CBI के रडार पर सिर्फ विपक्ष, UPA की तुलना में NDA में निशाने पर 95% नेता

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कभी कांग्रेस ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन और ‘पिंजरे में बंद तोता’ से लेकर भारतीय जनता पार्टी की ओर से ‘जमाई’ (दामाद) की संज्ञा पाने वाली जांच एजेंसी केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो(CBI) आयकर विभाग और प्रवर्तन निदेशालय की तरह हमेशा विपक्ष के निशाने पर रही है. विपक्ष की ओर से हमेशा यह आरोप लगाए जाते रहे हैं कि राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता की वजह से उनके नेताओं पर छापे मारे जा रहे हैं. एनडीए के दूसरे कार्यकाल में 1 मुख्यमंत्री और 12 पूर्व मुख्यमंत्री समेत 100 से ज्यादा नेता सीबीआई की रडार में हैं.

हालांकि इस मामले में किसी को कोई आश्चर्य नहीं कि पिछले 18 सालों में, कांग्रेस और बीजेपी की सरकार के दौर में, करीब 200 प्रमुख राजनेताओं पर सीबीआई ने मामला दर्ज किया, गिरफ्तार किया या फिर छापे मारे हैं या उनसे पूछताछ की है इनमें से 80 प्रतिशत से अधिक मामले विपक्ष के नेताओं से ही जुड़े हुए हैं. वेबसाइट द इंडियन एक्सप्रेस ने बताया कि ऑफ कोर्ट रिकॉर्ड्स, आधिकारिक दस्तावेजों, एजेंसी के बयानों और रिपोर्टों की एक जांच से पता चलता है कि साल 2014 में एनडीए के सत्ता में आने के बाद से यह प्रवृत्ति काफी तेज हो गई है.

छापों में 95 फीसदी विपक्षी नेताओं के यहां

कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए के 10 सालों (2004-2014) के दौरान, कम से कम 72 राजनीतिक नेता सीबीआई जांच के दायरे में आए और उनमें से 43 (60 प्रतिशत) विपक्ष से जुड़े हुए थे. जबकि बीजेपी की अगुवाई वाली एनडीए के दूसरे कार्यकाल में अब तक के आठ सालों के शासनकाल में, कम से कम 124 प्रमुख नेताओं को सीबीआई जांच का सामना करना पड़ा है और उनमें से विपक्ष से 118 नेता शामिल हैं यानी 95 प्रतिशत.

सीबीआई की जाल में एनडीए के दूसरे कार्यकाल में एक मुख्यमंत्री समेत 12 पूर्व मुख्यमंत्री, 10 मंत्री, 34 सांसद, 27 विधायकों के अलावा 10 पूर्व विधायक और 6 पूर्व सांसद फंसे. जबकि यूपीए के दौर में 4 पूर्व मुख्यमंत्रियों के अलावा 2 मंत्री, 13 सांसद, 15 विधायक, एक पूर्व विधायक और 3 पूर्व सांसद शामिल हैं.

पाला बदलते ही केस भी बंद!

इस दौरान जब कोई नेता पक्ष बदल लेता है, तो उसके खिलाफ सीबीआई का मामला ठंडे बस्ते में चला जाता है. सीबीआई के जाल में यूपीए दौर के 72 और एनडीए के 124 नेताओं की पूरी सूची संकलित और indianexpress.com पर प्रकाशित की गई है. जब सीबीआई ने उनके खिलाफ कार्रवाई शुरू की थी, तब नेताओं को उन राजनीतिक दलों के तहत सूचीबद्ध किया गया था, जिनसे वे संबंधित थे.

हालांकि सीबीआई ने इस प्रवृत्ति पर द इंडियन एक्सप्रेस के एक सवाल का जवाब नहीं दिया, लेकिन एजेंसी के एक अधिकारी ने इसे “महज एक संयोग” करार दिया और इस बात से इनकार किया कि छापेमारी के जरिए विपक्षी नेताओं को निशाना बनाया गया था.

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