सुप्रीम कोर्ट-केंद्र में तल्खी, सरकार ने SC कॉलेजियम को लौटाई फाइलें, 10 नामों पर विचार करने कहा

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Supreme Court

सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार के बीच तल्खी बढ़ती जा रही है. केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू कॉलेजियम को पहले ही एलियन बता चुके हैं. अब कानून मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्ति की सिफारिश के साथ भेजी गई फाइलों को लौटा दिया है. मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम से फाइलों पर दोबारा विचार करने को कहा है. कोर्ट ने मंत्रालय को कुछ फाइलें भेजी थी, जो जजों की नियुक्ति से संबंधित थी. लौटाई गई फाइलों में वकील सौरभ कृपाल की भी फाइल है, जो खुद के समलैंगिक होने के बारे में बता चुके हैं.

नियुक्ति प्रक्रिया के जानकार सूत्रों ने कहा कि केंद्र सरकार ने सिफारिश किए गए नामों पर कड़ी आपत्ति जताई और बीते 25 नवंबर को फाइलें कॉलेजियम को वापस कर दीं. सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस एनवी रमणा की अगुवाई वाली कॉलेजियम ने वकील सौरभ कृपाल की दिल्ली हाई कोर्ट में जज के तौर पर नियुक्ति की सिफारिश की थी. सौरभ कृपाल देश के पूर्व प्रधान न्यायाधीश बीएन कृपाल के बेटे हैं.

दिल्ली हाई कोर्ट की सिफारिश पर SC ने केंद्र को भेजी फाइल

दिल्ली हाई कोर्ट के कॉलेजियम की तरफ से सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम को कृपाल का नाम अक्टूबर, 2017 में भेजा गया था, लेकिन बताया जा रहा है कि कृपाल के नाम पर विचार करने को सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने तीन बार टाला. वकील सौरभ कृपाल ने हाल ही में एक मीडिया चैनल से कहा कि उन्हें लगता है कि उनके साथ ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि वह एक समलैंगिक हैं. एनवी रमणा से पहले चीफ जस्टिस रहे एसए बोबड़े के कॉलेजियम ने कथित रूप से कृपाल का नाम टालते हुए उनके बारे में और भी जानकारी मांगी थी. हालांकि बाद में एनवी रमणा के सीजेआई बनने के बाद उनके नाम की सिफारिश केंद्र को भेजी गई.

लगता है केंद्र नाखुश है- सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने जजों की नियुक्ति की देरी पर नाराजगी जाहिर की. कोर्ट ने देरी पर कहा कि यह नियुक्ति के तरीके को प्रभावी रूप से विफल करता है. कोर्ट ने सोमवार को कहा कि जजों की बेंच ने जो समय-सीमा तय की थी उसका पालन करना होगा. जस्टीस एसके कौल और जस्टिस एएस ओका की बेंच ने यह भी कहा कि, “ऐसा लगता है कि केंद्र इस सच्चाई से नाखुश है कि राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) अधिनियम को मंजूरी नहीं मिली. कोर्ट ने कहा, लेकिन यह देश के कानून के शासन को नहीं मानने की वजह नहीं हो सकती है.

सुप्रीम कोर्ट ने 2015 के अपने फैसले में एनजेएसी अधिनियम और संविधान (99वां संशोधन) अधिनियम, 2014 को रद्द कर दिया था, जिससे सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति करने वाली जजों की मौजूदा कॉलेजियम सिस्टम बहाल हो गई थी. जस्टिस कौल ने कहा कि कई बार कानून को मंजूरी मिल जाती है और कई बार नहीं मिलती. उन्होंने कहा, यह देश के कानून के शासन को नहीं मानने की वजह नहीं हो सकती.” बेंच ने कहा कि कुछ नाम डेढ़ साल से सरकार के पास लंबित हैं. कभी सिफारिशों में सिर्फ एक नाम चुना जाता है. कोर्ट ने कहा, आप नियुक्ति के तरीके को प्रभावी ढंग से विफल कर रहे हैं.

कानून मंत्री किरेन रिजिजू के अलग तेवर

केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम को एलियन बताया था. उन्होंने कॉलेजियम सिस्टम का विरोध करते हुए कहा था कि सरकार कॉलिजियम सिस्टम का तबतक सम्मान करती है, जब किसी और सिस्टम से इसे रिप्लेस नहीं किया जाता. कानून मंत्री ने यह भी कहा था कि कॉलेजियम में खामियां हैं और यह ट्रांसपेरेंट नहीं है. आरोप लगाया जाता है कि सरकार फाइलों पर बैठी है, इसपर उन्होंने कहा कि यह नहीं कहना चाहिए कि सरकार फाइलों पर बैठी है. उन्होंने कहा कि “फिर फाइल सरकार को मत भेजिए. आप खुद को नियुक्त करते हैं और आप शो चलाते हैं, सिस्टम काम नहीं करता है. कार्यपालिका और न्यायपालिका को मिलकर काम करना होगा.”

(भाषा इनपुट के साथ)

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