लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देने और इसे छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग को लेकर पांच दिनों के उपवास पर रहे सोनम वांगचुक, अपने ‘बर्फीले स्तूप’ (कृत्रिम ग्लेशियर) के नवाचार के कारण सुर्खियों में आए. इसने उन्हें 2016 में रोलेक्स पुरस्कार भी दिलाया. इस नवाचार को शुष्क रेगिस्तानी क्षेत्र में पानी के संकट को हल करने के लिए प्रचारित किया गया था. हालांकि इसने निचले इलाके के गांव फे के निवासियों के साथ एक बड़े विवाद को जन्म दिया. इसमें ऊपरी गांव फ्यांग पर आरोप लगाया गया कि इस ग्लेशियर के लिए पानी की दिशा को मोड़ा जा रहा है.
दोनों गांवों में स्थिति को नियंत्रण से बाहर होने से बचाने के लिए स्थानीय प्रशासन को कदम उठाना पड़ा और सिंधु नदी में बहने वाले पानी को वांगचुक के नवाचार के लिए मोड़ने से रोकना पड़ा, जिससे फ्यांग के ग्रामीणों में आक्रोश फैल गया.
पानी की भारी कमी
अपने नवाचार के लिए वांगचुक ने सरकार को लिखा कि सालाना लगभग 100 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी फ्यांग धारा से प्रवाहित होता है, जहां फे और फ्यांग गांव का संयुक्त खपत “10 मिलियन क्यूबिक मीटर से कम” है. वांगचुक ने 2018 में मैग्सेसे पुरस्कार भी जीता था. वांगचुक ने तर्क दिया कि बाकी के जल को शुष्क रेगिस्तानी क्षेत्र के लिए संग्रहीत किया जा सकता है. यह क्षेत्र पीने और सिंचाई के उद्देश्यों के लिए पानी की भारी कमी का सामना करता है.
लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा
फे में फैली आशंकाओं के बारे में पूछे जाने पर वांगचुक ने जवाब दिया कि वे निराधार हैं. उन्होंने द थर्डपोल को बताया कि आम तौर पर, नई अवधारणाएं तब तक प्रतिरोध का सामना करती हैं, जब तक कि विशेषज्ञ और प्रशासन संदेह को दूर नहीं कर देते. लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देने और इस क्षेत्र को छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग में लद्दाख में वांगचुक का पांच दिवसीय जलवायु उपवास ‘प्रतिरोध’ की उसी विवाद की एक कड़ी लगता है. यहां अहम मुद्दा यह है कि इस क्षेत्र ने हाल के वर्षों में चीन से बढ़ती आक्रामकता देखी है.
भारत को आर्थिक रूप से मजबूत होना चाहिए
बॉलीवुड फिल्म 3 इडियट्स को प्रेरित करने वाले वांगचुक खुद इस सीमाई क्षेत्र की संवेदनशीलता को समझते हैं. एक वीडियो में, जो हाल ही में सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, वांगचुक ने खुद लद्दाख में चीनी आक्रमकता का मुद्दा उठाया था और तर्क दिया था कि भारत को चीन के सैन्यवादी इरादों को हराने के लिए आर्थिक रूप से मजबूत होना चाहिए.
भारत और चीन की सेनाओं के बीच टकराव
हाल के वक्त में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत और चीन की सेनाओं के बीच टकराव की घटनाएं बढ़ी हैं. लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश और डोकलाम तक तनाव है. 2020 में गलवान घाटी में घातक संघर्ष ने क्षेत्रीय वास्तविकताओं को बदलने के चीन के इरादों को और अधिक स्पष्ट कर दिया है.
दिल्ली में आयोजित महानिदेशकों, महानिरीक्षकों, केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों और केंद्रीय पुलिस संगठनों के प्रमुखों के 57वें वार्षिक सम्मेलन में लेह के पुलिस अधीक्षक पीडी नित्या द्वारा प्रस्तुत एक पेपर में बताया गया है कि भारत ने पूर्वी लद्दाख में काराकोरम दर्रे से चुमुर तक 65 पेट्रोलिंग प्वाइंट में से 26 पर अपना क्षेत्रीय नियंत्रण खो दिया है.
लद्दाख तिब्बत का हिस्सा
बीजिंग के लिए लद्दाख तिब्बत का हिस्सा है, जबकि नई दिल्ली का मानना है कि चीन से भारत की सीमा की रक्षा करने के लिए यहां केंद्र सरकार की सीधी निगरानी वाली एक दृढ़ और निर्णायक सरकार जरूरी है. कम आबादी वाले क्षेत्र में कमजोर सरकार चीन के खिलाफ भारत की ताकत को कमजोर करेगी. राष्ट्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से, ऐसी स्थिति देश की संप्रभुता के लिए गंभीर खतरा पैदा करती है.
लद्दाख के लोग बेहतर प्रशासन और संविधान के तहत गारंटीकृत सभी अधिकारों के हकदार हैं. वांगचुक को अपनी इस सलाह पर दोबारा सोचना होगा कि नए विचारों को शुरू में प्रतिरोध का सामना करना पड़ता है. राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर ऐसे प्रतिरोध को अतिक्रमण करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.
(डिस्क्लेमर: इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के हैं.)