74 दिनों में 10 हजार केसों का निपटारा, पूर्व CJI यूयू ललित ने खेली T-20 अंदाज में पारी

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Justice UU Lalit

जस्टिस यूयू ललित के उत्तराधिकारी के रूप में मेरे कंधों पर बहुत बड़ी जिम्मेदारियां हैं. मुझे उम्मीद है कि उन्होंने जो अच्छे काम शुरू किए वो हम जारी रखेंगे… ये शब्द हैं जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के. वो आज भारत के 50वें सीजेआई के रूप में शपथ लेंगे. उनका ये बयान बताता है कि महज 74 दिनों में यूयू ललित ने सुप्रीम कोर्ट कार्यप्रणाली में कई महत्वपूर्ण बदलाव किए. भारत का लोकतंत्र चार स्तंभों पर टिका हुआ है. उसमें से सबसे अहम है न्यायपालिका. 130 करोड़ भारतीयों को इसमें अटूट विश्वास है. और इसकी विश्वसनीयता इसी तरह बरकरार रहना भी चाहिए.

भारत के मौजूदा प्रधान न्यायाधीश यूयू ललित आठ नवंबर को अदालती अवकाश के दिन 65 वर्ष की आयु में रिटायर हो गए. वह केवल 74 दिन के छोटे समय के लिए ही चीफ जस्टिस के पद पर रहे. मगर इस दौरान उन्होंने ऐतिहासिक फैसले भी पढ़े और सुप्रीम कोर्ट में कई बदलाव भी किए. सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन द्वारा आयोजित विदाई समारोह में न्यायमूर्ति ललित ने इस तथ्य पर गर्व किया कि उनके कार्यकाल के दौरान 10,000 मामलों का निपटारा किया जा सकता था.

पहले दिन रिकॉर्ड 592 नए मामलों की सुनवाई

29 अगस्त को सीजेआई के रूप में जस्टिस ललित के पहले दिन रिकॉर्ड 592 नए मामलों की सुनवाई हुई. इसमें सुप्रीम कोर्ट में दो-दो जज की 15 बेंच ने कम से कम 60 मामलों की सुनवाई की. ये पहले के औसत से लगभग दोगुना था. एक दिन में जब इतने मामलों की सुनवाई हुई तो समय की पर्याप्तता के बारे में चिंता जताई गई. तब सीजेआई ललित अन्य जजेस के सामने उदाहरण सेट करने के लिए अतिरिक्त घंटों तक कोर्ट रूम पर बैठे और ज्यादा से ज्यादा मामले क्लोज करना तय किया.

संविधान पीठ की स्थापना

जस्टिस ललित ने अपने कार्यकाल की शुरुआत हाई नोट पर की थी. उनके पहले सीजेआई रहे एनवी रमन्ना के पूरे 16 महीने के कार्यकाल के दौरान कोई संविधान पीठ सुनवाई नहीं हुई थी. तब उन्होंने तय किया कि संविधान पीठ का ज्यादा से ज्यादा गठन किया जाए और पेंडिंग मामलों का निपटारा हो. सुप्रीम कोर्ट ने कानूनों के जटिल प्रश्नों को सुलझाने के लिए संविधान पीठ के मामलों को प्राथमिकता दी. CJI ने सुव्यवस्थित करने के लिए संविधान पीठों की स्थापना की और ठंडे बस्ते में मुकदमों को बाहर निकाला. इसके बाद लाइव-स्ट्रीमिंग के माध्यम से कार्यवाही में पारदर्शिता लाने का फैसला किया गया. इसके बाद सवाल उठा कि क्या यूयू ललित ने कुछ ज्यादा ही वादा कर दिया?

पूर्व अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने की तारीफ

उनके कार्यकाल के दौरान रिकॉर्ड छह संविधान पीठें स्थापित की गईं. इनमें राजनीतिक रूप से संवेदनशील मामले जैसे आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए आरक्षण (EWS), विमुद्रीकरण, नागरिकता अधिनियम में संशोधन (CAA), दलबदल विरोधी कानून जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर सुनवाई हुई. महाराष्ट्र के राजनीतिक संकट, केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच सत्ता संघर्ष के देखते हुए दलबदल कानून काफी महत्वपूर्ण था. पूर्व अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कम से कम 24 संविधान पीठ के मामलों की सुनवाई करने के लिए सोमवार को एक विदाई समारोह में न्यायमूर्ति ललित की प्रशंसा की. साथ ही उन्होंने लंबे समय तक इन मामलों पर सुनवाई ने होने पर अफसोस जताया. इन 24 मामलों में से संविधान पीठ आखिरकार चार पर फैसला सुनाया जिसमें सोमवार को ईडब्ल्यूएस कोटा का ऐतिहासिक फैसला भी शामिल है.

मुकदमों की लिस्टिंग पर बदलाव

न्यायमूर्ति ललित ने मामलों की लिस्टिंग करने की पुरानी प्रणाली को बदला और कहा कि सभी नए मामलों को दो सप्ताह के भीतर न्यायाधीशों के समक्ष रखा जाए. मामलों का उल्लेख करने और जल्द सुनवाई की मांग करने के लिए वकीलों की एक लंबी कतार सुबह 10.30 बजे उनके सामने खड़ी होने लगी. अगर मामले तैयार होते तो सीजेआई उन्हें लिस्टिंग का आश्वासन देते. लेकिन जस्टिस ललित की वकीलों के लिए एक शर्त थी केस लड़ने के लिए तैयार रहो. कई बहसों को को पूर्ण सुनवाई में बदल दिया गया और मामलों का निपटारा किया गया.

2 साल का होगा चंद्रचूड़ का कार्यकाल

सुप्रीम कोर्ट जस्टिस के रूप में 13 मई, 2016 को पदोन्नत होने वाले न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ का सीजेआई के रूप में दो साल का कार्यकाल होगा और वह 10 नवंबर, 2024 को रिटायर होंगे. चीफ जस्टिस उदय उमेश ललित ने 74 दिन के अपने संक्षिप्त कार्यकाल के दौरान कई महत्वपूर्ण फैसले दिए और कार्यवाही के सीधे प्रसारण तथा मामलों को सूचीबद्ध करने की प्रक्रिया में बदलाव जैसे कदमों की शुरुआत की. वह न्यायपालिका के ऐसे दूसरे प्रमुख रहे जिन्हें बार से सीधे सुप्रीम कोर्ट की पीठ में पदोन्नत किया गया.

सुप्रीम कोर्ट पीठ में सीधे पदोन्नत होने वाले पहले वकील

नौ नवंबर, 1957 को जन्मे न्यायमूर्ति ललित को 13 अगस्त, 2014 को उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किया गया था और उन्होंने 27 अगस्त, 2022 को 49वें प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) के रूप में शपथ ली थी. आठ नवंबर उनके कार्यकाल का अंतिम दिन है. जस्टिस ललित देश के दूसरे ऐसे प्रधान न्यायाधीश हैं, जो बार से सीधे उच्चतम न्यायालय की पीठ में पदोन्नत हुए. उनसे पहले न्यायमूर्ति एस. एम. सीकरी मार्च 1964 में शीर्ष अदालत की पीठ में सीधे पदोन्नत होने वाले पहले वकील थे. वह जनवरी 1971 में 13वें सीजेआई बने थे. उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश 65 वर्ष की आयु में रिटायर होते हैं.

आतंकी को फांसी, लाइव टेलिकास्ट

संवैधानिक महत्व के मामलों में महत्वपूर्ण कार्यवाही के सीधे प्रसारण या वेबकास्ट पर ऐतिहासिक फैसले की चौथी वर्षगांठ पर, न्यायमूर्ति ललित ने 27 सितंबर से संविधान पीठ के मामलों का सीधा प्रसारण शुरू करने का आदेश दिया. प्रधान न्यायाधीश की अगुवाई वाली पीठ ने लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादी मोहम्मद आरिफ उर्फ ​​अशफाक को फांसी देने का मार्ग प्रशस्त किया और वर्ष 2000 में लालकिले पर हुए हमले के मामले में मौत की सजा देने के फैसले की समीक्षा करने की उसकी याचिका को खारिज कर दिया. इस हमले में सेना के तीन जवान शहीद हो गए थे.

बस एक बात का रह गया होगा मलाल

हालांकि, उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों के चार रिक्त पदों को भरने का न्यायमूर्ति ललित का प्रयास अधूरा रह गया क्योंकि उनके उत्तराधिकारी न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एस ए नज़ीर ने पांच सदस्यीय कॉलेजियम द्वारा नियुक्ति के लिए नामों की सिफारिश के प्रस्ताव पर लिखित सहमति मांगने की प्रक्रिया पर आपत्ति जताई. प्रधान न्यायाधीश के नेतृत्व वाले कॉलेजियम ने, हालांकि, विभिन्न उच्च न्यायालयों में लगभग 20 न्यायाधीशों के नामों की सिफारिश की और इसके अलावा बंबई उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता को शीर्ष अदालत के न्यायाधीश के रूप में नामित करने की सिफारिश भी की.

(भाषा इनपुट के साथ)

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