम का उद्देश्य किसी भी इमरजेंसी स्थिति से निपटने के लिए गोलाबारी करने की सेना की संपूर्ण क्षमता को बढ़ाना है. सूत्रों ने बताया कि इसके लिए शुरूआती मंजूरी रक्षा मंत्रालय द्वारा अगले महीने तक मिलने की संभावना है.
हल्के टैंक तैनात करने की योजना भारत और चीन के बीच संबंधों में तनाव लाने वाले पूर्वी लद्दाख में जारी सीमा विवाद के बीच आई है. सूत्रों ने बताया कि हल्के टैंक की गोला दागने की क्षमता मौजूदा टैंक के अनुरूप होगी. उन्होंने कहा कि उत्तरी सीमाओं पर भविष्य में खतरा बने रहने की संभावना है.
दुश्मन ने भी की हल्के टैंक की तैनाती!
सूत्रों ने बताया कि यह महसूस किया गया कि जब मौजूदा टैंक को इस तरह के भू-भाग में इस्तेमाल करने की बारी आई तब एक जरूरत महसूस की गई और इसलिए हल्के टैंक तैनात करने का फैसला किया गया. सूत्रों ने बताया कि दुश्मन ने बड़ी संख्या में टेक्नोलॉजी रूप से आधुनिक, अत्याधुनिक टैंक शामिल किए हैं और मध्यम से लेकर हल्के टैंक तक को सीमा पर तैनात किया है.
सूत्रों ने कहा कि उत्तरी सीमाओं पर बढ़ा हुआ खतरा भविष्य में बने रहने की संभावना है और सेना की क्षमता बढ़ाने में वक्त लगता है. मामले से संबंधित एक सूत्र ने कहा, हमारे मौजूदा टैंक अच्छा काम कर रहे हैं और पिछली बार हमने विभिन्न माध्यमों के जरिये उनकी क्षमता को बढ़ाने के लिए कई कदम उठाये थे. सूत्र ने कहा, हालांकि, ऊंचाई वाले स्थानों पर एक अंतराल पाया गया और इसलिए हमें हल्के टैंक की जरूरत है, जो मौजूदा टैंक के समान ही सक्षम हों.
जोरावर सिंह के नाम पर होगा ये प्रोजेक्ट!
ये टैंक प्रोजेक्ट जोरावर के तहत हासिल किये जाएंगे. इसका नामकरण जोरावर सिंह के नाम पर किया गया है जिन्होंने जम्मू के राजा गुलाब सिंह के तहत एक सैन्य जनरल के रूप में सेवा दी थी. उन्होंने कहा कि मिसाइल दागने की क्षमता, ड्रोन रोधी उपकरण, चेतावनी प्रणाली और शक्ति और वजन का अनुपात इस टैंक को बहुत फुर्तीला बनाएगा. उन्होंने कहा कि हल्के टैंक सेना को मध्यम लड़ाकू टैंक की सीमाओं से बाहर आने में मदद करेगा.
उन्होंने कहा कि भारतीय थलसेना के लिए स्वदेश में हल्के टैंक को डिजाइन और विकसित करना भी जरूरी है. सूत्र ने कहा कि यह भी ध्यान में रखना होगा कि क्या इन्हें स्थल और जल, दोनों के लिए अनुकूल बनाया जा सकता है ताकि इन्हें पूर्वी लद्दाख के पैंगोंग त्सो इलाके में तैनात किया जा सके.
(भाषा इनपुट)
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