12 साल पहले PFI मेंबर्स ने काट दिया था प्रोफेसर का हाथ, बोले- अभी चुप रहना बेहतर

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Professor Tj Joseph

पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के सदस्यों का जब काला चिट्ठा खुला तो पता चला कि केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक में इस संगठन से जुड़े लोगों ने बर्बर हत्याएं की. इसके अलावा एक धर्म विशेष के लोगों टारगेट किया गया. करीब 12 साल पहले पीएफआई कार्यकर्ताओं की बर्बरता का शिकार हुए प्रोफेसर टी.जे. जोसेफ ने कट्टरपंथी इस्लामी संगठन पर प्रतिबंध पर प्रतिक्रिया देने से इंकार कर दिया. जोसेफ ने कहा कि हमेशा बोलने के बजाय कभी-कभी मौन रहना बेहतर होता है.

कथित ईशनिंदा के लिए करीब 12 साल पहले पीएफआई कार्यकर्ताओं ने जोसेफ का हाथ काट डाला था. पीएफआई पर प्रतिबंध लगाए जाने से जुड़े संवाददाताओं के सवालों पर प्रोफेसर ने कहा कि वह देश के एक नागरिक के रूप में केंद्र सरकार के कदम के बारे में स्पष्ट राय रखते हैं. हालांकि, उन्होंने कहा कि वह अभी कोई प्रतिक्रिया नहीं देना चाहता क्योंकि वह इस मामले में पीड़ित हैं.

कई बार चुप रहना बेहतर- प्रोफेसर

जोसेफ ने कहा कि पीएफआई पर प्रतिबंध एक राजनीतिक निर्णय और राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित है और इस घटनाक्रम पर राजनेताओं, संगठनात्मक प्रतिनिधियों और ऐसे अन्य तटस्थ लोगों को प्रतिक्रिया देनी चाहिए. उन्होंने कहा कि पीएफआई हमलों के शिकार कई लोग अब जीवित नहीं हैं. मैं उन पीड़ितों के साथ एकजुटता में मौन रहना चाहता हूं. केंद्र सरकार ने बुधवार को इस्लामी संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) पर आईएसआईएस जैसे वैश्विक आतंकवादी समूहों से संबंध रखने और देश में सांप्रदायिक नफरत फैलाने की कोशिश का आरोप लगाते हुए आतंकवाद रोधी कानून यूएपीए के तहत पांच साल के लिए प्रतिबंध लगा दिया.

2010 में पीएफआई कार्यकर्ताओं ने की बर्बरता

थोडुपुझा के न्यूमैन कॉलेज में मलयालम साहित्य के प्रोफेसर जोसेफ पर जुलाई 2010 में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के कार्यकर्ताओं ने हमला किया गया था. संगठन के गुंडों ने उनका दाहिना हाथ काट दिया गया था. उस वक्त प्रोफेसर जोसेफ अपनी मां और बहन के साथ चर्च से घर लौट रहे थे. हमलावरों ने उसे कहा कि परीक्षा में एक प्रश्न का लहजा ठीक नहीं है इसलिए उसे ये दंड दिया जा रहा है. इस केस की जांच NIA ने की है और इसमें पीएफआई के 15 मेंबर आरोपी हैं.

इन संगठनों पर बैन

गृह मंत्रालय की अधिसूचना के अनुसार पीएफआई के आठ सहयोगी संगठनों- रिहैब इंडिया फाउंडेशन, कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया, ऑल इंडिया इमाम काउंसिल, नेशनल कॉन्फेडरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स ऑर्गनाइजेशन, नेशनल विमेन फ्रंट, जूनियर फ्रंट, एम्पावर इंडिया फाउंडेशन और रिहैब फाउंडेशन, केरल के नाम भी यूएपीए यानी गैरकानूनी गतिविधियां (निवारण) अधिनियम के तहत प्रतिबंधित किए गए संगठनों की सूची में शामिल हैं.

सभी जांच एजेंसियों की संयुक्त कार्रवाई

एनआईए, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और विभिन्न राज्य पुलिस बलों ने हाल के दिनों में देशभर में दो बार पीएफआई के खिलाफ बड़े पैमाने पर छापेमारी की थी. देश में आतंकी गतिविधियों को कथित रूप से समर्थन देने के आरोप में 22 सितंबर को 15 राज्यों में पीएफआई के कुल 106 नेताओं और कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया था. 27 सितंबर को नौ राज्यों में छापेमारी करके पीएफआई से जुड़े 170 से अधिक लोगों गिरफ्तार किया गया था. हालांकि गिरफ्तारी की संख्या के बारे में अभी तक कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है.

सभी ऑफिस और बैंक अकाउंट फ्रीज

प्रतिबंध के बाद, अधिकारियों ने उन 17 राज्यों में पीएफआई के कार्यालयों को सील करने और उनके बैंक खातों को फ्रीज करने की प्रक्रिया शुरू कर दी, जहां संगठन काम कर रहा था. केंद्र 30 दिनों के भीतर एक न्यायाधिकरण भी स्थापित करेगा जो यह तय करेगा कि पीएफआई को गैरकानूनी संगठन घोषित करने के लिए पर्याप्त कारण हैं या नहीं. पीएफआई प्रतिबंध के खिलाफ अपना बचाव भी कर सकता है.

देश में फैला रहा था कट्टरता का माहौल

घटनाक्रम की जानकारी रखने वाले अधिकारियों के अनुसार यह संगठन देश के सांप्रदायिक और धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को ‘नुकसान पहुंचाने’ में संलिप्त था. साथ ही अपनी कट्टरपंथी विचारधारा को आगे बढ़ाकर व भारत में इस्लामी प्रभुत्व कायम करने के गुप्त एजेंडे के तहत राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ‘गंभीर खतरा’ पैदा कर रहा था. साल 2006 में गठित यह संगठन 2010 से सुरक्षा एजेंसियों के रडार पर था, जब केरल में एक प्रोफेसर के हाथ काटने की घटना हुई थी. इस मामले में दोषी ठहराए गए कई आरोपी संगठन के सदस्य थे.

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