भारत की Indo-Pacific रणनीति को प्रभावित करेगा AUKUS, चीन पर क्या होगा असर?

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नई दिल्ली: इस महीने वैश्विक स्तर पर दो घोषणाएं हुईं, जिनका भारत और चीन के साथ भविष्य के संबंधों के लिए रणनीतिक महत्व है. पहला 10 मार्च 2023 को, चीन ने सुन्नी (सऊदी अरब) और शिया (ईरान) के बीच तनाव कम करने के लिए मध्यस्थता की. 13 मार्च को, यूएस, यूके और ऑस्ट्रेलिया ने AUKUS सौदे की घोषणा की, जिसका उद्देश्य इंडो-पैसिफिक में तेजी से बढ़ती चीनी सैन्य चुनौती का मुकाबला करना था. इसमें अमेरिका ने वर्जीनिया की परमाणु संचालित सशस्त्र पनडुब्बियों या SSN का निर्माण किया. वो भी बीजिंग की शिप किलर और गुआम किलर मध्यम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइलों की सीमा से बाहर रहते हुए. AUKUS संधि के अनुसार, US वर्जीनिया क्लास और UK Astute क्लास SSN ऑस्ट्रेलिया के पश्चिमी तट पर गश्त करेंगे ताकि PLA नेवी और सोलोमन द्वीप में इसकी विस्तार योजनाओं को दूर रखा जा सके. वहीं भारत पर इन दो घटनाओं का खासा प्रभाव होगा क्योंकि यह भारत-प्रशांत के केंद्र में है. ये भी पढ़ें: Imran Khan Arrest Live: पुलिस पर हमले के पीछे गिलगित-बाल्टिस्तान बल, आरोप के बाद DGP का तबादला

अरब देशों के नेताओं से मुलाकात

सऊदी अरब और ईरान की मध्यस्थता की शुरुआत चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की दिसंबर 2022 में रियाद यात्रा से हुई. जब उन्होंने सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के समर्थन से अरब देशों के नेताओं से मुलाकात की. चीन-अरब शिखर सम्मेलन में भाग लेने वालों में मिस्र, ट्यूनीशिया, जिबूती, कोमोरोस और मॉरिटानिया के राष्ट्रपति, इराक, मोरक्को, अल्जीरिया और लेबनान के प्रधानमंत्री, जॉर्डन और बहरीन के राजा, फुजैराह, संयुक्त अरब अमीरात के शासक शामिल थे. इनके अलावा कतर के अमीर, कुवैत के युवराज, अरब लीग के महासचिव और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के प्रमुख भी शामिल थे. ये भी पढ़ें:नार्थ कोरिया ने फिर दागी एक बैलिस्टिक मिसाइल, अमेरिका-साउथ कोरिया से बढ़ा तनाव

इस्लामी देशों के साथ संबंध

बीजिंग के तुर्की, सऊदी अरब, ईरान और मध्य एशियाई गणराज्यों सहित इस्लामी दुनिया के सभी देशों के साथ संबंध हैं और बेशक इसका एक साथी पाकिस्तान भी है. पूर्वी अफ्रीकी समुद्र तट पर जिबूती में चीन का पहले से ही एक नौसैनिक अड्डा है, ताजिकिस्तान में एक सैन्य चौकी है, श्रीलंका में हंबनटोटा बंदरगाह में वित्तीय और रणनीतिक हित हैं, ईरान और पाकिस्तान में ग्वादर बंदरगाह, ईरान में चाहबहार बंदरगाह, संयुक्त अरब अमीरात में खलीफा और डुक्म ओमान में बंदरगाह शामिल है. हिंद महासागर में चीन का प्रभाव भारत के लिए मुसीबत बढ़ाएंगे.

यूपीए सरकार में चीन की रणनीति

तीन विमानवाहक पोतों के साथ तेजी से विस्तार करने वाली चीनी नौसेना इस्लाम के सुन्नी और शिया कंधों की मदद से हिंद महासागर पर हावी होने की कोशिश करेगी और कई तरह से इस्लामी दुनिया और इसकी हाइड्रोकार्बन शक्तियों को नियंत्रित करेगी. हालांकि पिछली यूपीए सरकार ने चीन की रणनीति के बारे में बहुत कम सोचा था, जो भारत का गला घोंट सकती थी, लेकिन तथ्य यह है कि अगर ऐसा होता है, तो चीन के पास भारत को अपने ही क्षेत्र में सीमित करने और प्रतिबंधित करने की क्षमता होगी. भारत अपनी शक्तिशाली नौसेना के साथ सऊदी अरब, ईरान और संयुक्त अरब अमीरात के साथ अपने पारंपरिक संबंधों को बरकरार रखते हुए चीनी चुनौती का मुकाबला करने के लिए दक्षिण पूर्व एशिया और दक्षिण चीन सागर तक अपना विस्तार करेगा. ये भी पढ़ें: Air India: शिकागो एयरपोर्ट पर फंसे एयर इंडिया के 300 यात्री, दो दिन से दिल्ली आने का इंतजार

भारत पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं

हालांकि AUKUS गठबंधन का भारत पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा, लेकिन नई दिल्ली का QUAD शक्तियों के साथ जुड़ाव और मालाबार के तहत नौसैनिक अभ्यास (इस अगस्त में सिडनी के तट पर आयोजित होने वाला) भारत के प्रति चीनी प्रतिक्रिया को और अधिक स्पष्ट कर देगा. चीन और उसके सहयोगी रूस दोनों ने QUAD और AUKUS गठजोड़ दोनों की आलोचना की है.

चीन और रूस दोनों आकर्षित

QUAD और AUKUS के साथ भारत का जुड़ाव चीन और रूस दोनों को ही आकर्षित करेगा. जबकि रूस पिछले और वर्तमान संबंधों के कारण भारत के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर सकता है, चीन क्वाड का उपयोग वास्तविक नियंत्रण रेखा के साथ-साथ ताइवान संकट को दूर करके अमेरिका और जापान पर भारत पर दबाव बढ़ाने के बहाने के रूप में कर सकता है. भारत को चीन पर बारीकी से नजर रखनी होगी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को न केवल हाईब्रिड युद्ध के लिए तैयार रहना होगा बल्कि आने वाली चुनौतियों के लिए मित्रों को सावधानीपूर्वक चुनना होगा. ये भी पढ़ें: दिल्ली HC पहुंचा पाकिस्तान पर ब्रह्मोस मिसफायर केस, अभिनव बोले- मुझे बर्खास्त करना गलत

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